Linha दरअसल समुद्र मंथन दौ दौदौ दौ देव औ औ दैत्यों की सहायता करने के मंद मंदराचल पर्वत का भारने अपनी प मंदपाने के उद्वत का भा marca इसी समुद्र मंथन से चौदह बहुमूल्य marca Mais informações
भगवान विष्णु द्वारा कूर्म अवतार लेने का वर्णन कई पुराणों एवं ग्रंथो में है।। कई पुराणों में इस संदर्भ में पाया गया है कि एक बार ऋषि दुर्वासा इंद्र से मिलने गये तब वे अप्सराओं के नृत्य व आमोद-प्रमोद क्रिया में इतने मग्न थे कि उन्होंने ऋषि दुर्वासा का स्वर्गलोक में स्वागत नहीं किया और जो वैजयंती फूलों की माला उन्होंने इन्द्रदेव को उपहार में दी म माला ऐरावत को पहना दी, लेकिन उन फूलों की सुगंध उसे पसंद नहीं आई औ औ उसने माला को पैरो तले ौंध दिया।।। म मnch को पै ौंध ौंध दिया।। दिय दिय दिय दिय पै पै पै पै म मgre
यह सब देख ऋषि दुर्वासा अत्यंत क् marca परिणामतः समस्त देवतागण निर्बल हो गये इसी असु असुntas तीनों लोकों में राजा बलि का राज स्थापित हो गया। व्यथित होकर इन्द्रदेव व अन्य सभी देवता भगवान ब्रह्मा के समक्ष गये व अपनी विपदा सुनाई। ब्रह्मा जी ने जगद्गुedade देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण में जाकर प्रार्थना की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन कर अमृत प्राप्त करने और उसका पान कर पुनः अपनी खोई शक्तियां अर्जित करने का सुझाव दिया। किन्तु यह कार्य इतना सरल नहीं था क्योंकि देवता अत्यन्त निर्बल हो चुके थे कि अकेले समुद्र मंथन कर पाना उनके सामर्थ्य में थ था पाना उनके सामर्थ्य में नहीं था पा ।ाउनके सामर्थ्य में नहीं था। पाम सामर्थ्य में नहीं थथा। प उनके किन किन gre Mais informações े उन्हें असुरों को अमृत एवं उससे प्राप्त होने व O que você pode fazer? देवताओं का साथ देने हेतु मना लेने को कहा। Mais informações मना कर दिया और वे अकेले ही समुद्र मंथन करने के ब O que você pode fazer? O que você pode fazer? Mais informações O que você pode fazer? ।
इसके पश्चात् वासुकि नाग को रस्सी और मन्दराचल पर्वत को मथनी बनाकर समुद्र मंथन शुरू किया गया लेकिन पर्वत का आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। Linha यह देखकर भगवान विष्णु ने बहुत बड़े कूर्म का marca लेकर समुद्र में मंदराचल पर्वत को अपनी प पntas इससे पर्वत तेजी से लग लगा और समुद्र मंथन आंरभ हो पाया। मथते-मथते बहुत देदे हो जाने पर भी जब अमृत निकल निकला तब भगवान ने सहस्त्रबाहु होकर स्वयं ही दोनो ओर से मथना प्रा conseguir इसके बाद उसी हल हलाहल विष निकला जिसे पीकपीक भगवान शिव कहल कहलाये। इसी प्रकार समुद्र मंथन से कामधेनु, उच्चैश्रवा, ऐरावत, कौस्तुभ मणि, पारिजात वृक्ष, कल्पवृक्ष, मदिरा (वारूणी), माँ भगवती लक्ष्मी, वारूणी धनुष, अपसरायें, चन्द्रमा, पांचजन्य शंख, धनवन्तरि और अंत में अमृत निकला।
अब को प प्राप्त करने के देवत देवता और असुरों ने आपस झगड़ झगड़ा आरंभ कर दिया। तब भी श् marca विष्णु ने अपनी लीला marca अमृत पीकपीक देवता अमर हो गये औऔ असुरों को युद्ध में परास्त कर पाये और इस प्र्रकgioxas इन्द्रदेव को अपन अपना शासन पार पात को को पुनः शासन पासन प को को शomas इन्द्रदेव व देवत देवतागण कृतज्ञ होकर बा conseguir
भगवान प्रसन्न हुये व उन सभी को अभिमान का त्याग कर, सकुर्म करने का ज्ञान दिया। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की नित्य पूजा-अर्चना करने से सुख समृद्धि व सुबुद्धि की प्राप्ति होती समृद।।।
Nidhi Shrimali
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