गृहस्थ जीवन जीवात्माओं के पारस्परिक मिलन द्वारा शुद्ध आत्मिक सुख, अपनत्व प्रेम, वात्सल्य व त्याग की भूमि है है विवाह से मनुष्य समाज का एक बनत बनता है, सामाजिक अपूर्णता से पूर्णता प्राप्त करता है, निर्बलता से समadura उसे नये सम्बन्ध, दायित्व और आनंद प्राप्त ॹोते है भारतीय ऋषियों ने गृहस्थ आश्रम को अनेक व्रत, नियम, अनुष्ठान, पूजा, साधना, दान, सेवा इत्यादि पुण्य कर्तव्यों के गुणों से विभूषित कर उसकी महिमा को सहस्त्र गुणा बढ़ा दिया है।
Existem muitos obstáculos na jornada da vida conjugal, conflitos, diferenças, indisponibilidade de um parceiro adequado para a vida, atraso no casamento, não cooperação da esposa são muitos desses motivos, pelos quais a vida familiar se torna um inferno. O casamento é para alcançar a completude com felicidade e alegria, estabelecendo harmonia em todos os sentidos na vida familiar de duas correntes de pensamento diferentes, criadas em ambientes diferentes.
ऐसे जीवन को ही पूर्ण गृहस्थी कहा गया है, जहां त्याग, प्रेम और अपनत्व की भावना विद्यमान हो औ। अपनत अपनत्व परन्तु आज की अधिकांश स्थितियों में असमानता दिखाई पड़ती है, पति-पत्नि एक-दूसरे से श्रेष्ठ बनने की होड़ में अपने जीवन को दलदलमय बना रहें है, संदेह की प्रवृति के कारण दोनों के मध्य अविश्वास की गहरी खाई तैयार हो जाती है। जो धीरे-धीरे गृहस्थ जीवन खोखल खोखला बना देती है और नीरसता, ईर्ष्या, कलह-क्लेश क का जीवन में आगमन हो जाता है।। ऐसी स्थितियों में सम सम्बन्धों को दोनों मजबू मजबूntas जिसका प्रभाव सामाजिक तथा पारिवारिक दोनों ूपो ूपो में को मिलता है।।।। आपसी ताल-मेल के अभाव में संतान की भी दुर्गति होत जबकि विवाह जीवन सुनि सुनिर्माण की होत होता है, भावी जीवन में नि निर्म pos. जिससे पति-पत्नी आजीवन मित्रवत, एक-दूसरे के सहयोगी बने हें, सुख-दुःख में साथ चलते हे हे। हें
अपने गृहस्थ जीवन आद आदर्श marca में स्थापित कर आनन्द, हर्ष, प्रेम, करूणा के साथ-साथ गृहस्थ व साधनात्मक चेतना से नि निquintosत क्थ वाधनात्मक चेतना से नि निntos परम पूज्य सद्गुरूदेव व वन्दनीय माता जी शिष शिष्यों के लिये प्रेरणा स्वरूप हैं।। शिष्य सदैव अपने गुरू के आदर्शों पर चलकर उनके ही स्वरूप की चेतना आत्मसात करने की क्रिया करता है।।।। अपने गुरू की भांति सुन्दर श्रेष्ठ संस्कारों से वैवाहिक जीवन को आबद्ध करने की क्रिया श्रीकृष्ण राधामय सौभाग्य वृद्धि दीक्षा की चेतना से आप्लावित हो सकेंगे, जिससे पति-पत्नी का सांसारिक जीवन आत्मिक और मानसिक स्वरूप में वैदिक धर्म अनुसार गतिशील कर पूर्ण आत्मिक सुख प्राप्त कर सकेंगे ।
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