शांति, सुख और शीतलता जो व्यक्ति बाहर ढूंढ़ता है, वस्तुओं में ढूंढ़ता है उसे अपने आप अन्दर मिल जायेंगे। संसार में, संसार के पदार्थों को और संसार की चीजों के संग्रह को हम बड़ा महत्व देते हैं। इन वस्तुओं से आपको सुविधा मिलेगी, थोड़ी आसानी हो जायेगी। कभी-कभी सुविधा के बजाय दुविधा हो जाती है। ये सद्गुण आपके अन्दर जग गये तो संसार तो ऐसा ही रहेगा लेकिन आपके लिये सुखदायी बन जायेगा। यह संसार सुख देनेवाला बन जायेगा। जब आप बहुत परेशान होते हैं तब आपको संसार की चीजें अच्छी नहीं लगती। अन्दर चिन्ता हो, जब शरीर में रोग हो, घर में कलह हो, व्यापार में हानि हो जाये, समाज में सम्मान के बजाय अपमान होने लगे तो मन के अन्दर पीड़ा होने लगती है। मन दुःखी हो जाता है। उस स्थिति में अगर आपको कोई बगीचे में लाकर खड़ा कर दे और कहे कि देखो कितने सुन्दर फूल खिले हुये हैं तो आप कहेंगे कि मुझे अच्छे नहीं लग रहे। कोई कहे कि यह संगीत सुनो कितना अच्छा है, तो आपको आनन्द नहीं आयेगा। क्योंकि आपके अन्दर दुःख है, पीड़ा है। सामने कोई अच्छा भोजन, स्वादिष्ट भोजन रखे, आप खाएंगे, जिस खाने का जो स्वाद है वह तो आ रहा होगा, लेकिन फिर भी फीका लगेगा, क्योंकि अन्दर कोई पीड़ा है, दुःख है, क्लेश है।
यदि आप अन्दर से ही अपने आपको ठीक रखना सीख जाये तो फिर कोई व्यक्ति आपको रेत के टीलों पर ले जाकर खड़ा कर दे और कहे कि यहां का सौन्दर्य देखो तो आपको वह प्रकृति का एक सौन्दर्य लगेगा, कुदरत का एक चमत्कार मालूम होगा। रेत के टीलों पर ही कविता और गीत याद आने लगेंगे। यदि आप अन्दर से खुश नहीं है, अन्दर की शांति नहीं है, सुख नहीं है, चैन नहीं है, फिर संगीत तत्व की अनुभूति नहीं होगी। हम जितना बाहर से, समाज से प्रभावित होते हैं उससे कहीं अधिक अपने अन्दर से सुखी और दुःखी होते हैं।
व्यक्ति सारे संसार का सामना कर लेता है और बहादुर बनकर रहता है, लेकिन अपने घर में हार जाता है। बाहर की स्थितियों का सामना कर लेता है, पर घर के अन्दर की स्थितियों का सामना नहीं कर पाता है। व्यक्ति बाहर की कमजोरियों से इतना नहीं टूटता है। अन्दर की कमजोरियां व्यक्ति को तबाह कर देती हैं। घर में कलह है, अन्दर मन में कोई दुःख लगा हुआ है, कोई शोक लगा है उससे व्यक्ति जी नहीं पाता। विशेष बात यह है कि हर व्यक्ति प्यार का भूखा है। हर व्यक्ति चैन चाहता है, हर आदमी सुख चाहता है, शांति चाहता है। परेशानी कोई भी नहीं चाहता। दुनिया में उलझना कोई भी नहीं चाहता। हर आदमी यह चाहता है कि कोई तो ऐसा हो जो उसे समझे। दुःख इस बात का है कि इन्सान को समझने वाले लोग नहीं मिल पाते। बरसों तक साथ रहने वाले पति-पत्नी एक-दूसरे को नहीं समझ पाते। नासमझी के कारण रिश्तेदार एक-दूसरे को नहीं समझ पाते। कितना दुःख होता है।
थोड़ी सी अनुकूलता मिल जाये फिर देखिये। आप एक इसी उदाहरण से समझिये। किसी महिला से आप कहो की आप दस किलो वजन उठाकर चलो तो शायद उठाकर चलेगी भी लेकिन थोड़ी ही देर में थक जायेगी। परन्तु पन्द्रह किलो वजन का अपना बेटा गोद में लेकर प्यार से चलेगी और उसे बोझ नहीं लगेगा। वह आराम से चलती जायेगी क्योंकि वह बोझ, बोझ है ही नहीं। उसे तो यह अनुभव होगा कि यह भी उसके शरीर का अंग है। वहां प्रेम है, वात्सल्य है, इसलिये बोझ नहीं लगता। कभी-कभी आप देखते है कि विपरित स्थिति में आपसे दो घंटे वह काम कराया जाये जो आपको पसन्द नहीं है तो आप दो घंटे में ही थक जायेंगे, परन्तु यदि आपको वह काम पसन्द आ जाये तो वही काम आप आठ घंटे, दस घंटे करते रहेंगे फिर भी नहीं थकते। जबकि वह काम उससे भारी है। अन्दर की अनुकूलता यदि है तो बाहर की परिस्थिति बिगड़ी नहीं लगती। व्यक्ति बाहर की स्थिति का सामना कर लेगा। यदि उसकी अन्दर की स्थिति टूटी हुई है तो फिर बाहर थोड़ा भी प्रतिकूल हो तो बर्दाश्त नहीं हो पाता।
उपर्युक्त गुणों को यदि हम गांठ में बांध लें, अपना ले, तो वे जीवन की यात्रा में हमारे पाथेय है। वह भोजन है जो आपके काम आयेगा, किसी पड़ाव पर ठहरकर इनका स्वाद लीजिये। विदुर जी कहते हैं- सत्यम् दानम्। व्यक्ति को सत्यता अपनानी चाहिये। व्यक्ति को बनावटी जीवन से बचना चाहिये। आपकी जिन्दगी जितनी बनावटी होगी, कृत्रिम होगी, दिखावटी होगी, उतने ही आप अशांत रहेंगे। जितने सरल-सीधे-सच्चे बनकर चलोगे उतनी ही शांति होगी। झूठा व्यक्ति विश्वास को तो खो ही देता है, अपने मनोबल को, मन की शक्ति को भी कमजोर कर लेता है। झूठ आपकी मन की शक्ति को कमजोर करता ही है, साथ ही झूठ बोलोगे तो याद रखना पड़ेगा कि कब क्या बोला था? बार-बार याद रखना पड़ता है कि व्यक्ति से क्या कुछ बोला था, अगली बार मिलने पर वही दोहराना पड़ेगा, नहीं तो झूठ पकड़ा जायेगा।
सत्य याद नहीं रखना पड़ता। सोते हुये व्यक्ति को भी अगर आप जगाकर पूछे तो सच ही बोलेगा। झूठ के लिये सोचना पड़ता है। झूठ पकड़ने की जो मशीनें बनाई गई हैं वे व्यक्ति के हृदय की धड़कन की गति बताती है। झूठ बोलते समय हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। झूठ बोलते समय आदमी थोड़ा घबराता है। मसल में उस समय थोड़ा-सा दबाव बढ़ने से घबराहट का निशान आ जाता है। यह निशान हृदय की धड़कन बताता है। झूठ बोलते समय हृदय पर असर पड़ता है, क्योंकि झूठ को तो याद रखना पड़ता है, धड़कन में हिचकिचाहट होती है। सत्य के समय हृदय शांत रहता है।
जिससे वे वचनो में भी यही शब्द सबसे महत्त्व का है कि सत्य शक्ति है, सत्य पिता परमेश्वर को पसन्द है। सत्य बोलने वाला, सत्य पर चलने वाला ही पिता परमेश्वर के दरबार में पहुँचेगा। जो झूठ और छल करने वाले लोग है, वे बाहर रह जायेंगे, वे पिता को पसन्द नहीं है। प्रत्येक धर्म में, मजहब में, सम्प्रदाय में सब जगह एक ही बात कही गयी है कि मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति सत्य का आधार है। सरलता से अपनाइये। अशांति इसलिये है कि व्यक्ति झूठ बोलता है, दिखावा करता है, बनावटी है, कृत्रिमता अपनाता है, जितना वह है नहीं उससे ज्यादा कुछ दिखाई देना चाहता है। व्यक्ति की कमजोरी है कि जितना ज्ञानी नहीं होता उससे अधिक का प्रदर्शन करता है, जितना धनी नहीं है उससे अधिक का रौब जमाता है। जितने बड़े पद पर नहीं बैठा, उससे अधिक लोगों के ऊपर रोब, अधिकार जमाता है। पद से नीचे उतर जाये तो फिर उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी। धनी का धन छीन लिया जाये तो उससे बड़ा निर्धन, निर्बल और कमजोर कोई नहीं है। धन छीना गया कहानी खत्म हो गई। दुनिया में ऐसे व्यक्ति भी हैं जिनके पास कुछ भी आये उनकी मस्ती में कमी नहीं आती, वह उसी तरह से मस्त रहते हैं आनन्दित रहते है। बस उन्हीं को आप पकड़िए क्योंकि संसार तो संयोग और वियोग का केन्द्र है। यहां कुछ मिलेगा, कुछ छूटेगा। कुछ भी यहां स्थायी रहने वाला नहीं है। जीवन में एक समय ऐसा आता है कि आप मिट्टी को हाथ लगाते है तो वह सोना बनती है और कभी सोना मिट्टी हो जाता है। कुछ समय ऐसा होता है कि आप चालाकी, चतुराई नहीं करते हैं तो भी आगे बढ़ते जाते है। कभी आप पूरी चालाकी, चतुराई और अपनी बुद्धिमता को दिखाये फिर भी सफल नहीं हो पाते। इससे स्पष्ट है कि कहीं किसी ओर के हाथ में भी सत्ता है, हमारे जीवन की बागड़ोर किसी दूसरे के हाथ में है। कोई और है जो संसार को संभाले बैठा है।
जिनकी प्रसन्नता को, जिनकी मस्ती को, संसार की विघ्न-बाधाये छीन न सकें, वही सच्चे अमीर लोग हैं। यद्द्पि उनके पास दुनिया का वैभव कुछ भी नहीं है फिर भी ऐसा लगता है कि दुनिया का सब कुछ उन्हीं के पास है। वास्तव में तो दौलत अपने अन्दर है, महल भी अपने अन्दर है। व्यक्ति बाहर से राजा नहीं बनता, अन्दर से बनता है। आज से हम सच्चे राजा बनेंगे, अब तक हम झूठे राजा बने हुये थे। यह जीने का, सुखी बनने का अच्छा ढंग है जिसे सीखना चाहिये और जीवन में अपनाने का प्रयत्न करना चाहिये।
ame sua mãe
Shobha Shrimali