किसी भी शुभ कार्य में, चाहे वह यज्ञ हो, विवाह हो, वास्तु स्थापना हो, गृह प्रवेश हो अथवा अन्य कोई मांगलिक कार्य हो, भैरव की स्थापना एवं पूजा अवश्य ही की जाती है, क्योंकि भैरव ऐसे समर्थ रक्षक देव है जो कि सब प्रकार के विघ्नों को, बाधाओं को ोक ोक सकते औ औऔार्य सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाता है, छोटे छोटे गांवों भै भै भैज क ज gas स स भै भै पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू ज ज जज पू भै भै भै पू ज ज ज gre स स स ग पूज पू भै भै जज भै भै ज जज भै भै जभै भै भै जभै क जभै पू पू जज ज जज ज जभै पू जज ज ज जज ज ज gas
अशिक्षित व्यक्ति भी अपने पूर्वजों से प्राप्त मान्यता-धारणा के आधार पर भैरव-पूजा अवश्य करता है, इसके पीछे सिद्ध ठोस आधार है तभी यह भैरव पूजा परम्परा चली आ रही है, हिन्दू विवाह में विवाह के पश्चात् 'जात्र' का विधान है और सर्वप्रथम 'भैरव जात्र' ही सम्पन्न की जाती है, भैरव के विभिन्न स्वरूप है और अलग-अलग स्थानों पर अलग-स l स्वरूपों की पूजा सम्पन्न ज ज अलग स स स्वरूपों
भैरव शिव के अंश है और उनका स्वरूप चार भुजा, खड्ग, नरमुण्ड, खप्पर और त्रिशूल धारण किये हुये, गले में शिव के समान मुण्ड माला, रूद्राक्ष माला, सर्पो की माला, शरीर पर भस्म, व्याघ्रचर्म धारण किये हुये, मस्तक पर सिन्दूर का त्रिपुण्ड, ऐसा ही प्रबल स्वरूप है, जो कि दुष्ट व्यक्तियों को पीड़ा देने वाला और अपने आश्रय में अभय प्रदान कर, बल, तेज, यश, सौभाग्य, प्रदान करने में पूर्ण समर्थ देव है, भैरव-शिव समान ऐसे देव है, जो साधक किसी भी रीति से उनकी पूजा-साधना करे-प्रसन्न होकर अपने भक्त को पूर्णता प्रदान करते है, भैरव सभी प्रकार की योगिनियों, भूत-प्रेत, पिशाच के अधिपति है, भैरव के विभिन्न चरित्रें, विभिन्न पूजा विधानों, स्वरूपों के सम्बन्ध में शिवपुराण, लिंग पुराण इत्यादि में विस्तृत ूप
उच्चकोटि के तांत्रिक ग्रंथों में बताया गया है च चाहे किसी देवी य या देवता की साधना की जाय सर्वप्रथम गणपति औ काल भैntas जिस प्रकार से गणपति समस्त विघ्नों का नाश करने वाले है, ठीक उसी प्रकार से भैरव समस्त प्रकार के शत्रुओं का नाश करने में पूर्ण रूप से सहायक है।
कलयुग में बगलामुखी, छिन्नमस्ता या अन्य महादेवियों की साधनायें तो कठिन प्रतीत होने लगी है, यद्यपि ये साधनायें शत्रु संहार के लिये पूर्ण रूप से समर्थ और बलशाली है, परन्तु 'भैरव साधना' कलयुग में तुरन्त फलदायक और शीघ्र सफलता देने में सहायक है। अन्य साधनाओं में तो साधक को फल जल्दी या विलम्ब से प्राप्त हो सकता है, परन्तु इस साधना का फल तो हाथों हाथ मिलता है, इसीलिये कलयुग में गणपति, चण्डी और भैरव की साधना तुरन्त फलस्वरूप से महत्वपूर्ण मानी गई है।
प्राचीन समय से शास्त्रें में यह प्रमाण बना रहा है, कि किसी प्रकार का यज्ञ कार्य हो तो, यज्ञ की रक्षा के लिये भैरव की स्थापना और पूजा सर्वप्रथम आवश्यक है। किसी भी प्रक deveria प्रकार का भय व्याप्त नहीं होता और न किसी प्रकार का उपद्रव या बाधायें आती है ऐस ऐसा का का पर साधक निश्चय ही पू ऐसा का पा पntas
इसके अलावा भैरव की स्वयं साधना भी अत्यन्त महत्वपूर्ण और आवश्यक मानी गई है, आज का जीवन जरूरत से ज्यादा जटिल और दुर्बोध बन गया है, पग-पग पर कठिनाइयां और बाधायें आने लगी है, अकारण ही शत्रु पैदा होने लगे है और उनका प्रयत्न यही Di कि येन येन-केन प्रकारेण लोगों तकलीफ दी जाय या उन्हें परेशान किया जाये, इससे जीवन में जरूरत से ज्यादा तनाव बना हत जा जा है से ज Para
इसीलिये आज के युग अन अन्य सभी साधनाओं की अपेक्षा भैरव की साधना को ज्यादा महत्व दिया जाने लगा है।।।।।।।। 'देव्योपनिषद्' में भैरव साधना क्यों की जानी चाहिये, इसके बारे में विस्तार से विवरण है, उनका सारा मूल तथ्य निमadura.
जीवन के समस्त प्रकार के उपद्रवों को समाप्त करने के लिये।।।।।।।
जीवन की बाधायें और परेशानियों को दूर करने के लिं
जीवन नित नित्य कष्टों और मानसिक तनावों को समाप्त करने के लिये लिये
शरीर में स्थित रोगों को निश्चित रूप से दूर करने रूप से दूर करने
आने वाली बाधाओं और विपत्तियों को पहले से हट हटाने के लिये।।।
जीवन औ और समाज के शत्रुओं को समाप्त करने और उनसे बचाव के लिये।।
शत्रुओं की बुद्धि भ्रष्ट करने के औ और शत्रुओं को परेशानी में डालने के लिये लिये लिये लिये लिये लिये
जीवन में समस्त प्रकार के ऋण और कर्जो की समॾप्ति की समॾप्ति
राज्य से आने वाली बाधाओं या अकारण भय से मुक्ति के मुक्ति के मुक्ति कुक्ति के
जेल से छूटने के लिये, मुकदमों में शत्रुओं को पूर्ण marca से परास्त करने के लिये।
चोर भय, दुष्ट, भय और वृद्धावस्था से बचने के लिय े।
इसके अलावा हमारी अकाल मृत्यु न हो या किसी प्रकार का एक्सीडेन्ट न हो अथवा हमारे बालकों की अल्प आयु में मृत्यु न हो, आदि के लिये भी 'भैरव साधना' अत्यन्त महत्वपूर्ण मानी गई है। इसीलिये श शास्त्रें में कहा गया है कि जो चतुर और बुद्धिमान व्यक्ति होते, वे अपने जीवन में भैरव साधना अवश्य ही करते है है जो वास्तव में जीवन जीवन बिन बिना बाधाओं के निरन्तर उन्नति की ओर अग्रस desse जो अपने जीवन में यह चाहते है कि किसी भी प्रकार से राज्य की कोई बाधा या परेशानी न आवे वे निश्चय ही भैरव साधना सम्पन्न करते है। जिन्हें अपने बच्चे प्रिय है, जो अपने जीवन में ोग नहीं चाहते, जो प पास बुढ़ापा फटकने नहीं देना चाहते, वे अवश l अवश ही भैntas
उच्च कोटि के योगी, सन्यासी तो भैरव साधना करते ही है, जो श्रेष्ठ बिजनेसमेन या व्यापारी है, वे भी अपने पण्डितों से भैरव साधना सम्पन्न करवाते है। जो राजनीति में रूचि रखते है और अपने शत्रुओं पर विजय पाना चाहते है, वे भी अपने विश्वस्त तांत्रिकों से भैरव साधना सम्पन्न करवाते है। जीवन सफलत सफलता और पूर्णता पाने के भै भैरव साधना अत्यन्त आवश्यक है और महत्वपूर्ण है।।।।
भैरव के विभिन्न स्वरूपों की साधना अलग-अलग प्रक pos दरिद्रता, रोग नाश, राज्य बाधा निवारण, संतान प्राप्ति, शत्रु स्तम्भन, परिवार रक्षा, अकारण मृत्यु निवारण के लिये श्रेष्ठ साधनायें है।
'शक्ति संगम तंत्र' के 'काली खण्ड' में भैरव की उत्पति के बारे में बताया गया है कि 'आपद' नामक राक्षस कठोर तपस्या कर अजेय बन गया था, जिसके कारण सभी देवता त्रस्त हो गये और वे सभी एकत्र होकर इस आपत्ति से बचने के बारे में उपाय सोचने लगे। अकस्मात उन सभी की देह से-एक तेजोधारा निकली और उसका युग्म marca पंचवर्षीय बटुक के रूप में प्रादु línguaभ पंचवभ पंचव हुआ। इस ने ने 'आपद' नाम के र र र को को मारकरदेवताओं को मुक मुक्त किया, इसी कारण इन्हें आपदुद्धार बटुक भैरव कहा गया है इन आपदुद आपदुद्धा marca
जीवन समस समस्त प्रकार के उपद्रव, अड़चन और बाधाओं का इस साधना से समापन होता है। क क इस साधना से समापन होता है।
जीवन नित नित्य के कष्टों और परेशानियों को दूर करने के लिये यह स साधना अनुकूल सिद्ध मानी गई है।।
मानसिक तनावों और घर के लड़ाई-झगडे, गृह क्लेश आदि नि निर्मूल करने के लिये स साधना उपयुक्त है। क।।
आने वाली किसी बाधा या विपत्ति को पहले से हटा देने के लिये यह साधना एक श्रेष्ठ उपाय है।
Marca राज्य से व वाली हर प्रकार की बाधाओं या मुकदमें मुकदमें में विजय प्राप्त करने के लिये यह श्रेष्ठ साधना है।।
इस साधना को किसी भी षष्ठी अथवा बुधवार को प्राेमॕ्राेमॕ्राेमॕ अपने सामने काले तिल ढे ढेरी पर 'बटुक भैरव यंत्र' को स्थापित करें। धूप दीप जलाकर यंत्र का सिन्दूर से पूजन करें। दोनों हाथ जोड़कर बटुक भैरव का ध्यान करें-
फि फि अपने दायें हाथ में अक्षत के द दानें लेकर अपनी समस्या, बाधा, कष्ट, अड़चन आदि को स्पष्ट ूप ूप से क क उसके निव निव निव की प्ट ूपथन से क क उसके निव निव निव की की प पप gre फिर अक्षत को सि सिर पर से घुमाकर आसन के चारों ओर बिखेर दें।।।। इसके पश्चात् 'आपदा उद्धारक भैरव माला' से निम्न मंत्र का एक सप्ताह तक नित्य marcaत्रि 11 माला जप कntas
भैरव का नाम भले ड डरावना और तीक्ष्ण लगता हो, परन्तु अपने साधक के लिये तो भैरव अत्यन्त सौम्य औरक्षा करव वाले है सौम सौमसौम औऔ औरक्षा क desse जिस प्रकार हमारे बॉडी गार्ड लम्बे डील व वाले भयानक और बन्दूक या शस्त्र साथ में खकाथ वाले होते शस, पर उससे भय नहीं लगता। व वव व होते है प प उससे भय नहीं लगत लगत लगत लगत लगत लगत व व व व व व व व व व लगत लगत लगत लगत लगत में में में में स सntas ठीक उसी प्रकार उनकी वजह से भैरव भी हमारे जीवन के बॉडी गार्ड की तरह है, वे हमें किसी प्रकार से तकलीफ नहीं देते अपितु हमारी रक्षा करते है और हमारे लिये अनुकूल स्थितियां पैदा करते है। यह साधना सरल और सौम्य साधना है, जिसे पुरूष या स्त्री कोई बिन बिना किसी अड़चन सम सम्पन्न कर सकता है बिन।। मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में आज क काल भैरव का मन्दिर है, जिसे 'चमत्कारों का मन्दिर' कहा जाता है। तंत्र अनुभूतियों की सैकड़ों सत्य घटनायें इससे जुड़ी हुई हैं।।
तांत्रिक ग्रंन्थों में शत शत्रु स्तम्भन की श्रेष्ठ साधना के ूप ूप में से स स्वीकार कियाधना गय के ूप ूप में से स स Para
यदि शत्रुओं के कारण अपने प्राणों को संकट हो अथवा परिवार के सदस्यों या बाल-बच्चों को शत्रुओं से भय हो, तो यह साधना एक प्रकार से आत्म रक्षा कवच प्रदान करती है। शत्रु की बुद्धि स्वतः ही भ्रष्ट हो जाती है और वह परेशान करने की सोचना ही बन्द कर देता है।।।।
यदि आप ऐसी जगह कार्य करते है, जहां हर क्षण मृत्यु का खतरा बना रहता हो, एक्सीडेंण्ट, दुर्घटना, आगजनी, गोली बन्दूक, शस्त्र से या किसी भी प्रकार की अकाल मृत्यु का भय हो, तो 'काल भैरव साधना' अत्यन्त उपयुक्त सिद्ध होती है। वस्तुत यह काल को टालने की साधना है।
स्त्रियां इस साधना को अपने बच्चों एवं सुहाग की दीर्घ pos.
Linha इस साधना को 27 नवम्बर 'कालाष्टमी' या किसी भी अष्टमी की marca साधक लाल (अथवा पीली) धोती धारण कर लें।
साधिकायें लाल वस्त्र धारण करे। इसके बाद लाल marca के प प बैठ बैठ कर दक्षिण दिशा की ओओ मुख क क क लें दक अपने सामने एक थाली में य या सिन्दुर से 'ऊँ भै भैरवाय नमः' लिख दें। फिर थाली के मध्य 'काल वशीकरण भैरव यंत्र' और 'महामृत्युंजय गुटिका' को स्थापित कर दें।।। लोहे की कुछ कीलें अपने पास रख लें। यदि प परिवार में सात सदस्य है, तो उन सबकी marca प्रत्येक कील को मोली के टुकडे़ से बांध दें। बांधते समय भी 'ऊँ भं भैरवाय नमः' का जप करें।
फिफि उन कीलों अपने प परिवार के जिन सदस्यों की क्षा की कामना आपको करनी, उनमें से से प्रत्येक का नाम एक क कntas यह अपने आत आत्म marca फिर भैरव के निम्न स्त्रेत मंत्र का मात्र 27 बार उच्चारण करें
यं यं यं यक्ष रूपं दश दिशि विदितं भूमि कम्पायमानपायमाि
सं सं सं संहारमूर्ति शिर मुकुट जटाशेखरं चनमद६म चिमद६म
दं दं दं दीर्घ कायं विकृत नख मुखं ऊर्ध्वरोमं करा करा्वरोमं करा
पं पं पं पाप नाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्रपालमषेत्रपालम्रपालमं
Linha
Om Kaal Bhairav, crematório Bhairav, Kaal Roop Kaal Bhairav!
मेरी बैरी तेरो आहर रे। काढि़ करेजा चखनकरो कट
corte. Om Kaal Bhairav, Batuk Bhairav, Bhoot Bhairav, Maha
Bhairava, o deus do grande medo da destruição. Tudo foi realizado.
फिर अपने सिर पर से सरसों को ब बार घुमाकर सरसों के दानों को कागज में लपेट करसों के द।। को क कागज इसके बाद निम्न मंत्र का 27 मिनट तक जप करें-
यह केवल एक दिन का प्रयोग है। जप के बब ब स स ब ब ब बाद साधक आसन से उठ जाये और भैरव के सामने जो ख marca लोहे की कीलें किसी निर्जन स्थान पर फेंक दें, यह शत्रु वशीकरण की दिव्य साधना है।
कश्मीर में अमरनाथ के दर्शन करने के बाद साधक उन्मत्त भैरव के भी दर्शन करते है, यह प्रसिद्ध भैरव पीठ में से एक पीठ है, शंकराचार्य ने स्वयं इस पीठ की स्थापना कर इस मूर्ति का प्राण संजीवन किया था। इस भैरव मन्दिर के पीछे के भाग में गर्म पानी का स्त्रेत है, इस पानी में नहाने से ोग दूर हो जाते प।।। नह नह से से दू दूntas उन्मत्त भैरव का स्वरूप ही marca
° इस साधना को करने से दीर्घकाल से ठीक हो हो ही बीमारियों पर भी नियंत्रण प्राप्त होता है, तथा शीघ्र ही ोग कापाण होता है तथ तथpon
° श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति के लिये इस स साधना को बहुत से व्यक्तियों द्वारा सफलता पूर्वक आजमाया गया है।।
इस साधना को अमावस्या अथवा किसी भी सोमवार की marca साधक सफेद धोती पहन कर तेल का एक दीपक प्रज्रललित दीपक के सामने किसी ताम्र पात्र में 'उन्मत्त भैरव यंत्र' (ताबीज) को स्थापित करें। Linha दोनों हाथ जोड़कर भैरव ध्यान सम्पन्न करें-
O primeiro Bhairava é mencionado em Bhishana, o rei do tempo, em ordem,
श्री संहारक भैरवोऽप्यथ रू रूश्चोन्मत्तःो भैरवत्तको भैरव
क्रोधश्चण्ड उन्मत्त भैरव वरः श्री भूत नाथस्ऋन,॥
ह्यष्टौ भैरव मूर्तयः प्रतिदिनं दद्युः सदॾमंगलमॾमंगल
दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि -''मैं अमुक नाम, अमुक गोत्र का साधक अपने लिये उन्मत्त भैरव की साधना में प्रयुक्त हो रहा हूं, शिव के अवतार भगवान शिव मेरे रोगों का शमन करें। श्रेष्ठ संतान प्राप्ति का वरदान दें। ऐसा बोलकर जल को प पप छोड़ दें औ ताबीज व स्फटिक मणि पर काजल एवं सिंदूसिंदू से तिलक क कntas फिर हकीक माला 'से 7 दिवस निम निम्न मंत्र का नित्य 5 माला जप करें-
साधना समाप्ति पर माला व मणि को जल में विसर्जित कर दे तथा ताबीज को सफेद धागे में पिरोकर रोगी के गले (यदि रोग मुक्ति के लिये प्रयोग किया गया हो) या मां ( यदि संतान प्राप्ति के लिये प्रयोग किया गया हो) के गले में धारण करा दें। O que você pode fazer?
É obrigatório obter Guru Diksha do reverenciado Gurudev antes de realizar qualquer Sadhana ou tomar qualquer outro Diksha. Por favor entre em contato Kailash Siddhashram, Jodhpur NFT`s E-mail , WhatsApp, Telefone or Enviar solicitação obter material de Sadhana consagrado e energizado por mantras e mais orientações,