इस तत्व को जीवन में उतारे बिना निश्चय ही व्यक्ति जीवित तो रह सकता है, मगर ठीक वैसे ही जीवित रह सकता है जैसे एक प्राण विहीन शरीर, एक ऐसा शरीर जिसका कोई लक्ष्य नहीं है। जिस हृदय में गुरू तत्व का स्थापन ही नहीं हुआ हो, वह धड़क तो सकता है, पर उसमें उमंग नहीं हो सकती, उत्साह नहीं हो सकता, उछाल नहीं हो सकता, लहर नहीं हो सकता और ऐसा इसीलिये क्योंकि गुरू तत्व को आत्मसात् करने की कला हम सीख ही नहीं हैं, गुरू को देख देखा है, गुरू के चरण स्प desse
यह गुरू तत्व ही परम तत्व है, जिसे चर्म चक्षुओं से नहीं नहीं देखा जा सकता, परन्तु ज्ञान चक्षुओं के जाग Paragre इसी को ब्रह्म तत्व भी कहते हैं। ब्रह्म और गुरू में कोई भेद नहीं है और सकल ब्रह्माण्ड उसी ब्रह्म का माया विस्तार ही है, इसलिये समस्त ब्रह्माण्ड का आधार ही ब्रह्म या गुरू तत्व है। उस गुरू तत्व का अभिषेक प पाना और वह पू पूर्णता के साथ यह किसी भी मनुष्य के में युग युगान्तरकारी घटना है।
अभिषेक का तात्पर्य है 'सिंचन करना' या अनवरत ज्ञान प्रदान करना। प्रकृति संसार में वर्षा के माध्यम से प्रत्येक प्राणी का अभिषेक करती है, इसी प्रकार अग्नि ताप द्वारा, आकाश शून्यता द्वारा, वायु स्पर्श द्वारा और पृथ्वी धारणता द्वारा अभिषेक करती है। जब इनका संयोजन उचित गति चलत चलता marca केवल एक तत्व के माध्यम से अभिषेक संभव नहीं है, प्रकृति तो अपना कार्य अनवरत रूप से करती ही रहती है, लेकिन मनुष्य परमात्मा की इस क्रिया में विघ्न डालकर संतुलन बिगाड़ देता है और जब एक बार संतुलन बिगड़ने लगता है तो पूरी प्रजाति को पीड़ा भोगनी पड़ती है।
वर्तमान समय में यह स्थिति चल रही है, जिसके कारण नई-नई बीमारियां, मुरझाये हुये शरीर, आत्मिक अशान्ति, लोभ, लालच, वैमनस्यता, क्षुद्रता जैसे भाव तीव्र गति से बढ़ रहे हैं क्योंकि मनुष्य के भीतर का दैहिक और आत्मिक संतुलन बिगड़ गया है , वह देह रूपी शरीर की ओर ज्यादा ध्यान दे रहा है, उसे सजाने-संवारने का कार्य भी कर रहा है, लेकिन देह के भीतर महत्वपूर्ण शरीरों को जाग्रत करने के लिए कोई क्रिया नहीं कर रहा है। वह उसी प प्रकार कर ा है जैसे पत्तों को पानी दें, परन्तु जड़ को शुष्क हने दें औ औा आशा करें कि वृक्ष पल्लवित होगा औ औऔ आशा करें कि वृक्ष पल्लवित होगा। ।होग औऔ आशआश क क कि कि gre
अभिषेक का तात्पर्य है जड़ क का सिंचन करना, जो अ अर्थात पूरे वृक्ष को हरा-भरा खता है पू उसे पुष्ष औऔ ह ह प ded. जीवन में अभिषेक का तात्पर्य है देह भीत भीतर स्थित भुवः स्वः इत्यादि को जाग्रत कर सकें। इत इत इतादि यह क्रिया देह ऊप ऊपntas
O que você pode fazer? र सके, सद्गुरूदेव के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त ह ो सके और भौतिक जीवन व्यतीत करते हुये भी पूर्ण शि वमय रहे सके, आनन्दमय रह सके, यही जीवन की पूर्णता है, जो गुरू तत्व पूर्ण स्थापन से ही आ सकता है।
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