लेकिन एक बात हम विशेष ध्यान रखते हैं कि अंधकार में भी हमें प्रतीक्षा रहती है कि सूर्य अवश्य उगेगा और इस धरती को प्रकाशवान करेगा और हम भी बाधाओं, परेशानियों को अंधकार समझते हैं और यह आशा रखते हैं कि ये बाधायें अंधकार की भांति अवश्य समाप्त होगी और हमारे जीवन में भी सूर्य अवश्य आयेगा। यहसूर्य कौन हैं?
guru é o sol
जिस दिन शिष्य विचार कर लेता है कि उसके जीवन में गुरू ही सूर्य हैं और वे ही उसे प्रकाश, ऊष्मा, ऊर्जा, शक्ति विकास की गति प्रदान कर देते हैं, उस क्षण वह गुरू रूपी सूर्य के सामने नमन करते हुये पुनः अर्घ्य अर्पित करता है , उगते हुये सूर्य की लालिमा को देखकर प्रसन्न होत
सद्गुरू शाश्वत हैं, सत्य है, शिव और सुन्दरम् हैंन्दरम् हैंरैंरम् इसलिये गुरू को 'सत्यम् शिवम् सुन्दरम्' कहा गया है और हम प्रतिक्षा करते हैं, हमारे जीवन के सूर्योदय दिवस 21 अप्रैल की, जिस दिन इस धरा पर सद्गुरूदेव ने अपनी पहली प्रकाश किरण और हम शिष्यों को ऊर्जा तथा चैतन्यता प्रदान की, इसलिये अवतरण दिवस की महामहिमा है। यह दिवस शिष्य के लिये रामनवमी है, कृष्ण जन्माष्टमी है, महाशिवरात्रि है और इससे भी बढ़कर शिष्य के स्वयं के जीवन-उदय का क्षण है, जब उसने पहली बार जाना की सूर्य कैसा होता है और उसका प्रकाश किस प्रकार आनन्द देता है। उसके पहले तो संस संसार के अंधकार में हे marca थे औ औ हमने स्वयं अपनी प प ded अज्ञान का ही पर्दा लगा खा था। जब हमने सद्गुरूदेव के ज्ञान प्रकाश को अपने शरीर, मन, रोम-रोम, कण-कण में भर लिया है तो यह दिवस हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण स्वरूप में शिष्य का नवीन रूप में उदय दिवस बन गया। नमन है सद्गुरूदेव को औऔ नमन है 21 अप्रैल के मह महान क्षण को, जिस दिन सद्गु desse
महापुरूष; ेते हैं, मूलतः यह उनकी अपनी स्वयं की ही क्रिया हो Mais informações sobre como fazer isso Mais informações रने हेतु ही इस धरा पर अवतरित होते हैं।
सद्गुरूदेव का जन्मदिवस 21 अप्रैल है औऔ आज यह निखिल जयंती बन गई है, आज भक्तों और साधकों का यह दिवस है, महान सिद्धि दिवस
जब देवलोक और सिद्धाश्रम धरती से ईर्ष्या करने लग जायें, तो सद्गुरूदेव स्वयं ही अपना ज्ञान इस धरा पर फैलाकर सिद्धाश्रम की ओर प्रस्थान कर गये और जो बीज उन्होंने धरती पर बोये, जिन साधकों शिष्यों को अपने रक्त की बूंदों से तैयार किया, वे कभी यह मानने के लिये तैयार नहीं है कि सद्गुरूदेव इस धरा पर नहीं है।। वे प प्रकाश पुंज, ज्ञान पुंज हैं जो कि भी अस अस्त नहीं सकत सकता है।
बेखूदी में हम तो द दntas होश ही कह कह कह कह कह कह कह कह कह ह ह गय गय समझने क क एक लह लह थमती तब तक दूसदूस लह लहntas था की उसकी जड़े जिस पृथ्वी से जुड़ी है, जिसकी छाती से उसे स मिल ह हा है, वह फि फि कुछ नया घटित करह देगा। जीवन की धूप-छांव के बीच, पतझड़ और सूखी हवाओं के बीच भी साधक-साधिकाये चलते ही रहे, केवल ज्यों-त्यों जीवन पूरा कर देने के लिये ही नहीं, उत्सव की तलाश में, महोत्सव की खोज में, क्योंकि उत्सव ही जीवन का सार है। क्योंकि जीवन बनक बनकबनक नहीं जीना है, इतना तो एक स्थान पर खड़ा हुआ वृक्ष भी जानता है।
यह उत्सव केवल गुरूदेव ही दे सकते हैं, स्वप्नों की कोमल गुलाबी और यौवन की हल्की धानी कोंपलें वे ही इस मन में खिला सकते हैं- प्रेम की कोंपलें, आशा की कोंपलें, अंगड़ाइयों की कोंपलें, श्रद्धा और विश्वास के ओस से भीगी-भीगी नम कोंपलें, इस नम्र प्रायः हो गये औ औ औ मन फि फि से सजाने के लिये।।।।।।।।।।।।।। पक गया था पिछला जीवन, थक गये थे वे पल, उन्हें पकने के बाद पीला होकर गिरना ही था कि एक नई कोंपल फूटे और वह सूखे दरख्त की उदास टहनियां में हलचल मचा दें, एक कोंपल दूसरी कोंपल को चिमगोईयां कर जगा दे।
एक दूस दूसntas बस मन की नहीं आंखें भी। आंखें गुलाबी न औ औऔ उनमें सुर्ख डोरे न उतर आये, तो उत्सव ही क्या? उत्सव का अर्थ ही है मादकता और शरारत से भरी अंगड़ाइयां, विश्वास न हो तो वृक्ष को देख लें, उत्सव मनाने की कला वृक्ष से सीख लें कि उन नर्म-नर्म पत्तों से फूटी कोई मंद बयार चले और गति की कड़ी बन फिजां में बिखरती ही चली जाये।
गुमनगुनाती हुई आती है फलक से बूंदें कोई बदली तेरी पाजेब से टकराइ, दीवानगी की बदली और यौवन की छलकाती पाजेब जब टकरायेगी तो देखते ही देखते रिमझिम-रिमझिम फुहारों, फुसफुसाहटों, खिलखिलाहटों, कानाफूसियों और इशारों की बरसात शुरू हो ही जायेगी, क्या इससे अधिक मादक कोई उत्सव हो सकता है? O que você está fazendo?
21 अप्रैल जन्म दिवस सद्गुरूदेव का है, शिष्य के क का सबसे पadura यह तो आह्लाद, प्रेम, हर्ष, रस, सत्य, नवयुग का दिवस ह यह दिवस तो उत्सव दिवस है, साधना, सिद्धि, संस्कृति, धर्म, चेतना का उत्थान दिवस है।।।।।।।।
इस बार यह दिवस दुर्ग (छ-ग-) में शिष शिष्य साधक मिलकर दिव्य गीत गायेंगे। उस अमर संदेश को अपने हृदय उत उतारेंगे, अपनी प्रेम भरी पुकार से अपने प्रिय सद्गुरूदेव को में उतार देने लिये आतु आतुआतु सद हो।।।। उत उत के आतु आतु सद सद उठेंगे। हमसे मिलकर अपने हृदय सम्राट गुरू को भ भावों का अर्घ्य, अंजलि अवश्य प्रदान करेंगे और यह संकल्प लेंगे की हे सद्गुरूदेव! यह जीवन आपसे ही आलोकित है, यह महिमा आपकी ही द। हुा यह जीवन आपको समर्पित है। Vers
आपके जीवन की सार्थकता हैं कि अपने हृदय भाव से सद्गुरूदेव को आत्मसात किया है और हमारे रोम-रोम में उन्हीं के मंत्र का गुंजरण हो रहा है और उसी के फलस्वरूप जीवन में आनन्द, रस, प्रसन्नता, उल्लास का भाव आ रहा है क्योंकि जितना हम अपने ज्ञान का विस्तार करते है उतनी ही जीवन ऐसी श श्रेष्ठमय स्थितियां आती।। तब ही अ अर्थों में हम अपने परमेश्वर का अवतरण दिवस मना सकेंगे।।।।
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