Linha प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक ही बात होती है कि जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, वह उसमें उच्चता के शिखर पर हो, व्यापारी हो तो बड़े से बड़ा, डॉक्टर हो तो ऊँचे दर्जे का आदि-आदि, किसी भी स्थिति में महत्त्वहीन होना उसे पसंद नहीं है।
मनोवैज्ञानिकों के कथनानुसार इस महत्त्वबोध की भावना को की श श्रेष्ठता कहा गया है औ औ ded महत्तावहीनता के एहसास को हीन भावना कहा गया हैा है्नतास गय को को भावना कहा ।ा है है Para उच्चता प्राप्त करने की आकांक्षा सर्वप्रथम बाल्यावस्था में ही उत्पन्न होने लगती है, जो धीरे-धीरे बढ़ती उम्र के साथ उसके अन्दर महत्वकांक्षा का रूप धारण कर लेती है और जब व्यक्ति अपनी महत्वकांक्षा को पूरा नहीं कर पाता है, तब वह निराश होता है, दुःखी और संतप्त होता है, क्योंकि वह अपने अन्दर उस तत्व का, उस शक्ति का, उस बल का अभाव महसूस करता है, जिसके द्वारा उच्चता के शिखर पर पहुँचा जा सकता है और मार्ग में आये अवरोधों को दूर किया जा सकता है।
अवरोधों को दूर कर बाधाओं को लांघते हुए निरन्तर उन्नति की ओर अग्रसर होना कोई सरल कार्य नहीं है, क्योंकि आपाधापी के इस युग में जहाँ सिर्फ ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य के कारण ही परस्पर विरोधी प्रत्याघात किये जाते हैं, ऐसे में अपराजित होना एक दुष्कर कार्य है, वस्तुतः यह सुक सुक्ष्म पथ नहीं, अपितु कटीला मार्ग है, जिसको पार कर अपनी मंजिल प्राप्त कर लेना जीवन का सौभाग्य ही कहा जा सकता लेना जीवन जीवन का सौभाग्य ही कहा जा सकता सकता है है।। क ककह का सकता सकता सकता लेना जीवन क का सौभागadura कहने को तो छोट छोटा सा जीवन है, किन्तु इस जीवन जीवंतत जीवंतता के साथ, सम्पन्नता के साथ, पूर्णता के साथ जीने लम लम्बा समय ज जाताता के ससाथ हो सकता है कि जीवन य यात्र अधूरी ह जाय और हम मृत्यु को प्राप्त हो जाये किन्तु ऐसा अधूरा एवं अपूरach
Linha जब वह व्यवस्था क्रम को पार करने में भली प्रकार सफल हो जाता है, तभी वह सही अर्थों में पूर्ण मानव कहलाता है, परन्तु प्रतिस्पर्धावादी इस युग में निरन्तर उन्नति के पथ पर गतिशील हो उन सभी कार्यों को पूर्णता देना, बिना शक्ति तत्व के प्रादुर्भाव के एक असम्भव सा कार्य है।
वस्तुतः व्यक्ति अत्यधिक परिश्रम करने के बाद भी जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर पाता, ऐसा भी नहीं है कि वह प्रयत्न नहीं करता हो, ऐसा भी नहीं है, कि वह किसी प्रकार की न्यूनता बरतता हो, परन्तु फिर भी वह सफलता अर्जित नहीं कर पाता ।
यह बात तो निश्चित है, कि व्यक्ति अपने प्रयत्नो ं से भी अपने आपको असफल ही पाता है और अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता, इसलिये उसे किसी ऐसी दिव ्य शक्ति का आश्रय लेना ही पड़ता है, ou mais ंजिल तक पहुँचा दे।
जो कायर होते हैं, निर्बल होते हैं, वे प पप प होते हैं, किन्तु जिनके पास अपराजिता सिद्धि विजयदशमी, वे पराजित हो ही नहीं सकते।। विजयदशमी विजयदशमी हो प पntas इस यंत्र को धारण करने के बाद जीवन में आये दुःख, दैन्यता, अभाव marca समस्त शत्रुओं को आसानी से परास्त किया जा सकता है आस आसानी से परास्त किया जा सकता है। आस। इस यंत्र के माध्यम से हर छोटी-बड़ी मुश्किलों को सरलता से दूर किया जा सकता है।
चाहे जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, अपराजिता सिद्धि विजयदशमी की महत्ता को सभी ग्रंथों, शास्त्रों में एक स्वर से स्वीकार किया गया है, कि यह एक ऐसी साधना है, जिससे जीवन के हर क्षेत्र में विजयी हुआ जा सकता है, जीवन में आई अड़चनों को, बाधाओं को दूर किया जा सकता है औ कठिनाइयों पर सफलता प्राप्त कर विजय श्री की उपाधि से अपने आपको अलंकृत किया जा सकता है।। उप से अपने आपको अलंकृत किया जा सकता है की उप।।। अपने आपको अलंकृत किया जा सकता है की।।।। अपने आपको अलंकृत किया जा सकता है है।।
método de meditação
यह साधना अपराजिता सिद्धि विजयदशमी दिवस को ज जा सकती है।।।। इस साधना को किसी म माह में भी शुक शुक्रवार के प प्रारम्भ किया जा सकता है।। प प प प प gas
इस साधना के लिये आवश्यकसामग्री है O que você pode fazer?
जिस दिन साधना करनी हो, उस दिन प्रातः काल 5 बजे से 7 बजे के बीच में स्नानादि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारण करें और उत्तराभिमुख होकर पीले आसन पर ही बैठ जायें। अपने सामने जमीन पर यदि आपको अल्पना (marca) बनानी आती हो, तो बनायें अथवा गुलाल से स्वास्तिक अंकित करें। स्वास्तिक के मध्य में पांच पीले पुष्प marca और उनके ऊपर यंत्र को स्थापित करें। यंत्र का पंचोपचार पूजन करें। स्वस्तिक की दाहिनी और किसी पात्र में चक्र को रखो रखे चक्र का भी पुष्प, अक्षत से पूजन करें। Linha उसका उच्चारण कर जल जमीन पर छोड़ दें।
इसके पश्चात् 51 बार निम्न मंत्र का उच्चारण करें और एक-पुष पुष्प यंत्र एवं चक्र पर चढ़ा दें-
फिर हाथ जोड़कर इस जगत प पालन कर्ता भगवान विष्णु को क करें एवं आसन से जाये उपरोक्त क्रम के अनुसार ही तीन दिन तक साधना करनी तीसरे दिन यंत्र एवं चक्र को मिट्टी के बर्तन में marca पुष्प और अक्षत चढ़ायें और नदी में विसर्जित करें।
इस साधना को सम्पन्न करने वाला साधक स्वयं अनुभव करेगा कि उसे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता मिलनी आरम्भ हो ही क है। सफलत सफलत सफलत आ आ आntas
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