गुरू शिष्य को अपना समकक्ष बनाने का सदैव प्रयास करता है और इसी कारण से उन्हे स्वयं सर्वप्रथम शिष्य के अनुरूप धारण करना पड़ता है, परन्तु यह शिष्य की अज्ञानता होती है, जो वह गुरू को सामान्य मनुष्य के रूप में देखता है। O que você pode fazer?
यदि शिष्य के मन में यह अहंकार भाव है कि मैं एक श्रेष्ठ जाति में उत्पन्न हुआ हूँ, मैं बहुत धनाढ़य हूँ, मैं बहुत ऐश्वर्यवान हूँ, मेरा परिवार बहुत सुप्रतिष्ठित है, या मैं बहुत विद्वान हूँ आदि, तो उसे गुरू के सम्मुख उपस्थित नहीं होना चाहिये। O que você pode fazer?
गुरू ईश्वर का प्रतिबिम्ब है शिष शिष्य साकार अपनी आंखों से देख सकता है।।।।।।। ईश्वर को शिष्य ने भले ही न देखा हो पर गुरू के माध्यम से ईश्वर के हृदय में प्रेम की धारा को और आँखों में प्रेम को अनुभव कर सकता है।
Mais informações इसे प्राप्त करने के शिष शिष्य का मन पावन और निर्मल होना चाहिये। जो शिष्य पूरी श्रद्धा से गुरू की सेवा में त हत हता है, उसी को गुगु के के माध्यम से आध्यात्मिक औऔ भौतिक सुख की पाध्यम से आध्यात्मिक औऔ भौतिक की की प्राप्ति आध है है।। है है औ औ सुख की प प प प प प gre
Mais informações जो हर क्षण नवीन, जो ह क्षण जीवन में नय नया बनने औऔ कुछ नया करने को अग्रस to हो वही शिष्य है।।।।।।।।।।।।। Linha
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Mais informações जितने महापुरूष हुये उनके उनके जीवन को तो ह ह एक भिन्न पुष्प की भांति है, हर एक शैली शैली, प्रवाह अंदाज भिन्न है समानता है अगर तो तथ तथ्य में ह हntas
O que você pode fazer? ्षा प्राप्त शिष्य निश्चय ही नरक में जाता है, उस क पस्या क्षीण हो जाती है, क्योंकि गुरू निन्दा शिू ी सबसे घटिया और निम्नतम क्रिया कही जाती है।
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