क्रिया योग को लाहिड़ी महाशय ने भी समझाने का प्रयास किया, विशुद्धानन्द ने भी समझाने का प्रयत्न किया, मगर क्रिया योग स्वयं में इतना अगाध और विशाल समुद्र है, जिसको दो छोरो में बांधा ही नहीं जा सकता। इसको समझाने के लिये अपने आप को समुद्रवत् बनाना ही पड़ता है।। मैंने यह समझाया, कि व्यक्ति किस प्रकार से अपने जीवन में धारणा को स्थान दे और धारणा के बाद किस प्रकार गुंजरण क्रिया करते हुये वह ध्यान में प्रवेश कर सकता है। आप एक गुंज गुंजरण करेंगे, तभी एहस एहसास होगा, कि म मानसिक तृप्ति भी अनुभव होती है।।।।।।।।। एक ऐसा एहसास होता है, कि कुछ है जो हमारे जीवन में स्पष्ट नहीं है और यदि इसी गुंजरण को आप बीस दिन करते हैं तो एहसास होता है, कि वास्तविक आनन्द तो कुछ और ही है जो बाहरी संसार में प्राप्त नहीं हो सकता।
Mais informações Mais informações sobre como fazer isso की ओर बढ़ता जाता है और जितना ही श वृत्तियों की ओर बढ़ता है, उतना ही वह दुःख के दलद ल में फंसता जाता है।
संतान पैदा करना अपने आप में क का अनुभव सकत सकता है, परन्तु उसको बड़ा करना बड़ा ही श्रमसाध्य है। वह कोई आसान काम नहीं है, बहुत सी परेशानियां, कष्ट है इसमें— और इसके बाद भी संतान से सुख मिले, कोई जरूरी नहीं है और यदि सुख मिल भी जाय, तो भी वह सुख अपने-आप में आनन्द नहीं दे सकता।
Mais informações पंखा चल marca है, यह मुझे सुख तो सकत सकता है, मगर आनन्द नहीं सकत सकता। यदि म मानसिक तनाव में, तो बेशक ए-सी- लगा हुआ, नौकर चाकर हों- सब बेक बेकार है। यदि व्यक्ति बीमार है, अशक्त है, हार्ट का मरीज है, तो उसको धन और मकान कहाँ से देंगे देंगे देंगे? Mais informações आनन्द की जो प्रवृत्ति है, जीवन का जो सच्चिदानन्द स्वरूप है, जिसको सत् चित Paraxa
आप आसानी से गुंजरण क्रिया के माध्यम से ध्यान में पहुँच सकते हैं।। ध्यान जहां अपने आपको अपना ज्ञान नहीं रहे, हम थॉटलैस माइण्ड बना सकें, अपने आप में रह सके और पूरी तरह से अपने आप में ही डूब जायें। Mais informações हमारे शास्त्र, हमारे गुरूओं, राम, कृष्ण और पैगम्बर सभी ने एक ही बात कही है कि आप जितने ही अपने-आप से बात करने की कला सीख लेंगे, अपने-आप में डूब जायेंगे, उतना ही जीवन में आनन्द प्राप्त कर सकेंगे।
मैं आनन्द शब्द प्रयोग करहा हूँ सुख शब्द का प्रयोग नहीं कर ा हूँ सुख तो आप पैसा खर्च करके भी प्राप्त कर सकते हैंntas सुख व व्यूह में क कntas तो आपको तृष तृष्णाओं ऐसे क का तो अन अन्त है नहीं नहीं, क्योंकि जो दिखाई दे marca ह है वह सुख नहीं।।। यदि यही सब होता तो जीवन में इतनी विसंगतियां, इतनी बाधायें, परेशानियां नहीं आती।
जीवन आनन आनन्द की प्राप्ति का पहला पड़ाव ध्यान है सत्, चित् और आनन्द। आनन्द तो बाद में है पहले हम अपने जीवन को सत्यमय बना सकें, उसके बाद ही अपने चित् तक पहुँच सकते हैं, उस चित को नियंत्रित कर सकते हैं और तभी आनन्द की प्राप्ति हो सकती है। यदि हम देखें, तो अपने जीवन-आनन्द की प्राप्ति के लिये नहीं भटक हे हैं हैं, इसके लिये आप प्रयत्न नहीं करहे हैं इसके आप प्रयत्न कर रहे हैं- सुख की प्राप्ति के लिये,— और सुख अपने आप में संतोष, आनन्द, धैर्य, मधुरता, प्रेम नहीं दे सकता, क्योंकि हमने उन कलाओं को भुला दिया है, उस ध्यान की प्रक्रिया को भुला दिया है।
ध्यान के बाद तीसरी स्टेज होती है, 'समाधि'। समाधि के बारे में याज्ञवल्क्य ने सुन सुन्दर श्लोक में समझाया है-
चित्तं प्रदेव वदतां परिपूर्ण marca चित्तं कृपान्त परिमे वहितं सदैवं।।।
आत्मं परां परमतां परमेव सिन्धु, सिद्धाश्रमोद वरितं प्रथमे समाधि ।।
समाधि वह होती है, जब हम स्वयं को से बिल l अलग क कntas, परम आनन्द में लीन सकें सकें, क्योंकि सुख अपने में भोगव भोगवादी प् marca सुख से भोग पैदा होता है, भोग से रोग पैदा होता है और रोग से मृत्यु पैदा होती है— और वह रास्ता अपने आप में मृत्यु की ओर जाने का है। O que você pode fazer? पुष्प को क कntas प्रकृति के बीच में यदि बैठ जायें- तो घंटे दो घंटे अपने आपको भुला सकें और उसके साथ ही कोशिश करें उस चित् को पकड़ने की, जो गुंजरण क्रिया के माध्यम से जाग्रत होता है।
जब वह हृदय कमल आप में प प्रस्फुटित होने जाता है, तब अमृत वर्षा होने लगती है।।।।।।।।।। नाभि में अमृत कुंड है, जिसके माध्यम से पूरा जीवन संचालित होता है।। चित् ज्यों ही अपने आप में जाग्रत अवस्था में पहुँचता है, आनन्ददायक अमृत की बूंदें विस्तृत होकर पूरे शरीर को और चित् को परितृप्त कर देती हैं और ज्यों-ज्यों हम ध्यान में अन्दर जाते रहते हैं, त्यों-त्यों हम चित् के निकट पहुँचते जाते हैं ।
चित् के निकट पहुँचने पर आप उस समाधि में लीन होंगे, जहां, आपको तीन अवस्थाये प्राप्त होंगी। पहली अवस्था में गुंज गुंजरण क्रिया करें, शंख औऔ सोऽहं मंत्रोंच्चारण के माध्यम से दे देरोंच तक हो सके, करें बत्तीस मिनट की गुंजरण क्रिया पूर्ण कहलाती है। उच्चकोटि का योगी बत्तीस मिनट स सांस को नहीं देत देता। प्रारम्भ में व्यक्ति एक मिनट या दो मिनट गुंजरण क्रिया कर सकता है पर बाद में यह अवधि धीरे-धीरे बढ़ती रहेगी। इस क्रिया को करने के लिये किसी पाठशाला में बैठने की जरूरत नहीं है, मात्र 'सोऽहं' के गुंजरण के सहारे इस सारे शरीर को चार्ज किया जा सकता है।
इस क्रिया के माध्यम से शून शून्य में लग लगा लेते, जमीन के ऊप ऊपntas जब भर्तृहरि ने सोऽहं साधना करनी चाही तो गुरू ने कहा- ऐसी जगह साधना करना, जो अपने आप में अत्यन्त पवित्र स्थान हो और उसने पूरी पृथ्वी को देखा, परन्तु ऐसा कोई स्थान नहीं मिला। Mais informações जमीन का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं, जिस प प थूक, लार, marca नहीं गि गि प प, कौन सा स्थान पवित्र गि गि हो हो कौन सासान पवितार है जह जहां जहां पर बैठकबैठक साधनान जार है, जहां पर बैठकर सोऽहं साधनान जाय जह जहां पर बैठकर सोऽहं स साधना कीाय है जहां पर बैठकर सोऽहं स साधना कीाय है जह जहां पर बैठकर सोऽहं स सundoधन जा ज है जह जह जहqui जहntos
भर्तृहरि ने कहा- मुझे तो पृथ्वी पर ऐसा कोई भी स्थान दिखाई नहीं ह हा है, जहां पर किसी प्रकार की असंगति नहीं ही जह जह प प प किसी प्रकारकी की असंगति नहीं ही ही जह हो हो। किसी किसी प्रकgio Linha गुंजरण क्रिया के माध्यम से शरीर के अन्दर उतनी विद्युत, उतनी ऊर्जा पैदा हो जाये, जिससे वह हल्का हो, ऊपर उठ सके।।
अभ्यास तो आपके हाथ में है, क्योंकि यह तो क्रिय ऋ य ऋ य ा आप करके तो देखें और नहीं हो, तो फिर आलोचना कर सकह॥,
फिर मैं आपके प्रति जिम्मेदार हूँ, मगर आप करेंगे ही नहीं और खड़े होकर आलोचना कर देंगे तो फिर आलोचना करना कोई बहुत बड़ी बहादुरी और विशेषता की बात नहीं है, कायरता की बात है। Mais informações
हम जो कुछ भी कहें, पहले हम स्वयं दमखम के साथ करें॥ उस गुंजरण क्रिया को इतनी तेजी के साथ करें, जिससे अन्दर विद्युत पैदा हो सके, हीट पैदा हो सके और वायुयान में जब हीट बनती है, तो उस विद्युत प्रवाह के कारण से ही इतना बड़ा हवाई जहाज ऊपर उठ जाता है, यदि उसमें एक छेद कर दिया जाय, हीट निकलने का marca रास्ता बना दिया जाय, तो क्या वायुयान ऊपर उठ सकता है?
आपने अपने जीवन किसी म मntas जब आदमी मरता है, तो उसके अन्दर जो प्राण है, वे दस में से किसी भी द्वार से बाहर निकल जाते हैं और उसकी मृत्यु हो जाती है— और वे दस द्वार हैं- दो आंखें, नाक के नथुने, एक मुंह, एक गुदा, एक लिंग, एक नाभि और दो कान। इन दसों द्वारों से अंदर की विद्युत बाहर निकलती थ यह विद्युत का प्रवाह है, जिसके द्वारा मैं तुम्हें देख रहा हूँ आंखो के माध्यम से, ये विद्युत ही है, कि मैं तुम्हारी बात को सुन रहा हूँ ये अन्दर से निकलती तरंगें हैं, जो मैं बोल रहा हूँ। अन्दर से बाहर निकलने की क्रिया विद्युत का विपरीतीकरण है।।
Linha साधारण marca से ब बाहर निकलेगी, क्योंकि भगवान ने ढक्कन तो दिये नहीं।।।।।। इसलिये जब सामान्य गुंजरण का आठ मिनट का अभ्यास हो जाये तो उसके बाद उन दसों द्वारों को बन्द करके गुंजरण क्रिया का अभ्यास किया जाना चाहिये- यह इसकी दूसरी अवस्था है और जब दसों द्वार बन्द करके गुंजरण करेंगे, तो फिर वह हीट बाहर निकल नहीं सकती , वह अन्दर ही रहेगी। उस गुंजरण के माध्यम से उत्पन्न हुई विद्युत ऊर्जा को अन्दर रोकने की क्रिया अपने आप में चैतन्य क्रिया कहलाती है, यह समाधि अवस्था का प्रारम्भिक बिन्दु है।
O que você está fazendo?
चैतन्य का मतलब है- अन्दर के चित्त को, अन्दर के समस्त चक्रों को क्रियान्वित कर देना। कुण्डलिनी जागरण के लिये आवश आवश्यक नहीं, कि एक-चक चक्र को क्रम से जाग्रत करें। Mais informações कुण्डलिनी जागरण का अर्थ है- पहले आप भस्त्रिका करें, मूलाधार करें, फिर आप स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करें, इस प्रकार बारी-बारी से चक्रों को जाग्रत करें, पर इसमें कई बार गड़बड़ भी हो जाती है। कुण्डलिनी जागरण की क्रिया थोड़ा सा marca र्ता बदल देती है है, तो आदमी का दिमाग बिलकुल असंतुलित ज जाता है।।। क दिमाग मगर इस क्रिया के माध्यम से एक-एक चक्र नहीं, अन्दर के सारे चक्र एक साथ जाग्रत हो जाते हैं, जिसको 'पूर्ण कुण्डलिनी' जागरण कहते हैं या सहस्त्रार जागरण कहा जाता है और यह इस चैतन्य क्रिया के माध्यम से ही संभव है।
O que você quer?
O que você pode fazer? इन द्वारों को क करने के ब बायें पैर की एड़ी गुद गुदा पर ब ब दें पै पै।। Mais informações sobre como fazer isso यह क क्रिया है और इस क्रिया में व्यक्ति दस घंटे बैठे तो भी थक नहीं सकता। Mais informações दोनों तर्जनी उंगलियों म माध्यम से दोनों आंखों को क कक दें।। मध्यमा के माध्यम से दोनों नथुने औऔ अनामिका व कनिष्ठिका के माध्यम से होठों को क कक दें। अब उसके बाद गुंजरण क्रिया प्रारम्भ करXNUMX यह एक क का अभ्यास करके देखें, पांच मिनट अभ अभ्यास के बाद आसन के नीचे स स्पेस बनेगा, यह गारण्टी कीात है है आप कक यह ग गा marca Mais informações
दसों द्वारों को क कntas इस अवस्था में पूर्ण समाधि लग जाती है, उसमें शरीर को पूर्ण शून्यवत् बनाते हुये, जमीन से ऊपर उठने सम समाधि क्रिया कहते जमीन हैं समाधि क्रिया में आवश्यक है, अन्दर के सारे चक्र जाग्रत हों। हम अन्दर के सारे चक्रों को जाग्रत रखते हुये, अन्दर से पूर्ण जाग्रत रहते हुये बाहर से सुप्त हो जायें, बाहर की कोई स्थिति हमारे ऊपर हावी नहीं रहे, ऐसी स्थिति को ही समाधि कहते है।
अब प प्रश्न करेंगे- अगर यह समाधि है, तो फिर हमारा शरीर ऊपर उठता ही ded?
ऐसा नहीं है, क्योंकि साधक जमीन से अधिक से अधिक चार फिट ऊपर उठने से शून्य-आसन लगा सकता है और जहाँ आदमी चार फीट ऊपर उठ सकता है, वहां चालीस फीट भी जा सकता है और एक मील भी उठ सकता है, यह सब गुंजरण की तीव्रता पर निर्भर है और फिर जितना ही गुंजरण कम करेंगे, उतना ही वापिस नीचे ज जायेंगे।।
O que você está fazendo? क्या आभास marca है, कि अब मैं गुंजगुंज कम क कntas
Samadhi significa- अन्दर की सारी चेतनथ बाहर से आप कट होते है औ औ अन्दर एक प्रकाश बिखर जाता है औ ded. भगवान marcaम और श्रीकृष्ण के चित्रों के चारों ओर एक वर्तुल, प्रकाश की ेख ेखा देखी होगी।।। वह प्रकाश की marca अगर उन लोगों के प प प बन है, तो आप लोगों के भी बन सकती है, क्योंकि आप स्वयं ब्रह्म हैं अन्दर का जो आनन्द है, वह शरीर के ऊपऊप से जब बाहर बिखरने लग जाता है, तो सामने वाला देखते ही एकदम से ठगा सा सामने वाला है ही ही एकदम ठग सा सा ह जातात है। इतना तेजस्वी चेहरा, इतनी दिप क कक आंखें आंखें, क्या चेहरा है, क्या प्रकाश है, जरूर कोई बहुत बड़ा आदमी है, क्या आनन्द का प्स्स बड़ आदमी है, क्या आनन्द का प्स्स है आदमी है क क्या आनन्द का प्स्फुटन है है!
समाधि में अन्दर तो सारा चैतन्य marca ही है, यही नहीं उस चैतन्य अवस्था में ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं अवस।।।। Mais informações मेढ़क को यदि आप महीने महीने तक क क दें, तो वह बिना ऑक्सीजन के जिंद जिंदा marca लेगा। O que você está fazendo? क्योंकि बार-बार हाथ हिलाता है, पांव हिलाता है, देखता है, चलता है— और उसकी शक्ति समाप्त होती जाती है, इसीलिये आपको बार-बार सांस लेनी पड़ती है बाहर से। जब शक्ति खत्म होगी ही नहीं, तो अन्दर जो ऑक्सीजन है, वह आपको जीवन्त बनाये marca के लिये पर्याप्त होगी
इसीलिये समाधि दो दिन की भी ली जा सकती है। और समाधि के आगे की क्रिया को अमृत्यु कहा गया है। समाधि तो कितने व वर्षों की हो है औ औ जितने वर्षों की सम समाधि है, उससे कई गुना ज्यादा आपकी आयु हो सकती सकती उससे शरीर को चैतन्य करने के लिये, सारे चक्रों को जाग्रत करने के लिये और अमृत तत्व को अपनी नाभि में एकत्र करने के लिये यही क्रिया है, जिसको चैतन्य क्रिया कहा गया है।
इस क्रिया के माध्यम से अन्दर गुंजरण को निरन्तर प्रवाहित किया जा सकता है, जिसकी वजह से व्यक्ति शून्य समाधि लगा पाता है, जमीन से ऊपर उठकर समाधिस्थ हो सकता है और ऐसा होने पर उसके अन्दर, एक प्रकाश का उदय होगा, चेहरे से एक मस्ती झलकेगी। आपने भगवान कृष्ण की आंखों में कभी एक उदासी या खिन्नता नहीं देखी होगी।।।।।।।।।।।।।।। होगी होगी होगी जब भी आँखों में देखते हैं, एक मस्ती दिखाई देती, यह अन्दर का प्रभाव है।।।।। वही प्रभाव जीवन प प्राप्त हो, इसी प्राप्त होने क क्रिया को समाधि कहते।।। यह तो स सादी सी एक्टिविटी है, जिसमें कहीं मंत मंत्र जप क करना है।।
क्रिया तो आप क कntas, यदि आपको जीवन ऐस ऐसा आनन्द प्राप्त करना है, जीवन में यदि पूर्णता प्राप्त करनी है, तो आपको क क्रियgio गुरू तो आपको केवल रास्ता दिखा सकते . घोड़े को आप लगाम पकड़ करके तालाब के किनारे ले जा सकते हैं या उसको कह सकते हैं, कि यह पानी बहुत स्वच्छ है, यदि तू पीयेगा, तो प्यास बुझ जायेगी, पर यदि घोड़ा पानी पीये ही नहीं, तो आप क्या कर सकते हैं? आप गुरू की बात सुनकर हूं-हूं करते हें औ और घर चले जायें, फिर चार-छः महीने बाद में कहें, कि गुरूजी बहुत दुःखी हूँ।।। ब ब कहें कहें फि गुगु च च बहुत दुःखी हूँ
Sim! गुरू जी ने तो चार घंटे गला फाड़-फाड़ कर क्रिया योग की विधि को समझाया था, उसका क्या हुआ? अरे गुरू जी! वह तो सब ठीक है, मगर अब व्यापार चलाने के लिये मैं क्या करूं?
ये तो अधोग अधोगामी प्रवृत्तियां हैं, जिनका फल आप भुगत हे है है, इसमें गुगु गु तो कुछ क क नहीं हे हे। है, इसमें गु गुntas Linha
यह सीधे सादे शब्दों में क्रिया योग है, यही अपने में क क्रिया योग की पूर्णता, सिद्धाश्रम प्र्प कक पूक सिदध सिद सिद gre क प प प gre क प प प gre क प प प gre क प प प gre क प प प gre क प प प gre क प प प gre क प प प gre क प प प gre क प प प gre क प प प gre क प प प gre क प प प gre क प प प grel क प प प gre पू सिद सिद सिद grel है प प सिद grel पू प सिद सिदध सिद प सिद grel पू पू सिद gre, में में में. यदि आपने लाहिड़ी महाशय का ग्रंथ पढ़ा हो, तो उसमें क्रिया योग के बारे में लिखा है और उन्होंने प्रारम्भ के कुछ पृष्ठों में उल्लेख किया है कि क्रिया योग की दीक्षा लेने के लिये कितना अधिक भटकना पड़ा। कितनी परेशानियाँ हुईं, किस-किस प्रकार से मेरी परीक्षायें ली गयीं।। मेरे गुरू ने मुझे कितना ठोक बजा कर देखा, तब उन्होंने मुझे दीक्षा के योग्य पात्र समझा और इसी परिश्रम की वजह से, श्यामाचरण का बेटे रहे या नहीं रहे, मगर श्यामाचरण का नाम मुझ को आज भी याद है। मां आनन्दमयी का नाम मुझको और आपको ज्ञात है। उत्तम कोटि व व्यक्ति वे होते हैं, जो न नाम से दुनियां में छा जाते है।
Mais informações मान लीजिये की आप चालीस वर्ष की अवस्था में पहुँच पहुँच चालीस वर्ष की अवस्था के बाद आप जीवन अधोग अधोगामी प्रवृत्तियों में, तो किसी भी हालत में बिड़ला तो बन सकते सकते, टाटा भी नहीं बन बिड़ल।।। तो नहीं सकते सकते, टाटा भी नहीं बन।।।। लूनी गांव में एक व्यक्ति थे, उनकी उन्नीस संताने आज भी जिंदा हैं, चौबीस पैदा हुये, उनमें पांच मर गये और उन्नीस जिंदा हैं, आप तो उस स्टेज पर भी नहीं पहुँच सकते हैं। भौतिकता के marca र्तों पर तो असंख्य लोग चले हैं, परन्तु ये ऊर्ध्वगामी marca र प अछूते हैं ऊ ऊ ऊर्धामी रास्ते बिलकुल हैं।।।।।।। इन रास्तों पर बहुत ही कम लोग चल सके हैं। इन रास्तों पर चल करके आप पूरे देश में नाम कमा सकते हैं, हजारों लोगों का कल्याण कर सकते हैं, अपना स्वयं का मार्गदर्शन कर सकते है।
मैंने जैसा कहा, कि चौबीस घंटों में से आध आधा घंटा भी ऐसा करेंगे, तो यह गु गुरू सेवा ही होगी।। इतना तो गुरू दक्षिणा लेना गुरू का हक है। गुरू दक्षिणा के रूप में आप से गुरू न धोती चाहते हैं, न कुरता चाहते हैं, न पांच रूपये चाहते हैं, वे तो चाहते हैं कि आप नित्य आधे घंटे क्रिया योग का अभ्यास करें, उनके लिये तो यही गुरू दक्षिणा है। Linha जैसा कि मैंने बताया, कि क् marca
इसलिये मैंने आपको समझाया, e você também े प्राप्त की जाती है, शून्य में आसन कैसे लगाया जा Mais informações Mais informações सशरीर जाने की क्रिया कौन सी है, उसको समझाने पर Mais informações O que você pode fazer? ी आत्मा में प्रविष्ट करा देता है।
कुण्डलिनी और क्रिया प
क्रिया योग जीवन का एक ऐसा सत्य है, जिसके माध्यम से हम स्वयं एक्टिविटी करते हुये, स्वयं क्रिया करते हुये अपने इस शरीर को पूर्णता प्रदान कर सकते हैं और उस काल को, जो भूत और भविष्य का एक सेतु है, उसको देख सकते हैं और जीवन में और हृदय में आनन्द का एक स्त्रोत उजागर कर सकते है, अमृत कुंड स्थापित कर सकते हैं, जिसके माध्यम से हम वायवीय शरीर में, पूरे ब्रह्माण्ड में विचरण करने में समर्थ हो सकते हैं। ऐसी क्रिया योग दीक्षा प्राप्त करके साधक निरन्तर क्रिया करता हुआ अपने में में उन्नति की ओर अग्रसरसरस हो सकत सकत है उन उन की ओ ओर अग्रसरसस सकत सकता है है। Inte वह तब तक तो बहुत जरूरी है, जब हम क्रिया योग की तरफ बढ़े नहीं हो, जब हमने क्रिया योग देखा नहीं हो, समझा नहीं हो, सीखा नहीं हों, उसका अनुभव नहीं किया हो, मगर जब हम एक बार क्रिया योग की तरफ बढ़ जाते हैं, तो कुण्डलिनी अपने आप में स सामान्य सी स्थिति बनकर जाती है।।।।
हमारे शरीर में ऐसे कई चक्र हैं, जिनको नाडि़यों का गुच्छा कहते हैं और वे चक्र यदि स्पन्दनयुक्त हो जायें, जैसा कि मैंने प्रारम्भ में सहस्त्रर के बारे में कहा कि वह यदि जाग्रत हो जाता है, तो उसके माध्यम से जो क्रिया होनी होती है, वह ज जाती है, और वह क्रिया है- भूतकाल को की शक शक्ति और सामर्थ्य पैदा करना। जिस प्रकार सहस्त्र ग्रंथि शरीर की अन्तिम अवस्था है, उसी प्रकार मूलाधार ग्रंथि जीवन की प्रा Shentar मूलाधार से लगाकर सहस्त्रgua
O que você está fazendo? हमारे शरीर में बहत्तर हजार नाडि़यां हैं और बहत्तर हजार नाडि़यों में तीन नाडि़यां मुख्य हैं, जिनको इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना कहते हैं हैं तीनों नाडि़यों का प्रारम्भ ीढ़
आज्ञा चक्र में सुषुम सुषुम्ना नाड़ी पहुँचती औ और इड़ा मस्तिष्क तक पहुँचती है।।।।।।।। Mais uma vez-अलग स्थान है। हृदय पक्ष में समाप्त हो जाने वाली पिंगला है। जो बुद बुद्धि से ज ज्यादा कार्य करते हैं, उनकी इड़ा ज्यादा जाग्रत होती।। जो हृदय पक्ष को लेकर चलते हैं, उनकी पिंगला नाड़ी ज्यादा प्रभावयुक्त है और जो भौतिकता का और आध्यात्मिकता का संगम करके आगे की ओर बढ़ते हैं, वे सुषुम्ना नाड़ी को लेकर ज्यादा चलते हैं। यदि हम किसी वैद्य के पास जायें, तो सारे शरीर में कहीं पर भी रोग हो, वह केवल इन तीन नाडि़यों पर हाथ रख करके, उंगलियों के माध्यम से, उनके स्पन्दन से एहसास कर सकता है कि पूरे शरीर में कहाँ पर रोग है, किस प्रकार का रोग है?
इसका मतलब यह हुआ कि हाथ की कलाई में नाडि़यां हैं, उन नाडि़यों का पूरे शरी desse हृदय को, दिमाग को और पूरे शरीर की चेतना को एक साथ संगुम्फित करने में इन तीनों कुण्डलिनी नाडि़यों का सहयोग है और इन नाडि़यों के सहयोग को ही कुण्डलिनी कहते हैं।
Linha जैसा कि मैंने बताया, पिंगला नाड़ी रीढ़ की हड्डी के नीचे से प्रारम्भ होकर हृदय पक्ष में समाप्त हो जाती है, तो इसका मतलब यह नहीं, कि मस्तिष्क पक्ष के ऊपर इसका अस्तित्व ही नहीं है, यह तो रीढ़ की हड्डी में से निकलकर पूरे शरीर और मस्तिष्क में घूमती हुई, फिर हृदय पक्ष में जाकर समाप्त होती है।।।।।।।
यदि आपने marca की हड्डी देखी हो, तो वह बिल्कुल खोखले की त तntas इन छल्लों में होती होती हुई न नाडि़यां आगे ओ ओर अग्रस desse यह तो मैंने पहले बत बताया था कि हमारा अट्ठानवे प्रतिशत शरीर सुप्तावस्था में है, चेतनायुक्त नहीं सुप।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। उसी जड़ अवस्था में तीनों न नाडि़यां भी, और तीनों जिस प प्रकार से जाग्रत किया जाता है, उस क्रिया को कुण Para इसका मकसद है, पूरे शरीर को चेतनायुक्त बनाकर ऊर्ध्वगामी पथ पर अग्रस língua होना।
नृत्य करना किसी प्रकार का भोंडापन नहीं, यह तो जीवन का एक उद्वेग है, अपने आपको प्रस्फुटित करने की क्रिया है।।। यदि जीवन में नृत्य नहीं होता, तो कुंठायें व्याप्त हो जाती— और ऐसे व्यक्ति, जो नृत्य नहीं कर सकते, जो अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकते, वे चिड़चिड़े हो जाते हैं वे अपने आप में गुमसुम रहकर अपने जीवन को भार स्वरूप ढोने वाले हो जाते है।
हमारे पूर्वजों ने होली का एक त्योहार रखा। आज च चालीस साल पहले जैसा होली का त्योहार होता था, अब वैस वैसा marca ह ही होत।। थ थ अब तो वैसा marca मैंने चालीस साल पहले की होली भी देखी है और आज भी देख रहा हूँ, चालीस साल पहले वे जवान लड़के जिस प्रकार से गालियां बोलते थे, उनका तो आज अस्तित्व ही नहीं रहा और उन गालियों में दादा, बाप, पोता सभी शामिल होते थे। यह उच्च वर्ग की घटना है- कोई मजदूर या कृषक वर्ग की बात नहीं कर ा हूँ व।।
O que você está fazendo?
यदि आपने होली सुने हों तो उसमें आपने देखा होगा कि व्यक्ति अपनी विचारधारा को कई प्रकार से व्यक्त करता है प प प प प प।।।।। व्यक्ति की जो इच इच्छायें होती हैं, उनके पूर्णरूप से प्रदर्शित करने के लिये जगह बना दी।।। अगर वह जगह नहीं बनेगी, तो व्यक्ति अन्दर से दमित और कुंठाग्रस्त हो जायेगा, इसलिये ये दो-तीन दिन बना दिये कि व्यक्ति अपनी बात को खुलासे से कह दे, जो कुछ भी है, बोल दे।
नृत्य भी उन्हीं भावनाओं को प्रस्फुटित करने की क्रिया है।।।। यह कोई भोंडा प्रदर्शन नहीं हैं यह तो जीवन की भावनाओं का उद्वेग है और जीवन की भावनाओं का उद्वेग वही प्राप्त कर सकता है जिसकी सुषुम्ना नाड़ी और पिंगला नाड़ी का, हृदय पक्ष का प्रस्फुटन हुआ हो। जो हृदय ज जाग्रतवान होते, वे ही अपने आप में मुस्करा सकते है।।
आपने अट्टहास शब्द तो सुना ही होगा कि हमारे पूर्वज जोरों से अट्टहास लगाते थे। आज यह शब्द हम केवल सुनते है। ऐसा देखते, आज अग कोई कोई व्यक्ति जोरों से हँसे, तो हम कहते हैं- यह असभ असभ्यता है, बड़ा ही असभ्य है, गंवार की तntas घर की बेटी अगर जोर से हंसने लग जाय तो कहेंगे तुझे शर्म नहीं आती, क्या घर की बहू-बेटियों ये ये लक्षण हैं? रोती हुई लड़की या लड़का बड़ा अच्छा लगता है और हम हैं हैं- वह गंभी गंभीntas गंभी है।।।।। व्यक्ति अट्टहास के साथ अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकता है, मगर हंसी शुद्ध और निर्मल होनी चाहिये।
होली का त्योहार नृत्य, कलाओं का चिन्तन और अपने आप में निमग्न हो जाने की क्रिया तो चैतन्य महाप्रभु से प्रा्भ हुई है।। महाप्रभु से प्रा्भ हुई चैतन।।। महापadura हमहमारे शास्त्रों में वर्णित है कि सभी स स्त्रियां नृत्य करती थी औऔ जिस बहू को नृत्य करना नहीं आता था, वह गंवार मानी क क क नहीं नहीं आता था, वह गंवार मानी क क क नहीं नहीं आता था, वह गंवार मानी क क क नहीं नहीं आता, अब तो सब कुछ गय गया है, क्लब में जाना, पत्ते खेलना, शराब पीना, सिगरेट के छल्ले उड़ाना- ये आज आज के जीवन क क प पsentले उड़ाना- ये आज आज के जीवन का एक प्रस्फुटीक gio है है
इस कुण्डलिनी जागरण के माध्यम से जीवन क का सारा आनन्द प्रस्फुटित होता है और व्यक्ति नर्तनयुक्त बन जाता है। नृत्य करना है- आँखो के माध्यम से नृत्य करता है- शरीर के माध्यम से नृत्य करता है- चेतना के माध्यम से नृत्य करता है- बातों के माध्यम से, बात ऐसी सटीक करता है, कि सामने वाला एहसास करता है, कि कुछ उत्तर मिला । Linha
Mais informações सुख तो हम पैसे प प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि हम बाहरी प्रवृत्तियों को म मानते हैं।।।।।। आनन्द प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि आनन्द प्राप्त करने के लिये तो अन्दर की सारी प्रवृत्तियां जाग्रत करनी पड़ती है और वे सारी वृत्तियां जिस प्रकार से जाग्रत होती हैं, उसको कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है, यह उसका मूल आधार है।
कुण्डलिनी का मूल आधार मूलाद Mais informações एक-एक करके चक्रों को जाग्रत करने की क्रिया का बेस क्या है, आधार क्या है, यह मैं ही ही स्पष्ट कर चुका हूँ।।
Linha आप सांस ले हे हैं हैं, मगर जैसा मैं पहले ही उल्लेख कर चूका हूँ।। आपको सांस लेना आता ही नहीं, क्योंकि सांस का सम्बन्ध सीधा नाभि से है। जब स सांस लेते हैं, तो आपके नाभि प्रदेश में स्पन्दन होना चाहिये।
यदि आपको देखना है, तो केवल चार-छः महीने के बच्चे को देखें, कि वह सांस ले रहा है और उसकी नाभि थर-थर हिलती है, स्पन्दनयुक्त होती है, पूरी नाभि बराबर धड़कन युक्त बनी रहती है और जब आप सांस लेते हैं, तो केवल गले तक ही लेते हैं। सांस लेना आपको बच बच्चे से सीखना चाहिये और व्यक्ति सांस लेकर अपनी नाभि को स्पन्दित कर सकता है वह वह व l व्यक Paragre
O que você pode fazer? जहां कोई चीज नहीं होती, वहां वायु होती है। जब सांस लेते हैं, तो कंठ तक यह वायु जाती है। कंठ के बाद में वह वायु नीचे उतरती ही नहीं। इसीलिये मैं कह ह हा हूँ, नाभि तक सांस लेना चाहिये, क्योंकि नाभि तक सांस लेंगे, तो पूरे शरीरीर में स्वच्छ वायु का संचरे होगा औा मूल मेंाधारजाग वायु का संचा होगा ।ा ।ा मूलाधारgio जायु का का संचा होगा ।ा ।ा मूलाधारजgio मूलाधार जाग्रत करने के लिये कुछ फोर्स तो लगाना ही पड़ेगा।
आपने सपेरे को देखा होगा, जब सांप कुण्डली मारकर बैठ जाता है।। तो सपेरा बीन बजाता है औऔ यदि फि फि भी उठत उठता है, तो ह हाथ से छेड़ता है, तब सांप फन फैला करके खड़ा होता है। Inte Inte
सबसे पहले कठिन क्रिया यही है, कि हम धक्का लगायेंगे, जोर से सांस लेने और छोड़ने की क्रिया से, इसको भस्त्रिका कहते हैं और पहली बार जब आप सांस जोरों से लेंगे, तो कंठ में से दुर्गन्ध युक्त वायु निकलेगी। यदि आप भस्त्रिका करते रहेंगे, तो महीने दो महीने बाद आप उस स्थान पर पहुँच जायेंगे कि वह पूरा प्रदेश खाली होगा और सांस लेंगे, वह सीधा नाभि तक पहुँचेगा और फिर सांस बाहर आयेगा, अतः आप जो सांस लें वह पूरे फोर्स के साथ लें और फोर्स के साथ बाहर निकालें। इसलिये हमारे पूर्वजों ने कहा है कि सुबह उठकर गहरी सांस लेनी चाहिये। Inte
Inte इसलिये इतने फोर्स से सांस बाहर निकालें कि ऐसा लगे, जैसे सीना फट जायेगा और उतनी जो जोजो से सांस को वापिस औ। इन क क्रिय deveria यह कोई ऐसी विशेष कठिन क्रिया नहीः आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने पेट को पूरा खाकी इस भस्त्रिका से पूर्व पेट ख खाली करने के त तntas यदि व्यक्ति अनाज खाना छोड़ दे तो व्यक्ति मर नहीं जायेगा, यह गारण्टी की बात है।।।।। वह आटा खाता है, इसलिये मर जाता है। जो व्यक्ति केवल वनस्पति पर ा है, वह अधिक जीवित marca है है।।।।।।।। है है पा है।
अब आप कहेंगे, आपने सल सलाह तो दी दी, पर भूख लग जाती है, उसका क्या करें? तो कहत कहता हूँ, कि आटा कम खाना चाहिये और भोजन करने से प पानी ज्यादा पी लें।।। पानी ज्यादा पी, तो फि फि भूख कम लगेगी औ औ आप कम ोटी ोटी खा सकेंगे भूख भूख इसलिये में ज ज्यादा फालतू का सामान नहीं जाये और जो हो, पहले उसे पचा लें।।।। दूसरी जो क्रिया है, उसमें शवासन में लेटकर पांवों को छः ऊप ऊपऊप उठा लें, तो आप देखेंगे, कि पैरों में खिंचाव महसूस ह हा है। केवल एक-दो मिनट ही ऐसा लगेगा कि अन्दर का सारा प्रदेश फट marca हा है।।।।।।।।। जितना भी पेट में स्टोरेज है उसके टूटने की, विखंडन कि क्रिया होगी और धीरे-धीरे जो चर्बी है, जिसको मांस पिंड कहा जाता है, वह अपने आप में गलेगा। शरीर को तो चाहिये ही, ऊर्जा अब या तो आप marca के द्वारा दे देंगे, नहीं तो जो जमा है, उससे शरीरीरी्राप्त करता हैा हैा उससे श शरीntas जब पेट अपने आप दबेग दबेगा, तब आप स सांस लेंगे सीध सीधा ही नांभि तक पहुँचेगा।
दूसदूस आसन आसन कि आप सीधे क क क के पेट बहुत अंद अंद खींचें, गहरी सांस छोड़ करके ऐसे जैसे जैसे पीठ से ज जाय, क्योंकि आपने अंदntas
इन तीनों क्रियाओं के माध्यम से मूलाधार जागरण की क्रिया प्रारम्भ होती है और कुण्डलिनी जागरण का विशेष मंत्र, भस्त्रिका के बाद में उच्चारण करने से भी अंदर की सारी गन्दगी, जो गैस, चर्बी है, जितना भी फालतू है, वह ऊर्जा के माध्यम से जल्दी से जल्दी पिघल करके साफ हो जाता है और फिर कुण्डलिनी जागरण प्रारम्भ हो जाता है।।। ये क का मूल भेद है, जिसके माध्यम से व्यक्ति कुण्डलिनी जागरण कर सकता है।।।।
Mantra Siddhi - Obtenção da Perfeição
मैंने आपको कुण्डलिनी जागlente O que você está fazendo? इससे तुम्हारा कोई मतलब नहीं है, क्योंकि जब तुमने उस साधना को समझा है, जिसके माध्यम से पूरा शरीर अपने आप में चैतन्य किया जाता है, तो मैट्रिक की परीक्षा देने की कोई आवश्यकता नहीं है।
क्रिया योग माध्यम से पू पूपू कुण्डलिनी जाग्रत होती है, जिसकी कुण्डलिनी जाग्रत होती है, वह अपने कुण कुण कुण ही ही ही ही कल कल कल कल कल से से ज वह अपने में में में में ही ही तीन कल pos. सोलह कलाओं तक पहुँचने लिये प प्रयत्न यह करना है, कि सबसे पहले योग योग्य गुरू की क करनी है।।।
'चेतना सिद्धि', प्राणमय सिद्धि', ब्रह्मवर्चस्व सिद्धि' और तांत्रोक्त गुरू सिद्धि' ये चार कुण्डलिनी जागरण और पूर्णता प्राप्त करने के आयाम हैं,- इनका तात्पर्य क्या है?
चेतना सिद्धि का तात्पर्य है- पूरे शरीर को चैतन्य करने की क्रिया। यदि हमारा शरीर चैतन्य होगा तो हम कुण्डलिनी जागरण कर सकेंगे, शरीर चैतन्य होगा तो हम जीवन में रोग रहित हो सकेंगे, शरीर चैतन्य होगा तो हम क्रिया योग की ओर अग्रसर हो सकेंगे। उन जड़ शशश को चेतन चेतन युक उन उन जड़ लिये लिये चेतन को चेतना युक्त बन बनाने के लिये 'चेतना सिद्धि यंत्र' को सामने marca नित Paranha यह मंत्रात्मक प्रयोग है, मंत्रत्मक प्रयोग के माध्यम से भी क्रिया योग हो सकता है।।। चेतना मंत्र यहां स्पष्ट कर रहा हूँ-
इसका यदि आप निरन्तर एक माला मंत्र जप करते हैं आपक आपका पूरा शरीर चैतन्य होता ही है।।।। श श।।।।।।।। पू पू पू आपक आपक आपक आपकgre O que você quer? यदि आपकी स्मरण शक्ति कमजोर है तो आपकी स्मरण शक्ति अपने ही तीव तीव्रता की ओर अग्रस to होगी।। एकदम से आपको नई चेतना, नये विचार, नई भावनायें, नई कल्पनायें प्राप्त हो सकेंगी- इसको चेतना प्रयोग कहा जाता है।
दूसरी प्राणमय सिद्धि, जब शरीर चैतन्य हो जाय तो उससे प्राण संस्कारित करने पड़ते।।।।।।।।।।।।।।।। यद्यपि हमारे शरीर में जीव संस्कारित है, यह जीवात्मा है और हम परमात्मा होना चाहते हैं औ।। Linha इस शरीर में जो कुछ है, केवल आत्मा है और वह जीवमय ह इस 'प्राणमय यंत्र' को सामने marca língua
Mais informações Mais बजाय अर्न्तमुखी बनाने हेतु क्रियारत हो जाये क O que você pode fazer? O que você pode fazer? Mais informações
मैं आपको पूर्ण आशीर्वाद देता हूँ कि आप अपने शिष्यत्व को उच्चता की ओर अग्रसर करते हुए पूर्णत्व प्राप्त करें। हुए पू पूर्णत्व प्राप्त करें। आशीर्वाद आशीर्वाद
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Sr. Kailash Shrimali
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