O que você pode fazer? क्या सांस लेने या नहीं लेने से व्यक्ति जीवित या मृत ज जाता है? Linha ऐसे लोग मृत है। मनुष्य तो है, जिंदा भी है, मगर उसके बाद भी मरे हुये से है, इसलिये कि उनमें एक नीरसता है उनमें कोई नवीनता नहीं है कोई नयापन नहीं है, कोई चेतना नहीं है, कोई प्रबुद्धता नहीं है और यदि जीवन में संकट नहीं है, बाधाएँ नही है, अड़चने, कठिनाइयाँ नहीं है तो मनुष्य जीवन हो ही नही सकता मनुष्य जीवन उसको कहते हैं कि हर पग पर समस्यायें आये, कठिनाइयाँ आये और हम उन पर विजय प्राप्त करें। वही जीवत मनुष्य रह सकता है, जो ऐसा कर पाता है।
और विज्ञान इस बात को स्वीकार करता है कि जिन्होंने संघर्ष किया, जो संघर्षशील व्यक्ति है या जानवर है या जीव है वे ही जीवित है हेा जानवर है या जीव है वे ही जीवित जीवित हे य। ज ज ज य वे वे वे वे जीवित जीवित हे हे। ज pos जिनमें संघर्ष की, समस्याओं से जूझने की क्षमता समाप्त हो, वे म मntas गये गये।। सम सम सम हो म म म गये। अभी कुछ समय बीच में आपने बहुत हो हल्ला सुना होगा कि डायनासॉर होता था जो संसार का सबसे लम्बा चौड़ा प्राणी था। आज से हजारों साल पहले आखिर डायनासॉर की मृत्यु हो औ औऔ एक का भी अस्तित्व नहीं हा, एक ड डायनासॉर जीवित ह हा हा, O que você quer? इतना बड़ा लम्बा-चौड़ा प्राणी वह जीवित नहीं marca और मानव जीवित, इसका क्या कारण था? O que você quer?
Linha सबसे पुराने जो जीव, केवल दो है जो पिछले हजारो सालों से हमारे बीच है, एक तो कॉककॉक औ औ हम हम।।।।।।। औ कॉक कॉक कॉक कॉक औ औ एक मेंढक मेंढक मेंढक।। बाकी सब जातिया धीरे-धीरे नष्ट होती गई, बदलती य या परिवर्तित होती गई।।।।।।।। पर उन दोनों में कुछ परिवर्तन नहीं आया और दोनों आज भी वही हैं जो आज से तीस हजार साल पहले थे तीस हजार साल बहुत बड़ी उम्र है और तीस हजार वर्षो से वे जीवित हैं ऐसा क्यों है?
ऐसा इसलिये है कि वे प्रत्येक परिस्थिति में जीवित marca की क्षमता खते है है।। आपने देखा होगा कि बरसात में मेंढक पानी में तैरते हैं, आवाज करते है और जब समाप्त हो जाती है बरसात तो किसी खोखले पत्थर में वह मेढ़क घुस जाता है और उसके ऊपर एक परत आ जाती है, वायु की परत हो या रेत की परत हो । यदि आप भी चार घंटा बाहर बैठ जाये तो आपके ऊपर रेत की परत आ जायेगी और आप सफेद कुर्ता पहन कर चांदनी चौक में निकल जाये तो आपके ऊपर एक धुयें की, रेत की परत आ जायेगी और कुर्ता काला हो जायेगा और चार दिन तक चलेंगे तो Inte आपने चढ़ चढ़ाया नहीं उस मैल को, मगर मैल चढ़ा, कपडों पर भी चढ़ा। मेंढ़क छः महीने पत पत्थर में हते है औ और बाहर से उनको ऑक्सीजन मिलती ही नहीं।।।।।।।। Mais informações तो जो जीव महीने बिन बिना ऑक्सीजन के ह सकता है म म नहीं सकता, क्योंकि उसमे संघर्ष करने की क्षमता है, एक पॉवपॉव है है त त त की है। का है, पॉव पॉव पॉव है एक त ताकत वह अहसास करता है कि जीवन में संघ संघर्ष है, कठिनाई है और कठिनाई होते हुये भी जीवित हने की एक क्षमता और ताकत खता है।। इसलिये मेढ़क जीवित है इसलिये कॉकरोच जीवित है इसलिये ऊँट जीवित है कि वह तीस दिन बाद तक बिना पानी के जीवित रह सकता है, हम और तुम नहीं रह सकते बिना पानी के वह तीस दिन चल सकता है, मरूस्थल में, रेगिस्तान में यह केवल एक छोटा सा उदाहरण है। आप समझ सके जिंद जिंदा वही व्यक्ति marca है जिसमें संघर्ष करने की पूर्ण क्षमता हो और संघर्ष वह करतgio
हमारे ऋषि दो सौ साल, तीन सौ साल जीवित रहे यह हमने सुना और यदि आप उस साधनात्मक लेवल पर है तो आप देख सकते हैं कि पाँच सौ साल, हजार साल के ऋषि योगी आज भी जीवित है और इतनी आयु लिये हुये है और हम केवल साठ साल. ऐसा क्यों हो marca है कि हम साठ साल की आयु में म मर जाते हैं। सत्तर साल के होकर मर जाते है मुश्किल से क कntas सौ साल किसी के होते है भ भा marca
आज व्यक्ति सौ साल भी उम्र प्राप्त नहीं कर पाता व्यक्ति इसलिये टूट जाता है क्योंकि उसके सामने संघर्ष है ही नहीं और संघर्ष नहीं है तो व्यक्ति का जीवन एकसर हो जाता है और जहाँ एकसरता है वहाँ मृत्यु है। आप सुबह उठे, स्नान किया, पेंट पहनी, कुर्त्ता पहना, नाश्ता किया, टिपिफ़न हाथ में लिये और ऑफिस चले गये, फिर ऑफिस से वापस आये, आपका जीवनचर्या ऐसा ही दोहराता है। जीवन में प प्राब्लम आयी, कोई तनाव आया, कुछ अनिश अनिश्चितता आयी कि कल क्या होगा या एक घंटे बाद क्या होगा, किसी ने तलवार लेक लेक आपके सिntas ded. O que você pode fazer? बचना आप का धर्म है। इसका मतलब यह नहीं, कि आप बंदूक स सामने खडे़ जाये कि गुरूजी ने कहा है संघर्ष करना। मगर यदि कोई सामने खड़ा हो जाये तो यह क्षमता होनी चाहिये कि उसे धक धक्का देकर उसके प पप खड़े हो सकें धक धक धक्का देकर उसके प पप खड़े हो सकें। धक इतनी ताकत आप में होनी चाहिये और वह ताकत तब आ सकती है जब आप में आत्मबल हो, यदि आत्मबल नहीं है तो आप जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते और ज्यों ही कोई गोली चली, आप मर जायेंगे और यदि आत्मबल है तो आप खड़े होकर Mais informações
कोई व्यक्ति अपने ओज से ताकतवर नहीं बनता गांधी जी तो शरीर से उतना ताकतवर नहीं थे लेकिन आप और हमसे बहुत ज्यादा ताकतवान थे, अंग्रेजो से लोहा लिया, एक संघर्ष किया लाखों लोगों से और उनकी वाणी में इतनी ताकत थी कि हजारो लोग सूली पर चढ़ गये फ़ांसी पर चढ़ गये, गोलिया खा गये। आपके कहने से व व्यक्ति भी गोली ख खायेगा, आपके कहने एक व व्यक्ति भी संघर्ष नहीं करेगा। आपके कहने से व्यक्ति भी छोड़क छोड़क सड़क प प नहीं उतउता आपके कहने से एक व्यक्ति भी प परिवार को छोड़कर जेल मे नहीं जायेगा। O que você está fazendo? यह तो अभी की घटना है पचास साल, साठ साल पहले कि। Mais informações उस व्यक्ति में आत्मबल था कि ऐस ऐसा कर के छोडूंगा और आप में आत्मबल नहीं है तो आप सोचते कि कि होगा या नहीं होगा। आप बस कहते है चलो, कोशिश कर लेते हैं यही से आपका भय स्टार्ट हो जाता है, जब भय आरंभ हो जाता है तो उस भय के साथ मृत्यु जुड़ी होती है क्योंकि मृत्य और भय एक ही शब्द है।
Mais informações आर्मी वाले क्या करते है आ आर्मी ऑफिसर एक दिन में उनको एक हजार बार एक लाइन बुलवाते हैं। 'जो डरा सो मरा' बस यही उनकी प्रार्थना होती है, उनकी स्तुति भी यही होती है, कोई 'ऊँ नमः शिवाय' नहीं करते है वो सुबह उठते ही सबसे पहले यही बोलते है कि जो डरा सो मरा। फिर सोते है तो भी यही कहते हैं - पूपू दिन भ भ में एक सैनिक को हज हजार बार बुलवाते हैं वो दूस दूसntas दूसरा भी यही कहता है। यदि आप आर्मी फिल्ड में जाये तो वहां दीवारों पर कुछ और लिखा नहीं होता श्री कृष्ण या marca जी की होत होत श्री कृष्ण या marcaम जी जय जय, ऐसा लिखा नहीं होता या। Mais informações sobre como fazer isso यह क्या चीज है? ऐसा क्यों करतेहैं? O que você pode fazer? ऐसी क कक हैं इसलिये वह उन औ औ औ बमों बीच नि निर्भीकता से चला जाता है मर सकता है, जिंदा भी ह सकत सकता है। मगर जिंदा marca के चान्स ज्यादा होते क क्योंकि उनमें एक हिम्मत, एक साहस, एक क्षमता पैदा होती है कि देखा जायेगा। जीवन के छो छो प ded जन्म है, एक छो पntas
Este é o primeiro lugar para você! तु क कायर, तुम बहुत बुजदिल क क्योंकि तुमने ऐसा ही अपने भीतर पैदा किया। तुम भयभीत हो, तुम त ताकत और निर्भीकता नहीं है, तुम क क्षमता नहीं, तुम में होसल होसल नहीं है औऔ मैं कहता हूँ तू तुम में होसल को प औ औ औ मैं कहता हूँ तू म म म को प प्राप devo यदि तू मर भी जायेगा तो स्वर्ग मिलेगा, जो कृष्ण ने कहा मैं वह बात दोहरा रहा हूँ स्वर्ग है नर्क है अप्सरायें हैं या नहीं है मैं इस विषय को नहीं उठा रहा हूँ। उस अर्जुन को समझाने के लिये श्री कृष्ण ने कहा- कि यदि तू जिंदा रह गया तो विजय प्राप्त करेगा, लोग जय जयकार करेंगे और आने वाली हजार पीढि़या तुम्हें याद करेंगी दोनों स्थितियों में तुम्हें लाभ ही लाभ है हानि है ही नहीं। Mais informações
अर्जुन युद्ध के तैय तैयार हुआ, धनुष बाण हाथ में लिया और तीर संधान करके अपने सामने जितने भी खड़े थे उन Para यहां तक कि उनके पुत्र की मृत्यु हो गई, अभिमन्यु की युद्ध में मृत्यु हो गई द्रोणाचgioger । क्या विशेषता थी कि वे मृत्यु को प्राप्त नहीं औ और दुर्योधन, दुशासन जो थे मम गये।। ऐसा हुआ क्या था? युद्ध तो दोनों ब बराबर हो ह हा था, बराबरी थी में में ह, दोनों गु गुरू एक ही।।। द्रोणाचार्य पांडवों के गु गुगु थे औ और कौरवों के गु गुरू थे।। Linha लेकिन कौरवों में भय था कि हम हारेंगे, इसमें दो राय नहीं है हम हार जायेंगे क्योंकि उधर कृष्ण बैठे हैं और पांडवों को पूर्ण विश्वास था कि हम हार ही नहीं सकते, क्योंकि हमारे साथ कृष्ण खडे़ है। हम कहां से हारेंगे हारने का सवाल ही नहीं है।
यह भय और अभय के बीच की स्थिति थी और वह व्यक्ति जिंदा रह सकता है जो संघर्ष कर सकता है, जो संघर्ष करने की क्षमता रखता है, जो संघर्ष को अपने जीवन में निमंत्रण देता है, जो संघर्ष को बुलाता है, जो अपने सामने संघर्ष को उत्पन्न करता है और फिर संघर्ष से जुझता है, वही सफलता प्राप्त करता है आनंद आनंद, असीम आनंद अनुभूति क कका क है। कोर्ट में आप केस लड़ते है तो हर बार आप भयभीत रहते है कि हारेंगे या जीतेंगे कहीं हमारा वकील दूसरे के साथ मिल गया क्या है, पता नहीं और आपके मन में तनाव और तनाव के अलावा कुछ नहीं होता। मगर आप जब जीत जाते हैं तो आपके चेहरे की प्रसन्नता और मुस्कुराहट इतनी तेज होती है कि शीशा भी एकदम तड़क जाता है उस दिन क्या हो गया था और आज क्या हो गया है? पहले आप भयग्रस्त थे, जीते तो भय से मुक्त हुये। इसलिये यदि जीवन सफलत सफलता प्राप्त करनी है जूझन जूझना ही पड़ेगा, विश्वास के साथ, दृढता के साथ।।।
जब सन्यासी दीक्षा लेता है, एक सन्यासी, गृहस्थ नहीं, तो निर्भीकता से दीक्षा लेता है।।। Mais informações आप में से गृहस l है है नहीं क l पत्नी आपकी नहीं नहीं, पुत्र आपका है नहीं, पति आपका है नहीं, बंधु-बांधव आपके नहीं नहीं, मकान जायदाद आपके है नहीं।। नहीं नहीं, मकान जायदाद आपके है नहीं।। अगर ये आपके होते तो आपके सत्तर साल के इतिहास में मैंने तो देखा नहीं कि पति गया तो पत्नी भी साथ में मरी, मकान को भी जला दिया, नोट के टुकड़े भी अंदर आग में डाल दिये। O que você pode fazer? इसलिये गृहस्थ व्यक्ति भी सन्यासी है और सन्यासी व्यक्ति भी गृहस्थ है और गृहस्थ व्यक्ति भी गृहस्थ नही औ औऔ Para दोनों एक ही जगह जलते है, एक ही प्रकार की लकडि़यों से जलते हैं और एक ही जगह जाते होंगे या कब्र में उसे गाड़ देते हैं, या नदी मे प्रवाहित कर देते है या लकडि़यों में जला देते हैं।
Linha अब वे व वव पीक पीकntas उन्हें गतिहीन देखकर पक्षियों ने कोई वृक्ष समझ कक उनकी जटाओं में बन बनाकर वही अण्डे दे वे दय दयालु महर्षि चुपचाप खड़े हे हे हे। पक्षियों के अण्डे बढ़े और फुटे, उनसे बच्चे निकले बच्चे भी बड़े हुये, उड़ने लगे।।। जब पक्षियों के बच्चे उड़ने में पूरे समर्थ हो गये और एक बार उड़कर पूरे एक महीने तक अपने घोंसले में नही लौटे, तब जाजलि हिले वे स्वयं अपनी तपस्या पर आश्चर्य करने लगे और अपने को सिद्ध समझने लगे। उसी समय आकाशवाणी हुई-'जाजलि! तुम गर्व मत करों। काशी में marca वाले तुलाधार वैश्य के समान तुम धार्मिक नही हो। ''
आकाशवाणी सुनकर जाजलि को बड़ा आश्चर्य हुआ। वे उसी समय चल पडे़। काशी पहुँचकर उन्होंने देखा कि तुलाधार एक साधारण दुकानदार है औऔ अपनी दुकान पर बैठकर ग्राहकों को तौल-सौदा दे हे हे हे हैं हैं हैं परन्तु जाजलि को उस समय और भी आश्चर्य हुआ जब तुलाधार ने बिना कुछ पूछे उन्हें उठकर प्रणाम किया, उनकी तपस्या का वर्णन करके उनके गर्व तथा आकाशवाणी की बात भी बता दी।
जाजलि ने पूछा-'' तुम तो स सामान्य बनिये, तुम्हें इस प्रकार का ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ? तुलाधार ने नम्रतापूर्वक कहा-'ब्राह्मण! O que você pode fazer? मैं न मद्य बेचता हूँ, न और कोई निन्दित पदार्थ बेच O que você pode fazer? ग्राहक बूढ़ा हो या बच्चा, भाव जानता हो या न जानता हो, मैं उसे भ भाव में उचित वस्तु ही देता हूँ उसे
O que você pode fazer? ग्राहक की कठिनाई का लाभ उठाकर मैं ल लाभ भी उससे लेत लेता हूँ।। ग्राहक की सेवा करना मेरा कर्तव्य है, यह बात मैं सदा स्मरण खता हूँ ब ग्राहकों के लाभ और उनके हित का व्यवहार ही मैं करता हूँ, यही मेरा धर्म है।'' तुलाधार ने आगे बताया- 'मैं राग-द्वेष और लोभ से दूर रहता हूँ। Mais informações sobre como fazer isso हिंसा रहित कर्म ही मुझे प्रिप कामना का त्याग करके सब प्राणियों को समान दृष्टि से देखता हूँ और सबके हित की चेष्टा करता हूँ औ औ औ सबके की की चेष Para
जाजलि के पूछने पर महात्मा तुलाधार ने उनको विस्तार से धर्म का उपदेश किया। उन्हें समझाया कि हिंसायुक्त यज्ञ परिणाम में अनर्थ कारी ही है। वैसे भी यज यज्ञों में बहुत अधिक भूलों के की सम्भावना हती है औ औ थोड़ी-सी भूल समरीत परिणाम देती है।।। प्राणियों को कष्ट देने वाला मनुष्य कभी तथा परलोक में नहीं नहीं प्राप्त कर सकता। 'अहिंसा ही उत्तम धर्म है।' जो पक्षी जाजलि की जटाओं में उत्पन्न हुए थे, वे बुलाने पर जाजलि के पास आ गये। उन्होंने भी तुलाधार के द्वारा बताये धर्म का ही किय किया। तुलाधार के उपदेश से जाजलि का गर्व नष्ट हो गया।
इस शरीर में ताकत नहीं है और भय के अलावा इस जीवन में कुछ है ही नहीं प्रारम्भ से ही आपके मन में भय है और जहां भय है वहां मृत्यु है ही क्योंकि भय और मृत्यु एक ही चीज हैं और कृष्ण भी हमें क्यों याद आ रहे है ? और मदनलाल जैसे क्यों नहीं याद आ marca जो कृष्ण के साथ पैदा हुये थे।। इतने कौकौ पैद पैद पैद थे आप में कौ कौ कौ होंगे, पांडव होंगे क्योंकि आपका भी जन्म तो बराब ded होत ही हा है य य कौ कौ कौ में सेन सेन में होंगे य प य यnch तो में में में सेन में में य प य य य य य य में में में सेन सेन सेन य य य य यय य य य में में में सेन सेन सेन य य य प य य यntas मगर आपका नाम किसी य याद नहीं द द्वापर में क्या था, मगर कृष्ण का नाम याद है।। इसलिये उन उन्होंने जिन्दगी के प्रा mundo से लगाकर अंत संघ संघर्ष के अलावा कुछ किया ही।।।।।।।।।।।।।।। सुख नहीं मिला उन्हें पूरी जिन्दगी . सुख जैसी चीज उन्होंने देखी ही नहीं। पैदा होते ही कंस ने मारने की कोशिश की, वह दो महीने के थे तो पूतना ने आकर मारने की कोशिश की, थोड़े से बड़े हुये तो बकासूर आया, फिर कंस ने एक और राक्षस को भेजा, फिर और किसी प्रकार से मारने का उपक्रम किया , कालिया नाग आया और उनको उसने मारने की कोशिश की जिंदगी के प्रारम्भ से लेकर अंत तक कृष्ण का कौन सा सुख मिला, एक दिन भी एक मिनट भी सुख नहीं मिला। O que você quer, como você pode? एक बार भी हारे नहीं, विजयी हुये औऔ उन सारे संघर्षों का सामना करते हुये। इसलिये कृष्ण याद आ marca है, इसलिये मदनलाल याद नहीं आ marca है, इसीलिये हेम हेमntas
राम ने कहां सुग एक दिन भी सुख देखा हो तो मुझे बता दीजिये पत्नी के साथ जंगल-जंगल भटके एक राजा के बेटे होकर भी, पिता का दाह संस्कार नहीं कर सके, कैकेयी के षड़यंत्र का सामना करना पड़ा, कैकेयी ने षड़यंत्र किया कि भरत किसी तरह राज गद्दी पर बैठ जाये और वे षड़यंत्र उस समय भी चलते आज भी चलते हैं औ और संघर्ष के अलावा marca ने कुछ देखा संघ नहीं, इसलिये आज र र यncerद य हे हे हैं। नहीं नहीं इसलिये इसलिये आज र र र य याद आ हे हे हैं।। हमारे जीवन में अगर संघर्ष नहीं है तो हम मृत्यु युक्त हैं, हममें और एक मरे हुये व्यक्ति में डिफरेंस कोई नहीं है, इसलिये हम मरे हुये व्यक्ति है और आश्चर्य यह है कि मरे हुये व्यक्ति है और सांस ले रहे हैं और ऐसे लोगों को देख कर बड़ा आश्चर्य होता है कि ये कैसे मृत व्यक्ति हैं, जो सांस भी ले हे है है औ चल भी जो स स है भी भी ले हे है औ औ चल जो स स स है।
गाँव में छोट छोटा मोटा शिकारी था जिसको कोई खास बंदूक चलाना आता नहीं था। बेटे ने एक कह कहां कि आप बहुत शिक शिकारी हैं, उसने कहा-अरे शिकारी! Mais informações शेर का शिकार करना कोई सीग Mais informações sobre como fazer isso Mais informações वहीं ऊपर एक चील उड़ रही थी, एक कौआ उड़ रहा था। बेटे कह कहा-आपने बाघ को मार दिया तो उस कौवे को भी मार सकते है बंदूक की गोली से? बाप ने कहा- यह दो मिनट का काम है। Mais informações sobre como fazer isso Mais uma vez-कौआ बाप ने कहा- यही विशेषत विशेषता है कि गोली लगने ब बाद भी मरा नहीं।। आप देखिये लगी उसको, फिर भी उड़ता रहा। Mais informações यह साधना है।
यह अपने बेटे को भूल में डालने के लिये झूठी प्रक् O que você pode fazer? O que você pode fazer? वह खुद गुम गुमगुम थ था ही, बेटे भी गुम गुमगुम क कक दिया और हम जीवन में क कntas इसके अलावा आप कुछ करते नहीं, कर नहीं सकते। यह समझ प्राण के भीतर तक नहीं उतर सकती। यह समझ पू पूरे व्यक्तित्व की समझ नहीं आत आत्मिक नहीं है।। इसलिये ऊपर से समझ आत आता हुआ लगेगा और जब यह यहां बैठ कर सुन हे हैं हैं, तब तक ऐसा लगेगा, बिल्कुल समझ में गय गया। Mais informações क्योंकि जो समझ में आ गया है, जब तक वह आपके खून, मांस, मज्जा में सम्मिलित न हो जाए, तब तक वह ऊपर से किये रंग-रोगन की तरह उड़ जायेगा।
फिर, जो समझ में गय गया है, उसके भीत आपकी आपकी पुरानी सब समझ दबी हुई पड़ी है।। जैसे यह यहां से, वह भीत भीत की सब समझ इस नई समझ के साथ संघर्ष शुरू कर देगी। वह इसे तोड़ने की, हटाने की कोशिश करेगी। इस विच विचार को भीतभीत प्रवेश करने में पुराने विचार बाधा देंगे, अस्तव्यस्त कर देंगे हजार शंक शंक अस अस अस अस अस उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ ज ज ज उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ उठ ज जज औ औ झलक झलक जो उठ उठ उठ उठ उठ ज जqui औ औntas औ हो वह जो जो उठ उठ उठ उठ उठ ज जाएंगे औऔअग अग शंक है हो। जो जो जो उठ ज ज जाएंगे और अग अग शंकundo है हो झलक जो खो ज ज जाएंगे और अग अग शंकundo है हो। जो खो उठ ज जundoएंगे औ अगntas एक उप उपाय है जो बुद बुद्धि की समझ आय आया है, उसे प्राणों की ऊर्जा में ूपांतरित कर लिया जाये, उसके साथ हम त तालमेल निर्मित जाये हम स साधे भी केवल विच विचा marca तो ही धीरे-धीरे ऊपर गया है, वह गहरे में उतउता और साधा हुआ सत्य फिर आपके पुराने विचार उसे न सत सत सकेंगे।।। सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे Linha
एक व्यक्ति के घर में ही हीरे की अंगूठी खो गई, बहुत तलाश किया नहीं मिली, तो यह बात उसने अपने मित्र को बताई, मित्र घर पर आया, उसने देखा घर में बहुत सारे चूंहे हैं, धीरे-धीरे सभी चूहों को एक घेरे में इकठ्ठा किया, एक चूहाँ उन सभी चूहों से बैठा marca, घर का मालिक यह सब देख हा था, मित्र ने कहा कि ही हीntas मालिक ने मित्र से पूछा कि तुम्हें कैसे मालूम तो मित्र ने जबाव दिया कि जो धनी हो जाता है, वह अपनो से, समाज से कटा-कटा रहता है क्योंकि उसे धन का अहम् होता है और उसके लिये धन के अलावा परिवार या समाज से कोई सरोकार नहीं रहता।
लोग बड़े पदों की तलाश करते हैं। Mais informações जैसे पिरामिड होता है नीचे बहुत चौड़ा और ऊपर संकरा होता चला जाता है। उस भीड़ में अगर तुम खड़े हो, तुम अकेले नहीं हो! इसलिए हर एक कोशिश कर ा है पि पिरामिड के शिखर पर कैसे पहुँच जाऊँ। जहाँ वह बिल्कुल अकेला होगा, सबके प पर होगा और उसके प पर कोई नहीं।।।।।।। पद की अग अग बहुत गह गहntas मैं प पर निर्भर न marca, तभी तो मैं सकूंग सकूंगा, मैं हूँ अप्रतिम, अद्वितीय और सबसे ऊपर और मेरे ऊपर औ औऔ औ नहीं।।
भगवान बुद्ध के जीवन में भी ऐसा हुआ, एक समय आया जब वे सीमाहीन हो गए और भगवान बुद्ध के अनुयायी उस वृक्ष की आज भी पूजा, अर्चना करते हैं, जहाँ उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई, जिस वृक्ष के नीचे वे सीमाहीन हुये उसे बोध वृक्ष कहा गया। गौतम बुद्ध जब, अन्न का त्याग कर वृक्ष के नीचे क कर थे, असाध्य तप कक हे क थे उनक उनक उनक उनक अस उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनकntas उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनकntas उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनकntas भूख-प्यास से उनका शरीर पीला पड़ता जा रहा था, उनकी ऐसी स्थिति देख एक दिन सुजाता नाम की स्त्री उनके लिए खीर लेकर आई और गौतम बुद्ध को खीर ग्रहण करने लिए कहा, उस स्त्री ने बुद्ध से विनती की आप खीर खा लें, आप दुर्बल हो marca, ऐसे तो आप परम लोक ज जायेंगे, पर ज्ञान की प्राप्ति ना हो पायेगी।। लेकिन बुद्ध ध्यानरत ही marca, उसी समय बंज बंजारा गीत गाता हुआ वहीं से निकल हा था। गीत का आशय था- वीणा के तार इतना न कसो कि ज जाये और इतना ढ़ीला भी न छोड़ो कि स्वर ही न बजे ढ़ील ढ़ील। भी भी कि स स्वर ही न बजे ढ़ील यह स्वर, यह गीत बुद्ध को चुभ गया।
एक गीत ने सिद्धार्थ गौतम की विचार धारा बदल डाली कि कष्ट साध्य जप, तप से ईश्वर की, ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती, और उन्होंने फिर वह खीर खाई और कहा कि संसार में रहते हुये मध्यम मार्ग से तप करना ही श्रेष्ठ है, नहीं तो जीवन का तार टूट जायेगा और अगर तार टूट गया, तो वीणा रूपी शरीर का कोई अस्तित्व ही ना बचेगा, वीणा का अस्तित्व तब तक है जब तक तार बना हुआ है। जीवन का सत्य भी यही है कि आपके वीणा का तार सही रूप में कसा हो, ना ज्यादा, ना कम, कम होने पर भी हानि क्योंकि तब कोई ध्वनि ना होगी, कोई स्वर ना आयेगा और अगर ज्यादा कस दिये तो तार टूटने का भय है । इसलिए बुद्धिमान वह है, जो समय के पहले समझ जाये। तुम ड डाल की भांति व्यवहार मत करना और जब कोई संत तुमसे कहे कि तुम टूट गये हो, तो उसकी बात पर सोचना। और जब कोई बुद्ध तुमसे कहे कि म म म ही चुके हो, तब जल्दी मत करना इन्का marca सांस चलने से जीवन का कोई अनिवार्य सम्बन्ध नहीं ं सांस चलती रह सकती है।
ऐसा बहुत बार आपको समझ में आ चुका है न मालूम कितनी बार आप सत्य के करीब-करीब पहुँच कर वापस हो गये है न मालूम कितनी बार द्वार खटखटाकर भर था, कि आप आगे हट गये हैं और दीवार हाथ में आ गई है। भूल यहीं ज जाती है कि हम हमारी समझ आता है उसे हम तत्काल जीवन ूप ूपांतरित नहीं तत तत्काल अगर आपको ग गाली दे, तो तत तत्काल क्रोध करते है और आपको कोई समझ दे, तो आप तत्काल ध्यान नहीं कर सकते सकते। कुछ बुरा करना हो तो हम तत्काल करते है, कुछ भला करना हो तो हम सोच-विचार करते हैं।।। ये दोनों मन बड़ी गह गहntas बुरा हम करना चाहते हैं इसलिये तत तत्काल करते है, एक क्षण marca नहीं क्योंकि ूके तो पिफ़ क क्षण ूकते नहीं क l ूके ूके पिफ़ क कntas
मानव मन हमेशा संकल्पों विकल्पों से घिरा marca, इसीलिये जब भी हम कोई कार्य प्रा conseguir जब हम किसी साधना में प्रवृत् होतृ O que você pode fazer? परन्तु जब साधना धीरे-धीरे अपने मध्य चरण में प्रवेश करती है तभी हमारा मन अधीर हो जाता है तथा हम इस बात पर विचार करते है कि हमें सफलता क्यों नहीं मिल रही कौन-सी न्यूनतायें है, हम यह समझ बैठते हैं कि अब इस साधना में हमे सिद्धि नही;
इसका प्रमुख कारण मन की चंचलता होती है और जब मन चंचल होता है तथा उसके सामने कोई निश्चित लक्ष्य नहीं होता है तथा उसके मन की निश्चित धारणा नहीं होती है तो वह इधर-उधर भटकने लगता है और मन साधना के मार्ग पर दृढ़ निश्चयी नहीं हो पाता है। वास्तव में साधना के क्षेत्र में निर्बल, कमजोर, अस्थिर मन सदैव असफलत असफलता ही देता है।।।।।।।।।। प्रत्येक मनुष्य का मन व धारणा अच्छे का conseguir लेकिन आलस्य तथा स्वार्थ के कारण मनुष्य मन आत्मा की पुकार को भी अनसुना क ded देत है औntas O que você pode fazer? मन को शक्तिशाली, संस्कारी, संवेदनशील बनाना चाहिये, मन जितना सुन्दर निर्मित होगा, जीवन उतना ही श्रेष्ठ बनेगा। मन को श्रेष्ठ कार्यो में एकाग्रचित करने पर ही जीवन में श्रेष्ठता आती है।।।
एक पुजारी जो पुजा बहुत अच्छे से किया करता था उसका भगवान पर बहुत विश्वास था। उसे लगत लगता था कि अगर भगवान चाहे तो बहुत हो सकत सकता है उसका जीवन धन धन्य हो सकता है। मगर ऐसा कुछ होत होता हुआ नजनज नहीं ह हा था क्योंकि उसके में प पपानी कम नहीं हो ही थी बल बल्कि बढ़ती ज जा ही कम थी। वह जीवन में अनेक परेशानियों का सामना कर रहा था। उसके घर में भी बहुत प परेशानी थी और बाहर भी ऐसा ही चल marca था था। वो मन्दिर में जाता है भगवान से प्रार्थना करता है मेरी समस्या बढ़ती जा रही है वो कम नहीं हो रही है घर में पत्नि भी इस बात को लेकर परेशान है वह हमेशा ही यह बात कहती है कि हमारा जीवन कब तक ऐसा ही चलेगा कब तक हम मुसीबत का सामना करते हेंगे यह सब कुछ दू दूदू होगा कही तो र र यह यह ज दू दू दूहोग होग तो तो रतो र र र ज ज ज जntas मुझे लगत लगता है जीवन अच अच्छा होने वाला है एक आदमी मन्दिर में आता है वो पूजारी की बात सुन लेता है। उसके बाद पूजारी के पास आता है और कहता है कि मैं भी भगवान के पास अपनी समस्या लेकर आया हूँ मगर आपकी बाते सुनकर तो ऐसा ही लगता है कि मुझे कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है क्योंकि जब आपके भगवान नहीं सुन रहे है तो मेरी बाते कैसे सुन सकते है।
आप तो मन्दिर में हमेशा ही रहते है भगवान आपकी बात सुनते है मगर वो आपकी समस्या दूर नहीं कर रहे है तो मेरी प्रार्थना करने से क्या होगा तभी पुजारी कहता है कि ऐसा नहीं है वो आपकी बात भी सुनते है और मेरी बात भी मगर फल- हानी कुछ समय बाद ही मिलता है। क्योंकि जब तक हमारे जीवन में खुशी नहीं आती है तब तक का समय तो हमे ऐसे ही बिताना होगा हमे इन्तजार करना होगा जब तक भगवान हमसे खुश नहीं हो जाते है तब तक हम कुछ नहीं कर सकते है हमे कुछ समय बाद ही फल मिलेगा आपको भगवान से प्रार्थना करनी होगी शायद वो आपसे जल्दी खुश हो जाये और आपकी मनोकामना पूरी हो जाये अब वो आदमी बात को समझ जाता है पूजारी सही कह रहे है वो अपनी बात भगवान से कहता है। कुछ समय बाद पूजारी के पास एक आदमी आता है और कहता है आपको एक और काम दिया जाता है आपको इस मन्दिर के साथ दूसरे मन्दिर में भी जाना होगा जिससे आपकी समस्या भी दूर हो जायेगी वो पूजारी कहता है कि आप चिन्ता न करे मैं सभी काम देख सकता हूँ। धीरे-धीरे पूजारी की समस्या भी कम हो जाती है कुछ समय बाद वो आदमी भी आता है जिसने पूजारी की बात सुनी थी अब उसकी समस्या भी धीरे-धीरे कम हो रही है उसे विश्वास था कि भगवान मेरी समस्याये दूर कर सकते है। इसलिये आप भी अपने गुरू और इष्ट फ
अपने मन को समस्त संकल्प विकल्प से ऊपर उठा कर एकमात्र इष्ट अथवा गुरू चरणों में दृढ़ करें क्योंकि शास्त्रों में साधना की सफलता से सद्गुरू का महत्त्व सर्वोपरि बताया गया है। समस्त आध्यात्मिक और भौतिक प्रगति के आधार सद्गुरू ही होते है।।
अतः प्रकृति के चक चक्रो-उपत्यिकाओं, इड़ा पिगंला, सुषुम्ना आदि नाडि़यों का उनके परिष्कार का ज्ञान गुरू कृपा से मिलत मिलता क ज ज ज्ञान गुरू कृपा से मिलत मिलता है गुरू मनुष्य marca में वस्तुत सच्चिदानन्द धनरूपी परमात्मा का दर्शन कराने वाली झरोखे ूपी सत्ता है क क क क क काली उसी के माध्यम से हमें अनन्त का विस्तार दिखाई पिस्तार दिखाई पडा Mais informações साधना एक प्रकार से शरीरीger O que você pode fazer?
परन्तु अधिकांशतः होता यह है कि जब हम एक साधना में सिद्धि नहीं प्राप्त कर पाते है तो उसे छोड़ कर यह सोचते है कि दूसरी साधना में हमे शीघ्रता से सफलता मिल जायेगी, ऐसा सोच कर हम डाल-डाल दौड़ते है और संशयात्मक प्रवृति तथा नास्तिकता के भाव की वृद्धि होती है। ऐसी स्थिति इसलिये है क्योंकि व वास्तव में गु गुntas
जब हमारे समक्ष ऐसी स्थिति उत्पन्न हो तो हमे तत्काल समस्त साधनाओं को छोड़कर एक मात्र गुरू चरणों में समर्पित हो जाना चाहिये क्योंकि सभी साधनाओं रूपी वृक्ष के मूल में तो गुरू ही है। गुरू से जुड़े हने हने से घ घntas इष्ट या गुरू से नाता तोड़ने से जीवन की हह कुस्थिति की ओर अग्रसर हो जाते हैं।।
हम अपने सद्गुरूदेव जी अन अन्य भौतिक वस्तुओं के शब्द चित्र अथवा marca चित्र द्वारा व्यक्त नहीं करूप O que você pode fazer? उपमा भी समान धर्मा वस्तु से ही हो सकती है। यदि ऐसे ब्रह्म स्वरूप गुरू के सानिध्य में रहकर भी हम साधना के क्षेत्र में संशय और भ्रम से घिरे हों तो हमारे जैसा भाग्यहीन व्यक्ति कोई हो ही नहीं सकता। अतः अवस अवसntas है कि अपने गु गुntas
यही बात समझाते हुये श्री marca परन्तु उन्हें समझ नहीं आया जब गुरू ने एक शिष्य से कहा कि कल्पना करों तुम मक्खी हो सामने एक कटोरा में अमृत रखा है, तुम्हे पता है कि यह अमृत है, बताओं उसमें कुदोगे या किनारे बैठकर स्पर्श करने का प्रयास करोगे? उत्तर मिला किनारे बैठकर चाटने का, बीच में कूदने पर जीवन ही समाप्त हो जायेगा। साथियों ने शिष्यों की बात को सराहा परन्तु गुरू मुस्कराये और बोले अरे मुर्ख ''जिसके स्पर्श से तू अमरता की बाते करता है उसके बीच में कूद कर भला मृत्यु कैसे?'' इससे स्पष्ट होता है कि जब साक्षात ब्रह्मा ही गुरू स्वरूप हमारे सामने है तो फिर हम क्यों किसी छोटी-सिद सिद्धियों के भ भ्रमित हुये भटकते हे।।।।।। भटकते भटकते हे।। हमें तो गु गुरू के चरणों में अपने पू पूर्ण ूपेण न्यौछावर कर देना चाहिये। तथा आत्मा और मन के भाव से गुरू को धारण करने के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं क्योंकि- कारज धीरे होत है काहें होत अधीर यह समर्पण एवं गुरू की इच्छा में अपनी हर इच्छा का विसर्जन जैसे-जैसे प्रगाढ़ होता चला जाता है, साधना उच्चतर आयामों पर पहुँचने लगती है, यह समस्त प्रक्रिया धीरे-धीरे एवं पूर्ण मनोयोग से ही संभव है।।।।। प्रत्येक गुरू सर्वप् marca ताकि उनकी दी ज ज्ञान कहीं व्यर्थ न ज जाये इसके हमें हमें म मात्र दृढ़ निश्चय करके गुरू चरणों में लीन होने आवश आवश्यकता है न कि चntas
Sua Santidade o Sadhgurudev
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