इस प्रकार पुरूष के जीवन में संस्कारवान, श्रेष्ठ आचरण परिवार को संभालने वाली, समाज, सोसायटी में गुणी व सौन्दर्यवान नारी का होना अनिवार्य है। तभी गृहस गृहस्थ जीवन में स, आनन्द व प्रसन्नता का वातावरण बन पाता है। कहने का तात्पर्य यही कि स l स्त्री-पुरूष दोनों श श्रेष्ठ गुणों और ज्ञान, आकर्षण से युक्त हों तब गृहस गृहस्थ जीवन आकर्षण बनत युकात हों तब ही गृहस्थ जीवन पूर्ण बनता युक है है है
सामान्य सांसारिक गतिविधियों क कारण, उत्पन्न वैचारिक मतभेद क का marca जिससे स्थितियां बड़ी दुरूह बन जाती हैं। अधिकांश गृहस्थ जीवन यापन कर रहे युगल का यही कहना होता है कि मुझे मेरा जीवन साथी समझता ही नहीं अर्थात् पति-पत्नी एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान नहीं करते है जिससे गृहस्थ जीवन नारकीय युक्त तनाव, कलह-क्लेश, एकाकीपन, चिन्ता आदि विषमताओं से घिर जाता है। पति-पत्नी का सम्बन्ध भौतिक सुखों पर आधारित हो गयारित हो गया हो गया हो रसना और वासना सम्बन्धी सुख करना मानो युग धर्म बनतर्म बन जिसके कारण परिवार में प्रेम, स्नेह, आत्मीयता, समर्पण भाव, त्याग की भावना समाप्त ही गई गई गई है।।।। है है है है है है है है है है है है है है है है पति-पत्नी का सम्बन्ध पवित्र, श्रद्धा, विश्वास, सहयोग एवं सम्मान पर आधारित होता है, लेकिन वर्तमान में पति-पत्नी में श्रद्धा, विश्वास, समर्पण एवं सम्मान के बदले स्वार्थ तथा अहंकार की भावना काम करने लगी है। जिसके कारण अधिकांश गृहस्थ का पारिवारिक जीवन खण्डित हो हे हे हैं या नीरसता स्वरूप परिवा conseguir
उक्त सभी नकारात्मक व नीरसमय स्थितियां समाप्त होना आवश्यक है, साथ ही सौभाग्यशक्ति का जाग्रय होना गृहस्थ जीवन लिये लिये अनिवअनिवार्य है।। होन होन होन होन क कार क जedade सौभाग्यशक्ति का तात्पर्य यही है कि जो भी पति-पत्नी के बीच मतभेद और असामंजस्य की स्थितियां हैं, वह समाप्त होकर पूर्ण एकात्मक भाव से सम्बन्ध स्थापित हो सके और गृहस्थ जीवन सभी सुखों आत्मिक प्रेम, एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान, अपनत्व की भावना , त्याग, सहनशीलता, धैर्य, सौम्यता, सौन्दर्य से आपूरित हो सके।।
गृहस्थ सुख सौभाग्य सौन्दर्य दीक्षा से गृहस्थ जीवन की सभी सुमनोकामनायें पूर्ण होती हैं और यह गृहस्थ जीवन के मजबूत नींव के निर्माण के साथ ही दीर्घायु जीवन प्रदायक है। इसके साथ ही संतान सुख वृद वृद्धि होती औ औntas इस दीक्षा के माध्यम से सदा सन्मार्ग व सुकर्म से जीवन ओत-प्रोत हो सकेगा और पति-पत्नी के बीच स्नेह-सम्मान, विचार-विनिमय, सहानुभूति के परस्पर मेल-जोल से दाम्पत्य जीवन सहयोगात्मक बनता है
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