इतिहास साक्षी है कि जब-जब मनुष्य का गुरू से, ईश्वर से, प्रकृति से विश्वास समाप्त हुआ है, तब-तब उसके जीवन में निराशा व हताशा का विस्तार होता है और इस अविश्वास का मुख्य कारण है- नास्तिकता की वृद्धि। Linha जो ज्ञान को सीमाओं में बांध देते अथवा बांधने का प्रयास करते हैं, वे ही वास्तव में गुरू की अयोग्यता के सूचक व हैं। गुरू तो एक दर्पण की भांति होता है, जो अपने शिष्य को उसकी छवि दिखाकर उसे सही रास्ते पर गतिशील करता है, भयमुक्त बनाकर उसे जीवन में गतिशीलता प्रदान करता है।
E quando esse tipo de incidente acontece na vida de um discípulo, então ele alcança o objetivo final da vida, então quando o não-dualismo chega, seu processo de despertar automático completo da Kundalini é realizado, então ele assume a forma daquela árvore Kadamba. Alguém é capaz de absorvê-lo, sob cuja sombra o mundo inteiro, toda a raça humana e esta sociedade experimentam felicidade e paz, alcançam a frieza do conhecimento e se deleitam com o divino luar brilhando no Manasarovar da imortalidade.
हजारों-हजारों वर्षो से संत, महात्मा, ऋषि व देव इस सृष्टि में अवतरित हुये औ और उन्होंने संसार के को चैतन चैतन्य स्व desse ये सभी संत, महात्मा निरन्तर सद्ज्ञान के लिये सांसारिक व्यक्तियों को जगाते रहते हैं, लेकिन अधिकांश सुनना नहीं चाहते और केवल उपेक्षा ही करते है। फिर तो उन्होंने हंसना भी बंद कर दिया। फिर तो कोई उसकी बात पर ध्यान ही न देते हैं। लोग बहरे हो गये। लेकिन वे अपनी क्रियायें निरंतर गतिशील रखते हैंर
वर्तमान समय में यदि हम किसी भी गुरू के समीप जायें, तो स्पष्ट होता है कि उनके पास जो ज्ञान है वह शास्त्रों-गीता अथवा रामायण के ज्ञान-भाव को व्यवहारिक स्वरूप में आत्मसात् किया हुआ है जो सहज-स्वाभाविक है गुरू में विशाल ज्ञान की Linha अपने शिष्य को अभय प्रदान कर पूर्ण ब्रह्मत्व प्रदान करें और केवल ब्रह्मत्व प्रदान ही नहीं करें, अपितु शिष्य को पूर्ण ब्रह्म स्वरूप में स्थापित कर सकें यही भाव चिन्तन सद्गुरू का रहता है।
जीवन दुःख पूर्ण है, इसलिए कि हम जीवन को आनंदपूर्ण बनाने की क्षमता और पात्रता उपलब्ध नहीं कर पाते। जीवन पू पूर्ण इसलिए है क्योंकि हम भ भntas हमारी दृष्टि की भ भरी छाया सारे जीवन को अंधकारपूर्ण कर देती है।।।।। जीवन भर बाहर, बाहर और क्यों? क्योंकि हमने प पाल marca है, दृष्टि दुःख पाल marca है औऔ यह सारी बात दृष्टि की है।।।
जीवन दुःखव दुःखवादी दृष्टि से के भ भ्रम को छोड़, ख्याल छोड़ दें कि बु बुरा है।। अगर बुरा हूँ तो बु बुntas हूँ औ अगntas जीवन को आप कैसे बदल सकते हैं? बिलकुल ही गलत! अगर जीवन बुरा है तो उसे क का कोई तो उपाय होगा ही क्योंकि जीवन विराट है।।।।। एक ही रास्ता है, हमे अपनी सोच बदलनी होगी, अपनी दृष्टि बदलनी होगी, नहीं तो फिर मैं समाप्त हो जाऊंगा इसको आज नहीं बदला तो फिर इससे निराशा, हताशा पैदा होगी, इससे जीवन से भागने की क्रिया का विस्तार होगा अथवा इससे जीवन को छोड़ने वाली परम्परायें पैदा होगी।
हम सब उस घेरे में खड़े हैं। इस घेरे को तोड़ दें और विद्रोह करें अज्ञान के प्रति, विद्रोह दुःखवादियों के प्रति, ताकि आनंद की क्षमता का सूत्र शुरू हो जाये, ताकि वह किरण फूट सके जो आनंद की है। अतः निरन्तर सुभाव से जीवन को क्रियान्वित करने से ही जीवन में सरसता आ सकेगी।।।।।।।। अहंकारहीन का अर्थ है शून्यता, कि मैं अपने को छोड़ता हूं अर्थात मैं सब कुछ अपने परमात्मा पर छोड़ता हूं जो कुछ भी जीवन में प्राप्त है वह सब परमात्मा की देन है। Inte इसीलिये सर्व व्यापी परमात्मा विद्यमान है, सांसारिक मनुष्य तो अल्पकाल के आत आता जाता है।
साथ ही भजन और मंत्र का भाव, जब जीवन में उतरेगा तब ही रोम प्रतिरोम चैतन्य हो सकेगा इस तरह की निरन्तरता बनाते हुये क्रियाशील रहेंगे तब हम संसार की भीड़ का हिस्सा नहीं होगे वरन स्वयं में ही इतनी उच्चता आ जायेगी कि जहाँ भी हम खड़े हो जायेगे स्वतः ही देखने देखने-सुनने के श श्रोता इक्कठे हो जायेंगे। तात्पर्य यही है कि आलोचना, ईर्ष्या, दूषितता व विषमता रूपी बुरे संस्कारों से जीवन में सुख और आनन्द की प्राप्ति नहीं होती, नित्य प्रतिदिन उक्त तरह की कुत्सितता रूपी क्रियाओ व भावना से निरन्तर अर्नगल संस्कारो की वृद्धि होती रहती है उसी के फलस्वरूप हम मलिनमय जीवन व्यतीत करते रहते है। यदि जीवन में श्रेष्ठता लाना है तो इन कुविचारो marca क्रियाओ को पूर्णरूपेण समाप्त करना ही होगा। जिस तरह से कोई भी अच्छी-बुरी आदत तब बनती है जब हम निरन्तर वह कार्य करते है तो वह कार्य हमारा जीवन का हिस्सा बन जाता है अर्थात उसमें निरन्तरता बनाये रखते है। अतः कुस्थितियो को निकालने के लिये यदि नि निरन्तर-निरन्तर अभ्यास करे तो वह कुस्थिति जीवन भर के लिये समाप्त हो जाती है। ठीक उसी तरह उपदेश, भजन, मंत्र को भी जीवन उतारने का हम निरन्तर अभ्यास करेंगे तो अलौकिक देवमय शक्तियों से युक्त हो।।।।।
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