गणेश उपनिषद् का यह एक महत्वपूर्ण श्लोक है। सभी साधकों के इस श्लोक में प प्रश्नों को उठाया है, जो प्रश्न हृदय में उठ हैं।।। इन श्लोक में उन प्रश्नों के उत्तर दिए हैं, जो आपके लिये जरूरी हैं।।
प l हम किन क क है है हम हम हम हम हम हम हम हम हम प प प प प प प प प प जीवन किन किन किन क क क क से तनावमय, दुःखमय, चिंतामय marca हैं? इग्लैण्ड और अमेरिका में, जहां देवताओं ने जन्म लिया ही नहीं, वहां लोग सुखी क्यों हैं? क्या कारण है, कि हम दुःखी औ औ औ वे सुखी हैं, उनके पास धन, इसका मूल कारण क्या है?
यह आप लोगों एक शंका है, कि ज ज्यादा सुखी औ औऔ आप दुःखी औ औ ded. यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि हम इतने दरिद्र, हम प परेशान क्यों हैं? यदि यहां गणपति हैं, यहां शिव हैं, लक्ष्मी हैं, साधनायें हैं, मंत्रजप हैं, गुरू हैं तो ये सब होते हुए भी क्यों हमारी दरिद्रता नहीं जाती है?
हमारी परेशानियां क्यों नहीं मिटती हैं और हमारे जीवन में अभाव क्यों है?, यह आप लोगों का ही सोचना है कि आप दुःखी हैं, इसलिये की आप ने वहां का जीवन देखा ही नहीं है। वे यह यहां आते तो बहुत अच अच्छे कपड़े क कntas
24 घण्टे वे काम में लगे marca हैं, चाहे पति हो, चाहे पत्नी हो, चाहे बेटा हो या बेटी हो, सात दिनों में वे दूस दूसntas यहां जो पारिवारिक वातावरण आपको मिलता है, उनको नहीं मिलता। मैं घ घntas में हा हूं औ औ कई बार ा हूं, एक बार नहीं बीस बार। मैंने देखा है उनको तनाव में, दुःख में। जितना दुःख उनको है, आपको नहीं। वहीं पर आत्महत्या की दर 22 प्रतिशत हैं। हमारे यहां केवल 6 प्रतिशत है। ऐसा क्यों हो रहा है? इसलिये कि उनके जीवन में धर्म का और गुरू का कोई स्थान नहीं है और हमारे जीवन में धर्म का स्थान है और हम फिर भी ज्यादा संतुष्ट हैं। आपके जीवन में जितना धन है, उतना ही वहां है। यह केवल आपकी कल्पना है, कि वे वहां पर सुखी हैं। जब यह यहयह यह आते तो अच अच्छे कपड़े पहने होते, अच्छी घड़ी है है, अच्छा बैग होता है, लेकिन उनके बैग से आप उनके जीवन को नही आंक, उनके मूल l को नहीं आंक उनके जीवन को को आंक सकते, उनके मूल्य को नहीं आंक सकते सकते। को को आंक सकते, उनके मूल्य को नहीं आंक सकते सकते। वे आपसे ज्यादा परेशान, दुःखी और संतप्त हैं। सुबह उठते हैं पति अपनी चाय बनाकर पीता है, पत्नी अपनी चाय बनाकर दौड़ती, आपस में मिलते ही नहीं, सात दिनों एक एक बार मिलते हैं। Marca को ग्यारह बजे आते हैं तो होटल ख खाकर आते औ औऔ लेट जाते हैं।।।।।।।। हमारी केवल कल्पना है कि वे सुखी हैं। जब हम अपने में ईश ईश्वर को स्थान नहीं पाते, तो हमारे जीवन प परेशानियां और बाधाये आती।। इसका मतलब यह नहीं है कि हम परेशान नहीं है— मगर उसका समाधान है।।
समाधान तभी होगा जब आस्था हो, विश्वास हो। जब विश्वास डगमगा जाता है, तब जीवन में धर्म नहीं रह पाता, आस्था नहीं रह पाती, पुण्य नहीं रह पाता, जीवन में प्रगति नहीं हो पाती और इस श्लोक में यही बताया गया है कि जीवन में पूर्ण रूप से समृद्ध हो सकते हैं और वह भी कुछ ही समय में। ऐसा नहीं है कि मंत्र जप आज कक औ औntas दुःख आपको आज हैं, धन प परेशानी आज औ औऔ मैं तुम्हें मंत्र दूं और पांच साल बाद लाभ मिले तो मंत्र का कोई फायदा नहीं नहीं है है
आप ट्यूब लाइट या बल्ब लगायें और स्विच दबायें और दो साल बाद लाइट आये तो लाइट की उपयोगित उपयोगिता नहीं है है है है है है है है है है बटन दबाते ही लाइट होनी चाहिये तो वह लाइट सही है। मंत्र को करते ही आपको लाभ होना ही चाहिये। यदि ऐसा है, तो गुगु सही हैं अन्यथा गुरू फ्रॉड हैं, फिर छल है, झूठ है, वह गुरू बनने के काबिल नहीं।।। मगर आवश्यकता इस बात की है कि ट्यूब लाइट सही हऋयी मैं यहां बटन दबाता marca और ट्यूब आपकी फ्रयूज है, तो मैं जल जला नहीं सकता। यदि आपमें आस्था है ही नहीं, न गणपति में है, न गुरू में आस्था है, न देवताओं में आस्था है तो मैं कितने ही बटन दबाऊं, आपको लाभ नहीं हो सकता और लाभ नहीं हो सकता तो फिर आप कहेंगे बिजली बेकार है, मैंने ट्यूब लाइट लगाई है पर जलती नहीं है। तो तो लाइट जल नहीं नहीं सकती स साल तक दबाते marca तो ल लाइट नहीं तक बटन दब दबाते हें तो लाइट नहीं सकती।। आवश्यकता इस बात की है कि आप ब बात को औ औऔ आपको अनुकूलता प्राप्त हो।
हमारे मन में विश्वास नहीं marca देवताओं के प्रति, अपने प पर भी विश्वास नहीं हा। मेरे कहने के बावजूद भी विश्वास नहीं रहेगा। मैं कहता हूं, तुम्हें मंत्र जप करना है, तुम्हें सफलता मिलेगी तो अनमने मन से।। आप मंत्र जप भले ही करेंगे परन्तु एक गह गहराई होनी चाहिये, वह आप में नहीं हैं।।।।।। ऊपर से आप मुझे गुरू भले ही कहेंगे, मगर मन में जो अटैचमैंट बनना चाहिये वह नहीं बन पाता और अटैचमैंट नहीं बन पाता तो मैं ज्योंही अपनी तपस्या का अंश, साधना और सिद्धि देना चाहूंगा, नहीं दे पाऊंगा और आप नहीं ले पाएंगे।
लेने और देने में, दोनों में एक समरूपता होनीचाहि होनीचाहि जहां मैं खड़ा हूं वहाँ आपको खड़ा होना पड़ेगा, तब दे प पाऊंगा और आप ले पाएंगे। फिर मंत्र जप करने से कुछ हो प पाएगा, मंत्र देने से भी कुछ नहीं प पाएगा, आवश्यकता है कि मैं दूं औऔ पू पूntas. मैं जो दूं उसे क कानों से ही नहीं सुनें, बल्कि पूरे शरीर में वे मंत्र समा जाने चाहिये।
भोजन मैं आपको औ औntas मैं भोजन दूं, और आप पच पचा नहीं पाएं उसका खून बन सकत सकता, ताकत नहीं मिल सकती। ताकत मिलने के लिए जरूरी है कि इंतजार करें कि खून इधर आपने खाना खाया और उधर खून बन जाये, यह सं७व नहीं७व नहीं७व नहीं७व एक मिनट में खून नहीं बन सकता। दो दिन तक आपको वेट करना ही पड़ेगा।
Linha मंत्र की स्थिति यही है। मैं मंत मंत्र दूं उसके प प्रति आस्था बननी चाहिये आपकी, आध्यात्म चेतना बननी चाहिये, चाहे वह एक दिन में य या दो दिन में। च च वह एक दिन बने य या दो दिन।।।। मंत्र दिया है, तो चेतना बनेगी ही बनेगी। यह हो ही सकता कि मैं मंत्र दूं औ औ आपको सफलता नहीं मिले।।।।। यह सकता है कि आपसे कम प पाऊं, हो सकता है कि केवल एक मिनट मिलें।।।। इससे आपके विश्वास में अन्तर नहीं आना चाहिये। जिसको एक बार शिष्य कहा, वह मेरा शिष्य है ही। मगर आवश्यकता इस बात की है कि शिष्य बुलाये आर गुरू आर गुरू बिना बुलाये तो न गुरू आ सकता है, न गुरू का चिंतन बन सकता है, न गुरू में आस्था बन सकती है।—और ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप बुलाएं और मैं नहीं आऊं।— और इसके बावजूद भी जीवन में तनाव है तो संसार में सभी लोगों के जीवन में तनाव है। दूसरों के जीवन में लगता है कि उसमें कम तनाव है, परन्तु यदि हम उसको अंदर से कुरेदेंगे तो पता लगेगा, उनकी जिन्दगी खोलकर देखें तो मालूम पड़ेगा कि वे हमसे ज्यादा परेशान हैं, दुःखी हैं, संतप्त है। —और श्लोक में बत बताया गया है पीड़ पीड़ा है, बाधा है, अड़चन, कठिनाइयां हैं तो सबसे पहले उस रस्ते कठिनाइयां जह जह पहले उस र रntasस बने पचलन चलन चलन चलन चलन जह जह जह जह जह जह जह जह जह जह एक दूस दूस दूस प पntasस बने चलन चलन चलन चलन चलन चलन चलन जह जह जह जह पहले पहले उस उस उस प पntasस प चलन चलन चलन चलन चलन जह जह जह जह जह पहले पहले उस उस उस उस पntasस प चलन चलन चलन चलन जह जह जह पहले पहले पहले उस उस उस उस प पntas तुम्हारे, पति-पत्नी के बीच विश्वास नहीं होगा, तो भी आप बीस साल एक छत के नीचे रहेंगे तो भी न आप पत्नी का लाभ उठा सकते हैं और न पत्नी आपका लाभ उठा सकती है। तनाव में जीवन कट जायेगा, पूरे बीस साल कट जाएंगे। यह नहीं कि आप मर जाएंगे, मगर जो क का आनन्द होना चाहिये वह होग होगा।
आप बीस साल मेरे साथ marca और अगर विश्वास नहीं होगा तो मैं जो मंत्र और साधना दूंगा उनका लाभ आप नहीं उठा पाएंगे दीक्षा के बाद, केवल यह नहीं है कि मंत्र आपको दे दर आपको दे दि ऐसी दीक्षा मैं देन देना भी च चाहता और ऐसी दीक्षा से लाभ भी नहीं है। तुम्हारा पैसा भी मुझे नहीं चाहिये, नारियल हाथ में खने से औ औntas मैं चाहता हूं कि मैं दूं और आप पूरी तरह से ग्रहं त आपने दो पैसे खर्च किये, तो आपको लाभ होना ही चाहिये यदि मैं आपको दीक्षा दूं तो उनका मंत्र आपके हृदय में उतरना ही चाहिए, उतरे, और आप उसका लाभ उठा सकें, आप अनुभव कर सकें कि आपको एक तृप्ति मिली है सुख मिला है, मन में एक शांति मिली है और आपके हृदय में एक ऐसा विश्वास पैदा होना चाहिये कि मंत्र-जप के बाद आपके चेहरे पर एक आभा, एक चमक, एक ज्योत्सना होनी चाहिये।
—और ऐसा होगा, तो जो मैंने मंत्र दिया है, वह भॕ सार्थॕ सार्भी सार् वह चाहे गुरू का मंत्र हो, लक्ष्मी का मंत्र हो, चाहे गणपति का मंत्र हो। हरिद्वार में तो कम से कम डेढ़ लाख लोग रहते हैं। हम जाते हैं और गंगा में स्नान करते हैं तो बहुत शांति अनुभव करते हैं कि आज गंगा में स्नान किया, जीवन धन्य हो गया।— और हरिद्वार में रहने वाले गंगा में स्नान करते ही नहीं है। उनकी आस्था ही नहीं है हरिद्वार में। उनको गंगा में आस्था है ही नहीं। उनके लिए सि सिर्फ नदी औ औऔ हम जाते हैं पवित पवित्रता अनुभव होती है।।।।।।।।। ऐसा क्यों है? इसलिये हम हमारे मन गंगा के प्रति अटैचमैंट है, एक भावना है, उनके मन में भावना है ही।।।।।। जो आस आसानी से प्राप्त हो जाता है उसके प्रति भावना हती हती ही नहीं।।। प प प प प प यदि गुरू आसानी से ज जाएंगे तो प प्रति वैसा भाव marca ही ही प प प प प प प प प प प प।।।।।।।।।।
तुम्हारे, मेरे मन भ भावना है गंगा के प्रति, तो शीतलता अनुभव होगी ही।। यह तो आत्म विश्वास की बात है, आत्मचिन्तन की बात ह इसलिये आप स स्नान करते हैं इतनी पवित l पवित्रता अनुभव करते है, सिर्फ महसूस क करते, मिलती है पवित पवित्रता। आत्मा को आनन्द मिलता है, जीवन पू पूर्णता मिलती, जीवन को चेतना मिलती औ औ औ जीवन में जो कुछ च चाहते हैं, वह मिल ही जाता है। - औ जब मैं दीक्षा देता हूं आपको, तो उस दीक्षा के माध्यम से उतनी चेतन चेतना पैदा होनी चाहिये, मंत्र को धारण करने की शक्ति पैदा मंतार को धा marca दीक्षा का तात्पर्य है कि मैं आपको मंत्र दूं और धारण हो जाये, दीक्षा का अर्थ है कि केवल कान ही आपके मंत्र को ग्रहण न करें, शरीर का प्रत्येक कण आंख बन जाये, कान बन जाये।
गुगु ने अग अग दिया है मंत्र, तो लाभ होगा ही, गुरू ने अगअग उपाय किया है तो होग होगा ही, दीक्षा दी तो आपके पूरे शरीरी ने मंत्रreagre आप केवल कान से मंत्र ग्रहण करते हैं। कान से मंत्र ग्रहण करना और पूरे शरीर से मंत्र ग्रहण करने में अंतर है, ऐसा हो की एक-ोम ोम कान बन जाये और वह कान बन जाता है दीक्षा के माध्यम से। मैं दीक दीक्षा दूं और आप उसका लाभ उठा सकें, मैं दीक दीक्षा दूं और आप पूर्णता प्राप्त कर औ।
इस श्लोक में अत अत्यंत तेजस्वी ऋषि विश्वामित्र ने उच्चकोटि की बात कही और विश्वामित्र, जो ऋषि थे, वे अपने जीवन में आपसे भी ज्यादादादा दरिद्रहे अपने जीवन जीवन में आपसे ज ज्यादादा दरिदadura Linha वे ही विश्वामित्र, जो घुकुल के गु गुntas । —जरूर उन मंत्रें में और तंत्र में एक ताकत थी जो विश्वामित्र ने राम को दी, इस प्रकार अद्भुत शक्तियां प्रदान की, जिनके माध्यम से वे अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सके। यद्यपि रघुकुल के गुरू तो वशिष्ठ थे, मगर दशरथ ने राम-लक्ष्मण को स्वयं विश्वामित्र के हाथों में सौंपते हुए कहा कि आप जैसा उच्चकोटि का तंत्र ज्ञाता कोई नहीं है। इस प्रकार का अद्भुत तेजस्वी व्यक्तित्व पृथ्वी पर कोई नहीं है।।।।।।।।
इसीलिये मैं अपने दोनों पुत्रें को तंत्र शास्त्र ज्ञान हेतु वशिष्ठ को नहीं सौंप करके आपको ह हा वशिष वशिष।। इसलिए कि ये जीवन में अद्वितीय व्यक्तित्व प्राप्त कर सकें और उस समय भरी सभा में विश्वामित्र ने दशरथ को एक बात कही—और वाल्मीकि रामायण में वाल्मीकि ने उस समय की अपनी आँखों से देखी घटना कही। तुलसीदास तो बाद में पैदा हुए, वाल्मीकि तो समय थे ही ही, क्योंकि जिस सीत सीता को र र ने निष्कासित किया, उस समय सीता वाल्मीकि के आश्म किय ही ही ही ही उस सीता वाल्मीकि के आश्म ही ही ही ही उस सीत वालाल के के आश ही ही ही ही ही ही ही उस सीत व व व gl
वाल्मीकि रामायण में आता है कि दशरथ ने कहा, मैं अपने दोनों पुत्रें को अद्वितीय बनाना चाहता हूं, ऐसा बनाना चाहता हूं कि फिर पृथ्वी पर उनके समान दूसरा हो ही नहीं, मंत्र में, तंत्र में, योग में, साधना में, दर्शन में, शास्त्र में, राज्य में, वैभव में और सम्मान में। तब विश्वामित्र एक ही पंक्ति में उत्तर देते हैं कि दशरथ- योगीय भवत भवता वरेण्यं दीक्षां वदेम्यं भवतां वरिथं।
मैं तुम्हारे पुत्रें को अद्वितीय बना तो दूंगा, अद्वितीय का मतलब कि उनके मुकाबले पृथ्वी पर कोई हो ही नहीं, ये राजा की संतान नहीं कहलाएंगे, ये भगवान कहलायेंगे, रघुवंश में ऐसा कोई बालक नहीं हुआ, ऐसा बालक मैं इनको बना दूंगा, मगर ये केवल मुझे ही गुरू मानें तो। इतना की मुझसे सम्बन्ध जुड़ जाये इनका। ये मुझे अपने आप पू पूर्णता के साथ में ग्रहण कर लें तो मैं अपनी समस्त सिद्धियां इन्हें दे सकता हूं। मैं सिद सिद्धियां तभी सकूंग सकूंगा जब ये पूर्ण ूप से मुझे गुरू स्वीकार कर लेंगे।।। मुझे पूर्ण marca से स्वीकार करेंगे तभी मैं इनको ज्ञान दे पाऊंगा। चौथाई मंत्र स्वीकार करेंगे तो इन्हें चौथाई ही ज्ञान दे पाऊंगा क्योंकि
मंत्र में, तीर्थ में, देवताओं में, ब्राह्मण में और गुरू में भ भावना जितनी जुड़ेगी उतना ही फल मिलेगा। गंगा के प्रति आपकी भावना जितनी ज्यादा होगी, उतनी आप आप पवित्रता अनुभव करेंगे। Linha यदि दू दूदू से प प्रणाम करेंगे और गुरू में कोई अटैचमैंट होगा तो गु गुntas
दो स्थितियां बनती हैं जीवन में। एक श्रद्धा होती है, एक बुद्धि होती है। आदमी दो तरीकों में व व्यतीत करता है, श्रद्धा के माध्यम से और बुद्धि के माध्यम से।।। जो बुद्धि के माध्यम से प्राप्त करते हैं जीवन को, वे जीवन में सुख प्राप्त नहीं क सकते, आनन्द प्राप्त नहीं कntas वे हर समय तनाव में रहते हैं। वे समझते हैं, हम बहुत चालाक हैं, बहुत होशियार हैं, हमने जीवन में इसको धोखा दे दिया, इसको मूर्ख बना दिया, इसको कुछ भी कर दिया और हम ज्यादा सफलता प्राप्त कर सकते हैं, वे नहीं कर सकते। हर क्षण उनके जीवन में तनाव होता है और जीवन में आनन्द क्या होता है, सुख क्या होता है, वे अनुभव कर ही नहीं सकते, संभव ही नहीं, क्योंकि बुद्धि के माध्यम से केवल भ्रम पैदा होगा, संदेह पैदा होगा। बुद्धि तो कहेगी कि यह शिवलिंग है ही नहीं, एक पत्थर है, और पत्थर के माध्यम से तुम्हें सफलता नहीं मिल सकती के बुद्धि तो यह कहती है कि पत l पत है तो क्या हुआ, मैं शादी कर के लाया हूं, इसकी ड्यूटी है कि सेवा करे, मैं ोटिय ोटियोटिय दे दे ह कि सेव सेव कntas वह पति अपनी पत्नी को सुख नहीं दे सकता।
तुम्हारी जिन्दगी में आनन्द तभी सकत सकता है, जब बुद्धि को त तरफ करके श्रद्धा के द्वारा जुड़ोगे।। देवताओं के प्रति, मंत्र के प्रति, तीर्थ के प्रति और गुरू के प्रति श्रद्धा से जुड़ोगे, तब फल मिलेगा। यह ह हाथ में है कि बुद बुद्धि से हैं, कि श्रद्धा से जुड़ते हैं।।।।।।। अगर मेरे प्रति श्रद्धा नहीं है तो कोई लाभ नहीं दे पाऊंगा आपको।। यदि आपका मुझ पर प्रेम है, श्रद्धा है, तो ही आप कुछ प्राप्त कर पाएंगे। विश्वास तो करना पड़ेगा ऐसी कौन सी चीज है जीवन में, कि आपने कहा, और हुआ। ये तो आपके जीवन के भोग हैं, और आपके जीवन में केवल तनाव है, आपके जीवन में झूठ है, आपके जीवन में छल है, कपट है, आपने जीवन के इतने साल छल और कपट में व्यतीत किये और आप चाहते हैं कि गुरू जी सब ठीक कर लें,— तो ऐसा गुरूजी नहीं कर सकते। दो मिनट में भी ठीक सकत सकता है, यदि आप पूर्ण ूप से समर्पित हों। आप।। सम सम सम सम सम सम सम हों।
एक पूर्ण अनजान लड़की, 19 साल की लड़की जिसने अभी देख देखा ही नहीं उससे हम शादी करते हैं। मैं अगर करोड़पति हूं और उस लड़की को देखा नहीं जिन्दगी में, तो शादी की, चार फेरे किये और ज्योहि घर में लाता हूं सारे घर की चाबियां उसे दे देता हूं। पति तिजो तिजोntas इस लड़की पर एकदम से कितना विश्वास हो जाता है! यह विश्वास हो जाता है कि यह लड़की मुझे धोखा गहीं यह मुझसे जुड़ी रहेगी। यह एक अनजान व्यक्ति से प प्रकार से एकदम पांच मिनट में विश्वास कायम हो सकता है? यदि आपका विश्वास गणपति पर या लक्ष्मी पर होगा, तो ही फल मिल सकता है, यदि आपका विश्वास गणपति पर या लक्ष्मी पर नहीं है तो आप 5 हजार साल भी लक्ष्मी की साधना करते रहें, आपको कुछ नहीं मिल सकता। इसलिये विश्वास आपके अन्दर आवश्यक है।— तो विश्वास कैसे बने? विश्वास तो करना ही पड़ेगा।
देवताओं ने जन जन्म दिया है, शरीर दिया है, भारतवर्ष दिया है, शरीर में एक जीवन है, जो कुछ दिया है, कम से कम प प्रति तो कृतज कृतज दिय है है, हम हर समय कोसते हते हते हैं देवताओं को औ औ अपने आपको तो जीवन में पू पूर्णता नहीं मिल सकती।।।।।।।।।। अगर मैं अपने जीवन में श्रद्धा के माध्यम से कुछ प्राप्त कर सकता हूं तो आपको भी उपदेश सकत सकता हूं क सकत सकता हूं तो भी उपदेश दे सकता हूं।। सकत सकत सकत हूं उपदेश दे सकत सकता हूं।।।।। दे दे सकत सकत सकत क।।। अगर मैं 19 साल हिमालय में marca सकता हूं तो मैं भी बत बता सकता हूं कि यह मंत्र सही है। मैं कोई बिना पढ़ा लिखा मनुष्य नहीं हूं। मैंने भी पढ़ाई, लिखाई की है। एम-ए- किया है, पी-एच-डी- की है यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहा हूं, फिर भी पूरा जीवन हिमालय में व्यतीत किया है और तुमसे ज्यादा दुगुनी उम्र लिये हूं, अधिक अनुभव लिये हूं और इसीलिये तुमसे कह रहा हूं कि मंत्रें में ताकत है, क्षमता है और उनके माध्यम से, मैं एक अकिंचन ब्राह्मण अगर समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर सकतसकता हूं आप भी भी प्राप्त क क क सकत। हैं हैं आप भी भी प Para मैंने अपना ही उदाहरण लिया।
यह एक बीज था, छोटा सा बीज एक बीज की कोई हिमू मऋनी। नी। इतना सा अगर बीज है, हम मुट्ठी में क कntas मगर वह बीज जब जमीन ग गाड़ते हैं औऔ उसे खाद पानी देते हैं च चार पांच साल में विशाल पेड़ ज जाता है। बड का पेड़ बन जाता है और उसके नीचे 5 सौ व्यक्ति बैठ सकते हैं।।। उस बीज में इतनी ताकत थी, कि एक पेड़ बन जाये। मैं भी एक थ था, जमीन गड़ गड़ा, खाद पानी मिला, तकलीफ आई, मगर मैं क क्षमता के साथ उस पथ से जुड़ा marca आज मैं वह वृक्ष बना और मेरे सैकड़ों हजारों साधु संन्यासी शिष्य हैं, पूरे भारत वर्ष में शिष्य हैं। मैं बीज से पेड़ बना, तो आप भी बन सकते हैं।
मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि अगर एक व्यक्ति इस रास्ते पर चलकर सफलता प्राप्त कर सकता है तो तुम भी कर सकते हो। मगर मुझे विश्वास था उस खाद पर, पानी पर, जमीन पर कि ख खाद, पानी, हवा, मुझे पेड़ बनाएंगे। अगर मैंने संन्यासी-जीवन लिया है तो उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त की है।।।।।।।।।। मैं हिला ही नहीं, विचलित नहीं हुआ, डगमगाया नहीं। मैं नौक नौकरी में था, प्रोफेसर था, अच्छी तनख्वाह ले marca था उस समय भी 10000 मिल जाते थे।। आज से पच्चीस तीस साल पहले, दस हजार की बहुत कीमत ।ो कीमत ।ो मगर मैंने ठोकर मारी उसको कि यह जिन्दगी नहीं हो सी नहीं हो स ऐसे प्रोफेसर तो पूरे भारत में एक लाख होंगे। इससे जिन्दगी पार नहीं हो सकती। मुझे कुछ हट कर करना पड़ेगा या तो मिट जाऊंगजाया करंाऊा करंाया करंाऊा करंाया कर
यदि ऐस ऐसा बन सकता हूं, तो तुम्हें सलाह देने का हक marca हूं तुम।।। सल सलाह यदि मैं बनत बनता, मैं यों ही बैठा marca तो तुम्हें कहने का हक नहीं ख सकत सकता था। इस र र र र र र र र र प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प सिद सिद सिद सिद सिद सिद सिद सिद सिद सिद सिद सिद म म माध्यम से को संभव क क सकत pos Linha यदि गुरू मुझे कह दें कि सब क क क चले आओ मैं पत्नी से मिलूंगा ही नहीं।। सीधा यहीं से रवाना हो जाऊंगा, क्योंकि मेरी ॆस्था
मैंने जिस संन संन्यास लिया, उस समय शादी हुये बस 5 महीने हुए थे।। पांच महीनों में मैं छोड़ कर चला गया। पत्नी की क्या हालत हुई होगी, आप कल्पना कर सकते हो। मगर मैंने कहा, ऐसे तो जिन्दगी नहीं चलेगी। Linha Linha
आप, पंडित, पुरोहित और ब्राह्मण_ पोथी पढ़क पढ़कर उपदेश देते हैं।।। मैंने जो कुछ जीवन सीख सीखा है, वह उपदेश ह marca हूँ, मैं आँखों ब बात कर ा हूँ, पोथियों की ब बात नहीं करहा हूँ। पोथियों में सही लिखा है या गलत लिखा है, वह अलग बाई हो सकता है उनमें गलत भी लिखा हो, हो सकता है सही भो सकता है सही भो मगर मैं देखना चाहता था छानकर, कि यह सब क्या है? मैं केवल सत्य तुम्हारे सामने रखना चाहता हूँ,, क्योंकि तुम मेरे शिष्य हो और मैं तुम्हें शिष्य बना रहा हूँ और दीक्षा दे रहा हूँ और दीक्षा देने के बाद भी मेरा अधिकार समाप्त नहीं हो जाता कि दीक्षा दी और आप अपने घर, मैं अपने घर । तुम्हारी डयूटी है कि तुम मुझसे जुड़ोगे। तुम्हारी शिकायत आती है कि गुगु जी जी, मैं जोधपुजोधपु आया, पांच दिन marca, आप मुझसे मिले ही नहीं।। प। कोई जरूरी नहीं प पांच दिनों में ज जाऊं आपको, ऐसा कोई ठेका नहीं ले खा है।।।।।।।।। मैं आपको अभी ह marca हूं, ऐसा नहीं है कि आप औ औ मैं ददाजा खोल क क क आप सब छोड़क छोड़क द द मिल लूं लूं। खोल क क क सब छोड़क छोड़क द गले मिल लूं लूं। यह जरूरी नहीं है कि जो आये उससे मिलूं, मुझे भी घ घर का कामकाज देखना पड़ेगा, घर में मेहमान आयेंगे उनको देखन देखना पड़ेगा।
ऐसा नहीं है कि आपके प्रति अश्रद्धा है। आपके प्रति प्रेम में कमी नहीं है, मेरे हृदय द दरवाजे हमेशा खुले हैं।।।।।। मगर आप आलोचना करने लग जाये कि गुरूजी पांच घंटे मिले ही नहीं, तो ज जरूरी नहीं है कि मिलूं।।। आप कहें गु गुरू जी प पास गया, पांच marca भेंट मे मेरी लड़की श शादी हुई ही नहीं। अब पांच marca हनुमान जी चढ़ चढ़ा दें, हनुमान जी मेरी लॉटरी निकाल दें, हनुमान जी निक निकाल सकते तुम्हारी लॉटरी यों लॉटरी लगती, तो ये बिरला और 25 फैक्टरी खोल लेते हनुमान जी इसलिये बैठे कि तुमने पांच marca का सिन्दूर चढ़ाया और तुम्हारी पांच लाख की लॉटरी निकल गई, तुम्हारी लड़की श शादी लॉट हो गई। यह तुम्हारी गलतफहमी कि हनुमान जी बैठे-बैठे क करते हेंगे।।।।।। ऐसा संभव नहीं होता। तुम आये, तुमने गुरू जी के पांव दबाए और कहा, गुरूजी! मेरी लड़की की शादी नहीं हो रही है।
अब मैं तो यही कहूंगा कि हो जाएगी, चिंता मत कर। मगर इसके बाद अनुभव करना होगा कि मैंने दिया क्या? प्रश्न पैसे का नहीं है। तुम्हा् त त से मुझे प प्रेम मिलना चाहिये, श्रद्धा मिलनी चाहिये, अटैचमेंट मिलना चाहिये, समर्पण मिलना चाहिये और सबसे बड़ी बात, आप में धैर्य होनाहिये औ औ औ सबसे बात, ' आप में धैर्य है ही नहीं और फिर तुम आलोचना करो! आलोचना करने से जीवन में पूर्णता नहीं प्राप।त ।ो आलोचना तो कोई भी, किसी की भी कर सकता है। मैं तुम्हारी आलोचना कर सकता हूं कि तुम्हा marca ये ही आपके गुण भी हो सकते हैं, परंतु जिसे आलोचना करनी है, वह आलोचना ही करेगा।
मैं तुम्हारी आलोचना का जवाब दे marca हूँ औ औ इस बात की प पाह है ही नहीं इस जीवन में मैं तलवार की धार पर चला हूं और आगे भी चली चली चली न मैं कभी झुका हूं और न कभी झुक सकता हूं। क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारे गुरूजी बिल्कुल लुंज बेक बेकार से, ढीले ढाले हों और हरेक के सामने झुकें! क्यों झुकें? यदि मैंने व्यर्थ में क काम किया है, व्य desse मैं अगर तेज धार पर ा हूं, तो तुम्हें भी सल सलाह देता हूं कि शिष्य होकर अपनी मर्यादा में तेज धार में हो हो। संसार में तुम्हारा कोई कुछ बिगाड़ ही सकत सकता, तुम्हें डर ही नहीं किसी का।
मैं तुम्हें दीक्षा देता हूं इसक इसका अर्थ यह कि तुम gre अगर तुम मेरे शिष्य हो, तो तुम्हें मजबूती स साथ खड़ा होना पड़ेगा समाज में। कायरता से और आलोचना से जिन्दगी नहीं जी जाती। तुम्हारा कोई बिग बिगाड़ सकता ही नहीं है, बिगाड़ेगा तो तुम्हारे साथ में खड़ा हूं, कहीं कोई तकलीफ होगी तो मैं जिम्मेदार हूं। आप एक बार मुझे परख करके देखें, टैस्ट तो करके देखें! आप यह यहां मेरे पास और टैस्ट तो करें, आप मुझसे मिलिये तो सही।।।। मैं आपसे नहीं मिलूं, आपका काम नहीं करूं, तो मेरी जिम्मेदारी है।।।
मगर तुम्हें विश्वास बनाना पड़ेगा, श्रद्१ा रखगी शादी होने के दस साल बाद भी पत्नी से लड़ाई होगी मगर विश्वास बना marca, विश्वास नहीं विश सकतास विश्वास टूटने से काम नहीं चल सकता। इसलिये देवताओं के प्रति एक बार विश्वास पैदा करें, एक बार मंत्र जप करें और आप मंत्र जप करेंगे तो सफलता मिलेगी ही।।।।।।।।।।।।।।।।। सफलत क सफलत सफलत सफलत सफलत सफलत मिलेगी।। मैने आपको मंत्र दिया लक्ष्मी का और आप घर गये और मंत्र जप किया 5 दिन और कहने लगे कि सोने की वर्षा तो हुई ही नहीं, यह मंत्र तो झूठा है, गुरूजी ने कहा था पर हुई नहीं वर्षा, गुरूजी बेकार हैं।
ऐसा नहीं हो सकता। ऐसा हो भी सकता है, परन्तु श्रद्धा चाहिये, विश्वास चाहिये, धैर्य चाहिये। Linha Inte ऐसा हो ही नहीं सकता कि मैं मंत्र जप करूं और लक्ष्मी नहीं आये! एक अटूट विश्वास था। अपने प पर विश्वास था।— और पहली क्लास का व्यक्ति एम-ए- की किताब नहीं पढ़ सकता। मैं अगअग किताब दे एम-ए- की कीट्स की, मिल्टन की या शेक्स्पीयर की और तुम्हें कहूं पढ़ो, तो तुम्हें कुछ समझ में ही आयेग आयेग कि।, तो तुम्हें कुछ समझ में ही आयेगा।। पहले आप पहली क्लास में पढ़ेंगे, फिर दूसरी पढ़ेंगे, फिर तीसरी पढ़ेंगे, फिर मैट्रिक करेंगे, बी-ए- करेंगे, फिर एम-कक क तो फिntas अब साधना में पहली क क्लास में औ औऔ वह साधना एम-ए- लैवल की है।।। उसके लिए 16 साल मेहनत करनी पड़ेगी, तब समझोगे।
पहली क्लास का बच्चा ए, बी, सी, डी प प्ढ़ लेगा किन्तु उससे मिल्टन की किताब तो पढ़ी पढ़ी जायेगी। अगर 16 साल मेहनत करने से साधना सिद्ध होती है तो एक दिन कह कहां से ज जायेगी? तुम कहोगे, लक्ष्मी ने आकर घुंघरू बजाये ही नहीं, पांच दिन हो लक लक्ष्मी आई ही नहीं। गुरूजी ने कहा कि आयेगी, पता नहीं क्या हुआ? और फिर तुम कहोगे, गुरूजी झूठे औऔ मंत्र झूठा, लक्ष्मी झूठी, तीनों झूठे हो गये और तुम सत्य हो गए।। एक बार आवाज दोगे, तो पत्नी भी नहीं आयेगी, - तो लक्ष्मी कहां से आएगी? मेरे कहने का तात्पर्य है कि धैर्य चाहिये। एक बार साधना करो, नहीं सफलता मिलेगी तो दूसरी बार करो, पांच बार करो। कभी तो सफलता मिलेगी ही, क्योंकि मंत्र सही है। इस मंत्र के माध्यम से जब सफलत सफलता पाई है और शिष्यों ने सफलता पाई है तो तुम्हें भी सफलता मिलेगी ही।
—पर एक विश्वास कायम रखना पड़ेगा और जीवन में इन मंत्रें से वह सब कुछ प्राप्त होता ही है, जो कुछ मैं कहता हूँ कि लक्ष्मी साधना के माध्यम से धन मिलेगा, कर्जा कटेगा, ऐसा होता ही है, बस तुम में धैर्य कम है। तुम चाहते हो एकदम से marca फूड आया, खाया और ाना हो गये।। ऐसा नहीं है। तुम बाजार में जाकरेडिमेड फूड खाओ और पत्नी खाना बनाकर खिलाये, उसमें डिफरेंस होगा। दीक्षा का तात्पर्य है, मैं तुम्हें कह marca हूं उस र र र मैं तुम तुम तुम तुम gre, मैं तेजस्विता हूं ह रास्ते के लिए, मैं तेजस्विता दे marca हूंा हूं, अब स साधना कर सकते ह तुम सफलता पाओगे, धैर्य के साथ करने पर विश्वास के साथ करने पर।-औऔ धै धैntas है है हैं यह भी भी भी भी भी भी ह ह ह ह ह आस आस आस हैं यह भी भी भी ह ह कहncial हूं कि धै आस आस हैं। तुम भी भी कह कह ह कहncial हूं कि धै आस आस हैं हैं तुम भी भी कह कह कह कहncial हूं हूं धै आस आस हैं हैं तुम तुम भी कह कह कह कहncial ह हूं धै आस आस आस हैं तुम तुम भी कह कह कह कहncial ह हूं तुममें आस आस आस हैं तुम तुम भी भी कह कहncial वे तुम्हें गलत गाइड करते हैं। तुम तो सही हो, पर वे कहते हैं- और तुम गए थे, क्या हुआ?
तुम कहोगे- लक्ष्मी का मंत्र लाया। तुम करोगे लक्ष्मी मंत्र पांच दिन और लक्ष्मी आयेगी नहीं, तो वो कहेंगे- ले, अब क्या हुआ? हम तो पहले ही desse तुम्हारा विश्वास खत्म हो जायेगा। किसी के घर का सत्यानाश करना हो तो एक मूल मंत्र बता देता हूं किसी के घर जाइये और कहिये- कल भाभी जी कहां जा रहीं थीं, चुप-चाप एक गली में घुसी थीं, फिर आधे घंटे में एक घर से निकली थी। चलो जाने दो जाने दो, कुछ नहीं। अब उस पति के माइंड में घूमता रहेगा। वह पूछेगा पत्नी से, कहां गई औ औ औ वह कहेगी कहीं गई गई थी।। बस कितन कितना ही समझाये पति दिम दिमाग से कीड़ा निकलेगा ही नहीं।।। वो कहीं भी जायेगी, वह पीछे-पीछे जायेगा। बस पूरा जीवन उनका तबाह हो जायेगा। बस किसी ने कह दिया इस मंत्र से क्या होगा? और तुम्हारा माइंड खराब हो गया। अब चार दिन तुम्हारा माइंड खराब marca कि मंत्र बेकार है, गुरू जी बेकार है। बेक तुम खराब नहीं हो, वे आस-पास के ख खराब हैं वे न तो कुछ क कntas उनका काम ही यही है, आलोचना करना, चाहे तुम्हारे चाचा हों या ताऊ हों, या सम्बन्धी ही। य।। त ताऊ जो जिन्दगी भर कुएं में हे वे तुम तुम्हें मानसरोवर के आनन्द में देखना नहीं चाहते।
तुम्हारे अपने अन्दर ताकत है, तो तुम सफलता पाओगे। मेरे साथ भी यही घटना घटी। मैंने सन्यास लिया तो मुझे सब ने कहा, क्यों जा रहा? क्या फायदा है? सब ने सलाह दी- यहीं ूको, क्यों दस हजार की नौकरी को ठोकर मार हो, तुम्हारे जैसा मूर्ख दुनिया में होग होगा।
मैंने कहा, कोई बात नहीं, मूर्ख हूं तो मूर्ख ही सही सही भले समुद l समुद्र में क कक म मntas पर पांव तुम्हारा मजबूत रहेगा तो तुम सफलता पाओगेा पाओगे। तुम्हारे पांव कमजोर हैं, तुम औरों की बातों पर विश्वास करके चलोगे तुम तुम्हारी साधना बर्बाद हो जायेगी। आप कमजोर हैं तो आप इस marca आप अपनी पैंट पहनिये और नौकरी पर जाइये, चुपचाप आँख नीची करके घर आइये, पत्नी थैला देकर कहे की सब्जी लेकर आइये, चुपचाप सब्जी लाकर घर में रखिये, पत्नी जब भी हल्ला करे तो चुपचाप रहिये और रात को सो जाइये। यह रास्ता सीधा है, इसमें खतरा कम है। —और मैं जो रास्ता बता रहा हूँ, उसमें खतरा बहुत है। यह बहुत तलव तलवार की धार की बात है, हिम्मत की बात है और उच्चता, श्रेष्ठता, सफलता की बात है। तुम्हारे जैसे लोग और नहीं होंगे। तुम अद्वितीय बनोगे। तुम अपना जीवन मुझे सौंपो, मैं तुम्हें अद्वितीय बना दूंगा, ऐसा पृथ्वी पर कोई होग होगा। विश्वामित्र ने ऐसा कहा दशरथ को, पर साथ ही यह भी दिय दिया कि जरूरी है र र र र दिय दिया कि ज जरूरी है र marca, लक्ष्मण मुझे गु गुntas दशरथ तुमसे मिलने भी आये, न तुम ज जाओगे और दशरथ ने कहा- मैं इनसे मिलने आऊंग आऊंगा और न घ घर का, इन्हें मिलने आयेगा। ये मेरे घर तब तक वापस नहीं आयेंगे जब तक तुम पूरा संस्कार नहीं कर लोगे।— मगर आप इन्हें अद्वितीय बनाये और मैं इन्हें मिलने नहीं आऊंगा, चाहे बहुत प्रिय राम हैं और बहुत प्रिय लक्ष्मण है! और ऐसा ही दशरथ ने किया। मैं भी वही बात तुम्हें कह रहा हूं कि परिवार की चिंता तुम मत करो औरों पर विश्वास मत करो, जो मैं कह रहा हूं उस बात पर विश्वास करो, जब तक मैं तुम्हें अद्वितीय न बना दूं।— और मैं तुम्हें अद्वितीय बना दूंगा, यह तुम्हारे मेरे बीच वचनबद्धता है। गारंटी के साथ बनाऊंगा, यह मेरा विश्वास है।
आप कल्पना कीजिये, marca दशा दशरथ के बुढ़ापे में संतान हुई औऔ वह केवल दस साल का लड़का marca, उसे जंगल भेज दिय दियां प पntas Marca रा के महलों में हने व वाला marca Linha
भगवान तुम भी बन सकते हो, भगवान कोई पेट में पैदा नहीं होते, अपने कार्यों से भगवान बनते हैं।।।। पैदा तो सब एक से ही होते हैं, चाहे आप य या marca हों, या लक्ष्मण हों, या मैं, चाहे कृष्ण हों। उसके बाद उन्होंने कितनी marca अद्वितीय आप भी बन सकते हैं, मगर पैसों के माध्यम से म็ीन्यम से म็ीन्यम से पैसों के माध्यम से भगवान! - तो बिड़ल बिड़ला और टाटा भगवान हैं ही।।।।।।।।।। ऐसे भगवान नहीं बन सकते। भगवान बनने का marca र है तुम्हारी नैतिकता, तुम्हारी चैतन्यता, तुम्हारे मंत्र, तुम्हारे ज्ञान, तुम्ह pos. जीवन के दो हेतु हैं, दो तरीके हैं औऔ दोनों के म माध्यम से को प पार किया जा सकता है। चाहे आप हों या मैं हूं, चाहे साधु हों या संहोयासी कुछ लोग ऐसे हैं जो घिसी- पिटी जिन्दगी जी कर पूरा जीवन व्यर्थ कर देते हैं।।।।।।।। ऐसे 60 प्रतिशत लोग हैं। उनमें हिम्मत, जोश होता ही नहीं।— और जो चैलेंज लेने का भाव नहीं होता और जो चैलेंज नहीं ले सकता वह जीवन में सफल नहीं हो सकता, जीवन में सफलता के लिए आवश्यक है, किसी बात का चैलेंज लें। आप जिस भी क्षेत्र में जायें उच्च कोटि के बनें। साधक बनें तो ऐसा साधक बनें कि पूरा भारत आपको याद ज्योतिषी के क्षेत्र में हो तो आप नम्बर वन ज्योतिषी हों, जो कुछ करें उच्च हो।—और ऐसा होने में रिस्क बहुत है और जो खतरों से जूझ नहीं सकता वह मनुष्य नहीं हो सकता, वह पशु है।
हमारे जीवन का सार एक आधार भोग है, एक मोक्ष है। एक marca र्ता मोक्ष की ओर जाता है- ये साधु -संन्यासी, योगी, तपस्या करते हैं, साधना करते हैं।।।।।।।।। अब इनमें से कितने साधु सही होते हैं, मैं नहीं कह सं नहीं कह भगवा कपड़े पहनने से कोई साधु नहीं होता, लंबी जटा बढ़ाने से स साधु नहीं होता। साधु तो होत होता है जिसमें आत्मबल हो, जूझने शक शक्ति हो, जो देवताओं को मुठ मुठ्ठी में खने की क्षमता marca साधयति सः साधु जो श शरीर को, मन स साध लेता है स साधु है।
जो खुद ह हाथ जोड़कर कहे- तुम मुझे ूपये ूपये ूपये दे दो, तुम्हारा कल्याण हो जायेगा, वह साधु नहीं सकत सकता। उन लोगों में है ही नहीं । आत्मबल आत्मबल एक अलग चीज है, जो लाखों लोगों की भीड़ खड़े होक होकहोक चैलेंज ले सकता है। अगर मंत्र क्षेत्र में हो तो कह सकता है कि संसार में कोई मेरे सामने आकर खड़ा हो, मैं चुनौती स्वीकार करता हूँ, ऐसी हिम्मत, ऐसी क्षमता, ऐसी आँख में चिंगारी होनी चाहिये। उसकी बोली में क्षमता होनी चाहिये। ऐसा व्यक्ति सही अर्थों में साधु भी सकत सकता है और मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है।।।।
मोक्ष प्राप्त करना इतना आसान नहीं है और मोक्ष प्राप्त करने के लिए जंगल में जाने की जरूरत नहीं हैं, हिमालय में जाने की भी जरूरत नहीं है। जो सभी बंधनों मुक मुक्त हो, वह मोक्ष है।— और आपके जीवन में कोई बंधन है।।।।। लड़की की शादी करनी है, बीमारी से छुटकारा पाना है। घर में कलह है- ये सब बंधन है। उन बंधनों से मुक्त होना ही मोक्ष कहलाता है। मोक्ष का मतलब यह नहीं, कि मरने के बाद जन्म ले ही नॹीं ही नम हम तो कहते हैं, वापस जन्म लें, वापस लोगों सेव सेवा करें, चैलेंज स्वीकार करें और अद्वितीय बनें।।। हम क्यों कहें कि हम वापस जीवन नहीं चाहते। हम हजार बार जन्म लेना चाहते हैं, हजार बार जीवन में लेन लेना चाहते हैं और जीवन में होन होना चाहते हैं।।। मोक्ष का अर्थ यह नहीं कि पुनर्जन्म हो ही नहीं। मोक्ष का अर्थ है, हम जीवन में सारे बंधनो से मुक्त हो जाये।— और ऐसा व्यक्ति गृहस्थ में रहते हुए भी साधु हो सकता है, भगवान कपड़े पहने हुए भी गृहस्थ हो सकता है। साधु हो औऔ उसकी आंख ठीक नहीं हो, गंदगी हो आंख में, उसमें लालच की वृत्ति हो तो गृहस गृहस्थ से गय गया बीता व्यक्ति है गृहस।। कम से कम यह है ही हम गृहस्थ हैं, हमारी आंख गंदी हो सकती है, हम दृष दृष्टि से देख हैं।। Linha इसलिये साधुओं के प्रति हमारे जीवन में आस्था कम जीवन में आस्था कम ई इसलिये उनके प्रति सम्मान कम हो गया है।
या तो एक रास्ता है मोक्ष का और दूसरा रास्गा है भोास्गा है भोाकहै भोग का मतलब है कि हम गृहस्थ बनें, हमारी पत्नी हो, पुत्र हों, बंधु हों, बांधव हों, यश हो, सम्मान हो, पद हो, प्रतिष्ठा हो और हम अपने आप में अद्वितीय बनें। यदि ऐसा नहीं कर सकते तो फिफि घिसा-पिटा जीवन क का मतलब ही नहीं है।।।।।।।।।।।।। आपके मन में चेतन चेतना पैदा नहीं होती कि कुछ अद्वितीय करूं! इसलिये पैदा नहीं होती आपके जीवन में उत्साह समाप्त होा है, तुम्हारे जीवन गु गुरू हे हे जो तुम तुम्हें कह कि कि यह गलत गलत हे हे नहीं जो तुम l तुम कह कि कि यह गलत गलत हे हे। जो तुम तुम्हें कह कि कि यह गलत गलत हे हे। जीवन जीने के लिये एक चुनौती क का भाव होना चाहिये, एक आकाश में की की क्षमता होनी चाहिये। एक तोता है, पिंजरे में बंद है। चांदी की शलाकाये बनी हुई औ औ बड़ा सुखी है, उसको तकलीफ है ही नहीं, खतरा है ही नहीं। उसको अनार के दाने खाने को दे marca है मालिक, बोल मिट्ठू marcaम र र है म मालिक उसको बाहर निकालते हैं, नहलाते हैं, पंख पोंछते हैं और वापस पिंजरे में बंद कर देते हैं।— और एक तोता है, जो पचास साठ किलोमीटर उड़ता है, उसे अनार के दाने खाने को नहीं मिलते, उसके पैरों में घुंघरू नहीं बंधे, मगर वह जो आज आजादी है, वह उस तोते को नहीं मिल सकती च चांदी के पिंजरे में बंद है। वह आनन्द उस पिंजपिंज में बंद तोते को नहीं मिल सकता, और तुम भी वैसे पिंज पिंज पिंजntas में में तोते हो।। तुम्हारें मां-बाप, भाई-बहन तुम तुम्हें पिंजरे का एक तोता बना दिया है औ औ उसमें आप बहुत तोत तोत बन बना दिया है और उसमें आप बहुत खुश हैं। आपको हरी मिर्च और अनार के दाने खाने को मिल हे हैं औ औ कभी कभी आप उस तोते पिंज पिंजntas वह बाहर खतरा महसूस करता है कि मर जाऊंगा, कोई बिल्ली खा जाएगी।
—औऔ तुम भी एक दो निक निकाल कर गुरूजी के पास आते औ और फिर वापस अपने घर में घुस जाते हो फि। गुरूजी ने जो कहा उसमें खतरा है, मंत्र जप सब गड़बड़बड वापस अपने पिंजरे में घुसे- पत्नी भी खुश, आप भी खुशश पत्नी को चिंता है चल चला जायेगा गुरूजी के पीछे, साधु बन जायेगा, कोई भरोसा नहीं है।। पत्नी कहती है, तुम्हें क्या तकलीफ है? चाचा भी कहते हैं, मामा भी कहता है, मां भी है औ औऔ आप वापस उस जीवन में ज जाते हैं, जो पूरी जिन्दगी की गुलामी ज है तुमने आक आकाश को नापने की हिम्मत नहीं, इसलिये तुम वह आनन्द नहीं उठा सकते।। उसके लिये तो तुम्हें चैलेंज उठाना पड़ेगा जीवन मेगा जीवन मेगा जीवन तुमने मानसरोवर में लग लगाई नहीं, तो तुम्हें क्या पता लगेगा कि मानसussão की की गहराई क्या है, उसका आनन्द क्या है? मैं ऐसा नहीं कह रहा कि तुम गृहस्थ से अलग हट जाओ। गृहस्थ में रहो, मगर संन्यासी की तरह रहो। गृहस्थ में marca हे हे हो इस भाव से, कि संस संसार में आया हूं औ औ सब अपना खेल, खेल हे हे हैं।। मैं देख रहा हूं और मुझे तटस्थ रहना है।
मेरे गृहस्थ शिष्य हैं, तो मुझे उन्हें बताना ही होगा कि कैसे जीवन व्यतीत करना है। मैं उन्हें संन्यासी नहीं बना सकता। संन्यासी बनने के औ और साधना करने के लिए हिम हिमालय में जाने की जरूरत नहीं है।। हम गृहस्थ में हते हुए भी उन साधनाओं को कर सकते हैं हैं औऔ भोग का अर्थ है- धन, ऐश्वर्य, पूर्णता- औा आधार है लक्ष gre बिना लक्ष्मी के गृहस्थी नहीं चल सकती। यदि तुम्हारे घर में आटा नहीं है तो तुम ध्यान लगाकर नहीं बैठ सकते।।। ध ध ध ध ध ध ध ध।। उसके लिए भी जरूरी है, तुम पहले ऐश्वर्यवान बनो। इतना धन हो कि तुम्हें याचना करने की जरूरत न पड़ेत न पड़ेी इतना धन हो कि सारी समस्याओं से मोक्ष प्राप्त कर जब स स्थिति बनेगी तुम ध ध्यान भी कर सकोगे साधना भी कर सकोगे।। मगर लक्ष्मी पहला आधार है औ औ उसके बिना आपके में पू पूर्णता आ नहीं बिन बिन।।।।।।।।।।।।।।
जीवन अद अद्वितीय बनने के लिए केवल छः महीने बहुत हैं, पचास साल जरूरी नहीं है।। Inte Linha आपके मन में लोगों ने एक भय पैदा कर दिया है कि साधना करोगे तो बर्बाद हो जाओगे, साधु बन जाओगे, साधना में सफलता मिलेगी नहीं।—और तुम्हारे मन में जो भय है तो पांच सौ गुरू भी आ जाये तो वे इस भय को नहीं मिटा सकते। किसी पत्रकार ने मुझसे पूछा कि क्या पूर्व जा्म हो जा्म हो मैंने कहा- होता है, आपका पिछला जीवन य याद है, बिना पिछले जन्म के सम्बन्ध के मुझे ज जान ही नहीं सकते सम।।।।।।।।। यह संभव ही नहीं था। पिछले जीवन के सम्बन्ध ही इस जीवन में बनते हैं। मैं पिछले जीवन भी आपका गुरू था और इसीलिये कहता हूं स साधना का marca रस्ता ही आपका marca र हैं औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के एक एकामूली साधना क desse जब marcaम और कृष्ण और बुद्ध के सामने खड़े हो सकते हैं तो स सामने भी खड़े हो हैं हैं।
और मैं भी वही कहता हूं, तुम खुद ब्रह्म हो। मगर तब, जब तुम्हें अपना पूरा ज्ञान हो। अगर हम जीवन में चैलेंज लेकर आगे बढ़ते हैं तो निश्चय ही हम सफलता प्राप्त करते हैं और ऐसे सैकड़ों उदाहरण मेरे सामने हैं कि उन शिष्यों ने एक चैलेंज लिया और वे सफल हुए। Linha आप प प्रकार का जीवन जीना चाहते हैं वह तो आप पर निर्भर है।। मैं तो सि सिर्फ समझा सकता हूं, मैं अहस अहसास करा सकता हूं कि जीवन का आनन्द क्या है? और साधना द्वारा हम उस स्थान पर पहुँच सकते जह जहां विरह होता ही नहीं।।। हम आँख क क चिंतन क कntas साधना के माध्यम से हम प्रभु के चरणों में पहुँच सकहुँच सकहुँच सकहुँच सकहुँच आपके जीवन में ऐसा आनन्द हो, ऐसा संतोष हो, आपके जीवन में पूर्णता हो, आप भी ध्यान लगाने कि प्रक्रिया में संलग्न हो सकें, अपने इष्ट के दर्शन कर सकें और अपने आपको पूर्ण रूपेण गुरू चरणों में समर्पित करते हुए उस ज्ञान को प्राप्त कर सकें हम हमारे पूर्वजों की धरोहर थी, ऐसा ही मैं आप सबको हृदय से आशीर्वाद देता हूँ।।
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Sr. Kailash Shrimali
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